असमां छूने की ख्वाहिश...

 देश में लड.कियों के लिए अधिक समर्थन उन्हें नए मौके देने के लिए राष्ट´ीय बालिका दिवस की शुरूआत की गई। 24 जनवरी को राष्टकृीय बालिका शिशु दिवस मनाया जाता है। राष्ट´ीय बालिका दिवस मनाने का मुख्य उदेश्य यह है कि लड.कियों के बारे में व्याप्त भ्रांतियां दूर कर लोगों को जागरूक बनाना, और उन्हें कन्या भ्रूण हत्या के प्रतिकूल प्रभावों को बताना है। बालिका शिशु के साथ भेद-भाव एक बड.ी समस्या है जो कई क्षेत्रों में फैला है। शिक्षा में असमानता, पोषण, कानूनी अधिकार, चिकित्सीय देख-रेख, सुरक्षा, सम्मान, बाल विवाह आदि में बालिका को असमानता का शिकार होना पड.ता है। इसी के मड्ढेनजर राष्ट´ीय बालिका दिवस मनाया जाता है। ताकि लड.कियों को वो सम्मान और वो अधिकार मिल सके जिसकी वो भागीदार हैं। राष्ट´ीय बालिका की शुरूआत वर्ष 2009 से की गई। 24 जनवरी के दिन इंदिरा गांधी को नारी शक्ति के रूप में याद किया जाता है। इसी दिन इंदिरा गांधी पहली बार प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठीं थी। इसलिए इस दिन को बालिका दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को पूरा देश एक उत्सव की तरह मनाता है। आज शिक्षा से लेकर सेना तक, हर क्षेत्र में बालिकाएं अपने परिवार, देश  और समाज का मान बढ.ा रही हैं। आज कुछ लोग बेटियों न केवल बड.े सपने देखने को प्रेरित कर रहे हैं, बल्कि उनके सपनों को क् ंची उड.ान देने के लिए उम्मीदों से भरा आसमान भी खोल रहे हैं। लेकिन कहीं न कहीं अज्ञात भय और समाज में फैली कुरिेंतियां बेटियों के पंख कतर कर उनके रास्तों को रोक रहे हैं। पढ.े- लिखे और जागरूक समाज भी इस समस्या से अछूता नहीं है। आज हजारों लड.कियों को जन्म लेने से पहले ही गर्भ में मार दिया जाता है या जन्म लेते ही लवारिस यहां-वहां छोड. दिया जाता है। आज भी समाज में कई घर ऐसे हैं, जहां बेटियों को बेटों की तरह अच्छा खाना और अच्छी शिक्षा नहीं दी जा रही है। एशिया महाद्वीप में भारत की महिला साक्षरता दर सबसे कम है। गौरतलब है कि ‘नेशनल कमीशन फाॅर प्रोटेक्शन आॅफ चिल्डकृंस राइटस‘ यानी एनसीपीसीआर की एक रिर्पोट में यह बताया गया था कि भारत में 6 से 14 साल तक की ज्यादातर लड.कियों को हर दिन औसतन 8 घंटे से भी ज्यादा समय केवल अपने घर के छोटे बच्चों को संभालने में बिताना पड.ता है। एक सरकारी सर्वेक्षण में 42 प्रतिशत लड.कियों ने यह बताया कि वे स्कूल र्सिफ इस लिए छोड. देती हैं, क्योंकि उनके माता-पिता उन्हें घर संभालने और अपने छोटे भाई बहनों की देखभाल करने को कहते हैं। लोगों को इसके दुष्परिणामों के प्रति आगाह करने और लड.कियों को इस स्थिति से बचाने के लिए ही 24 जनवरी को राष्टकृीय बालिका दिवस मनाया जाता है। लड.कियों के आगे न बढ.ने के कारण यह भी है कि अक्सर घरों में यह कहा जाता है कि अगर लड.की है, तो उन्हें घर संभालने और अपने छोटे- भाई बहनों की देखभाल करने की अधिक जरूरत है। इस प्रकार की बातें लड.कियों की राह में बाधाएं बनती है। इन्हीं सब स्थितियों और भेदभाव को मिटाने के मकसद से ही बालिका दिवस मनाया जा रहा है। ताकि बालिकाओं को बहन, बेटी, पत्नी या मां के दायरों से बाहर निकाल कर उन्हें सामाजिक भागीदारी के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। बालिकाओं की सेहत, पोषण एवं पढ.