छठ पर्व का महत्व
कार्तिक शुक्ल पक्ष को मनाया जाने वाला सूर्योपासना का यह अनुपम लोकपर्व छठ या षष्ठी पूजा मुख्य रूप से पूर्वी भारत के बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल में मनाया जाता है। इस त्योहार की खासियत यह है कि इसे हिंदू के साथ-साथ इस्लाम सहित अन्य धर्म के लोग भी बहुत ही आस्था के साथ मनाते हैं। अब तो यह त्योहार प्रवासी भारतवासियों के द्वारा भी मनाया जाने के कारण विश्व भर में जाना-जाने लगा है। छठ भगवान सूर्य और उनकी बहन छठी माई को समर्पित है। इस पूजा की सबसे बड.ी विशेषता यह है कि इसमें कोई मूर्ति की पूजा का प्रवाधान नहीं है। बल्कि इसमें प्रकृति से जुड.ी चीजों की पूजा की जाती है। इसलिए इसे प्रकृति का पर्व भी कहा जाता है।
कब मनाया जाता है
छठ पूजा साल में दो बार एक चैत के महीने में और दुसरी कार्तिक के महीने में मनाई जाती है। षष्ठी देवी को माता कात्यायनी के नाम से भी जाना जाता है, नवरात्रि के दिन हम षष्ठी माता की पूजा परिवार के सदस्यों के स्वास्थ्य लाभ के लिए करते हैं। षष्ठी माता , भगवान सूर्य और मां गंगा की पूजा देश और समाज के हित के लिए की जाने वाली पूजा होती है। क्योंकि इन सब का संबंध प्रकृति से होता है और मनुष्य पूरी तरह प्रकृति से जुड.ा होता है। यह कहा जा सकता है कि मनुष्य इस पूजा के जरिए प्रकृति की साफ-सफाई से लेकर इसकी रक्षा का भी प्रण लेता है। इस लिए इस पूजा को प्रकृति की रक्षा के संकल्प के रूप में भी देखा जाता है। भारतीय संस्कृति में थ्ृग वैदिक काल से सूर्य की उपासना का उल्लेख मिलता है। हिंदू धर्म के अनुसार सूर्य एक ऐसे देवता हैं जिनका साक्षात रूप से दर्शन किया जाता है। संपूर्ण जगत सूर्य के प्रकाश से ही चलायमान है, पेड. पौधों का जीवन से लेकर दिन,रात धुप, छांव,सर्दी, गर्मी और बरसात सभी सूर्य के द्वारा ही संचालित किए जाते हैं। इसलिए सूर्य को आदिदेव कहा जाता है, और उसकी पूजा की जाती है। इस पूजा को लेकर अनगिनत कथाएं प्रचलित हैं।
छठ पूजा की कहानी
एक लोक कथा के अनुसार पांडव जब जुए में अपना सारा राज-पाठ हार गए थे। तब श्रीकृष्ण के कहने पर द्रौपदी ने छठ का व्रत किया था। और इस व्रत के प्रभाव से द्रौपदी की मनोकामना पूरी हुई थी, और पांडवों को उनका खोया हुआ राजपाठ वापस मिल गया था। तभी से यह व्रत विधिपूर्वक मनाया जाने लगा।
वैज्ञानिक महत्व क्या है
इस त्योहार के वैज्ञानिक महत्व यह है कि षष्ठी तिथि को एक खगोलिय परिवर्तन होता है, इस समय सूर्य की पराबैगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती है। और इसके कुप्रभावों से मानव की रक्षा करने का सामर्थ्य सूर्य को प्राप्त होता है। सूर्य पराबैगनी किरणों का उपयोग कर अपने ऑक्सीजन तत्व को संश्लेशित कर उसे उसके एलोट´ोप ओजोन में बदल देता है। इस क्रिया में सूर्य की पराबैगनी किरणों का अधिकांश भाग पृथ्वी के वायुमंडल में ही अवशोषित हो जाता है। पृथ्वी की सतह पर उसका बहुत कम भाग ही पहुंचता है। जो मनुष्य के लिए हानिकारक नहीं होता है। बल्कि उस धूप में हानिकारक कीटाणु मर जाते हैं, जिससे मनुष्य लाभाविंत होता है। सूर्योदय और सूर्यास्त के समय की धूप और भी प्रभावशाली होती है। इसलिए सूर्य के अर्ध्य के वक्त मनुष्य दैविक लाभ के साथ- साथ अपनी रोगप्रतिरोधक क्षमता को भी बढ.