ाई जैसी चीजों पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है, ताकि वे बड.ी होकर शारीरिक, आर्थिक मानसिक व भावनात्मक रूप से आत्मनिर्भर व सक्षम बन सकें। बालिकाओं को घरेलू हिंसा , बाल-विवाह व दहेज जैसी चीजों के बारे सचेत करना आवश्यक है। ताकि वे अपने भविष्य एवं अपने अधिकारों के बारे में जागरूक हो सके। आज जरूरत है तो बेटियों को मान-सम्मान दे कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की। तभी वे समाज और परिवार के साथ-साथ अपना विकास कर सकती हैं। आज हम सभी को मिलकर यह प्रण लेना होगा कि बेटियों को सम्मान दे कर कन्या भ्रूण हत्या जैसे घिनौने अपराध पर लगाम लगायेंगे। इसका खुलकर विरोध करेंगे। साथ ही साथ दहेज के लिए दूसरों की बेटियों पर अत्याचार नहीं करेंगे। बहू को बेटी का दर्जा दे कर सम्मान देंगे। अगर यही बात सोच कर हर व्यक्ति अपनी बहू को अपनाएं तो दहेज के लिए फिर कभी किसी की बेटी नहीं जलाई जायेगी। कोख में कन्या भ्रूण हत्या जैसे घिनौने अपराध रूकेंगे। भारत सरकार ने वर्ष 2008 से राष्टकृीय बालिका दिवस को बतौर राष्टकृीय बालिका विकास मिशन शुरू किया है। इस मिशन का उड्ढेश्य है कि यह देश भर के लोगों के बीच बालिकाओं को बढ.ावा देने के महत्व के बारे में उन्हें जागरूक करें। ताकि लोग लड.कियों को बोझ न समझे । आज की बालिका जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ. रही हैं चाहें वो क्षेत्र खेल हो राजनीति, या फिर घर हो। खेलों की दुनिया में साइना नेहवाल जैसी लड.कियां समाज की मुख्यधारा में अपना रूतबा बढ.ा रही है। स्वस्थ्य और शिक्षित कन्याएं आने वाले समय में समाज को सही राह दिखला सकती हैं। लेकिन यह तभी संभव होगा जब देश में बालिकाओं के जन्मदर में इजाफा होगा। आखिर भ्रूण हत्या होती क्यों है अगर इस पर विचार किया जाए तो एक बात जेहन में आती है कि भारत में एक मानसिकता है कि बेटे संपति हैं और बेटियां पराया धन। लोग अपने धन को ही सहेज कर रखना चाहते हैं, दूसरों के धन को नहीं, शायद इसलिए भी बालिका भ्रूण हत्या जैसे पाप किए जाते हैं। भारत देश की यह बहुत ही बड.ी विडंबना है कि यहां हम बालिकाओं का तो कन्या-पूजन जैसे धार्मिक अवसरों पर पूजन करते हैं लेकिन जब खुद के घर बालिका जन्म लेती है तो महौल मातम सा बना लेते हैं। यह हालात भारत के लगभग सभी हिस्सों में है। कन्याओं को अभिशाप मनाने वाले यह भूल जाते हैं कि वे उस देश के वासी हैं जहां देवी दुर्गा को कन्या रूप में पूजने की प्रथा है, वे यह भी भूल जाते हैं कि वे उस देश के नागरिक हैं जहां लक्ष्मीबाई जैसी विरांगनाओं ने समाज के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए, इतना ही नहीं भारत देश की ही राजनीति की सबसे ताकतवर प्रधानमंत्री का रूतबा किसी पुरूष को नहीं अपितु माननीया स्व. इंदिरा गांधी को हासिल है जिन्होंने कई अवसरों पर देश के सामने एक दृढ संकल्पी नेेतृत्व प्रदान किया था। कहा जा सकता है कि जो लोग कन्याओं को बोझ मानते हैं उन्हें ही सही रास्ते पर लाने के लिए राष्ट´ीय बालिका दिवस मनाया जाता है। 

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Milan Tomic

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