ा लेता है। और यह घटना कार्तिक और चैत मास की अमावस्या के छः दिन के उपरांत होती है। इसलिए भी इस पर्व को छठ पर्व कहा जाता है। छठ पूजा के त्योहार की ऐसी महिमा है जिसमें उदय और अस्त होते हुए सूर्य की आराधना कर परिवार के लिए मंगलकामना की जाती है। यह इस बात का भी संकेत है कि हर दुःख के बाद एक सुख का आगमन होता है। उदय होता हुआ सूर्य नई आशा, नई उर्जा का लोगों में संचार करता है।
क्या हैं नियम
छठ पूजा 4 दिनों तक चलने वाला महापर्व है जिसमें महिलाएं एवं पुरूष व्रत रखते हैं। इस दौरान बहुत ही कठिन नियमों का पालन किया जाता है। प्रकृति से जुड.ा हुआ पर्व होने के कारण इसमें साफ-सफाई से लेकर हर वस्तु का विशेष ध्यान रखा जाता है। व्रती इस दौरान जमीन पर सोते हैं, सात्विक भोजन जो लहसून, प्याज रहित होता है उसका सेवन करते हैं। सिले हुए वस्त्र नहीं पहने जाते है। यह व्रत नहाए खाय से शुरू होकर खरना और शाम और सुबह के अर्ध्य के साथ संपन होता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से व्रती की सारी मनोकामानाएं पूर्ण होती हैं। पौराणिक काल में सूर्य को आरोग्य देवता भी माना जाता था। क्योंकि इसकी किरणों में कई रोगों को नष्ट करने की क्षमता होती है। इस व्रत के प्रभाव से भगवान श्रीकृष्ण के पौत्र शाम्ब का कुष्ठ रोग विशेष सूर्योपासना से ठीक हो गया था। ऐसी मान्यता है कि जो भी इस छठ पूजा के व्रत का विधिवत पालन करते हैं उन्हें संतान सुख और निरोगी काया मिलती है। साथ ही साथ जीवन में सुख शांति भी बनी रहती है।
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कार्तिक शुक्ल पक्ष को मनाया जाने वाला सूर्योपासना का यह अनुपम लोकपर्व छठ या षष्ठी पूजा मुख्य रूप से पूर्वी भारत के बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल में मनाया जाता है। इस त्योहार की खासियत यह है कि इसे हिंदू के साथ-साथ इस्लाम सहित अन्य धर्म के लोग भी बहुत ही आस्था के साथ मनाते हैं। अब तो यह त्योहार प्रवासी भारतवासियों के द्वारा भी मनाया जाने के कारण विश्व भर में जाना-जाने लगा है। छठ भगवान सूर्य और उनकी बहन छठी माई को समर्पित है। इस पूजा की सबसे बड.ी विशेषता यह है कि इसमें कोई मूर्ति की पूजा का प्रवाधान नहीं है। बल्कि इसमें प्रकृति से जुड.ी चीजों की पूजा की जाती है। इसलिए इसे प्रकृति का पर्व भी कहा जाता है।
कब मनाया जाता है
छठ पूजा साल में दो बार एक चैत के महीने में और दुसरी कार्तिक के महीने में मनाई जाती है। षष्ठी देवी को माता कात्यायनी के नाम से भी जाना जाता है, नवरात्रि के दिन हम षष्ठी माता की पूजा परिवार के सदस्यों के स्वास्थ्य लाभ के लिए करते हैं। षष्ठी माता , भगवान सूर्य और मां गंगा की पूजा देश और समाज के हित के लिए की जाने वाली पूजा होती है। क्योंकि इन सब का संबंध प्रकृति से होता है और मनुष्य पूरी तरह प्रकृति से जुड.ा होता है। यह कहा जा सकता है कि मनुष्य इस पूजा के जरिए प्रकृति की साफ-सफाई से लेकर इसकी रक्षा का भी प्रण लेता है। इस लिए इस पूजा को प्रकृति की रक्षा के संकल्प के रूप में भी देखा जाता है। भारतीय संस्कृति में थ्ृग वैदिक काल से सूर्य की उपासना का उल्लेख मिलता है। हिंदू धर्म के अनुसार सूर्य एक ऐसे देवता हैं जिनका साक्षात रूप से दर्शन किया जाता है। संपूर्ण जगत सूर्य के प्रकाश से ही चलायमान है, पेड. पौधों का जीवन से लेकर दिन,रात धुप, छांव,सर्दी, गर्मी और बरसात सभी सूर्य के द्वारा ही संचालित किए जाते हैं। इसलिए सूर्य को आदिदेव कहा जाता है, और उसकी पूजा की जाती है। इस पूजा को लेकर अनगिनत कथाएं प्रचलित हैं।
छठ पूजा की कहानी
एक लोक कथा के अनुसार पांडव जब जुए में अपना सारा राज-पाठ हार गए थे। तब श्रीकृष्ण के कहने पर द्रौपदी ने छठ का व्रत किया था। और इस व्रत के प्रभाव से द्रौपदी की मनोकामना पूरी हुई थी, और पांडवों को उनका खोया हुआ राजपाठ वापस मिल गया था। तभी से यह व्रत विधिपूर्वक मनाया जाने लगा।
वैज्ञानिक महत्व क्या है
इस त्योहार के वैज्ञानिक महत्व यह है कि षष्ठी तिथि को एक खगोलिय परिवर्तन होता है, इस समय सूर्य की पराबैगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती है। और इसके कुप्रभावों से मानव की रक्षा करने का सामर्थ्य सूर्य को प्राप्त होता है। सूर्य पराबैगनी किरणों का उपयोग कर अपने ऑक्सीजन तत्व को संश्लेशित कर उसे उसके एलोट´ोप ओजोन में बदल देता है। इस क्रिया में सूर्य की पराबैगनी किरणों का अधिकांश भाग पृथ्वी के वायुमंडल में ही अवशोषित हो जाता है। पृथ्वी की सतह पर उसका बहुत कम भाग ही पहुंचता है। जो मनुष्य के लिए हानिकारक नहीं होता है। बल्कि उस धूप में हानिकारक कीटाणु मर जाते हैं, जिससे मनुष्य लाभाविंत होता है। सूर्योदय और सूर्यास्त के समय की धूप और भी प्रभावशाली होती है। इसलिए सूर्य के अर्ध्य के वक्त मनुष्य दैविक लाभ के साथ- साथ अपनी रोगप्रतिरोधक क्षमता को भी बढ.ा लेता है। और यह घटना कार्तिक और चैत मास की अमावस्या के छः दिन के उपरांत होती है। इसलिए भी इस पर्व को छठ पर्व कहा जाता है। छठ पूजा के त्योहार की ऐसी महिमा है जिसमें उदय और अस्त होते हुए सूर्य की आराधना कर परिवार के लिए मंगलकामना की जाती है। यह इस बात का भी संकेत है कि हर दुःख के बाद एक सुख का आगमन होता है। उदय होता हुआ सूर्य नई आशा, नई उर्जा का लोगों में संचार करता है।
क्या हैं नियम
छठ पूजा 4 दिनों तक चलने वाला महापर्व है जिसमें महिलाएं एवं पुरूष व्रत रखते हैं। इस दौरान बहुत ही कठिन नियमों का पालन किया जाता है। प्रकृति से जुड.ा हुआ पर्व होने के कारण इसमें साफ-सफाई से लेकर हर वस्तु का विशेष ध्यान रखा जाता है। व्रती इस दौरान जमीन पर सोते हैं, सात्विक भोजन जो लहसून, प्याज रहित होता है उसका सेवन करते हैं। सिले हुए वस्त्र नहीं पहने जाते है। यह व्रत नहाए खाय से शुरू होकर खरना और शाम और सुबह के अर्ध्य के साथ संपन होता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से व्रती की सारी मनोकामानाएं पूर्ण होती हैं। पौराणिक काल में सूर्य को आरोग्य देवता भी माना जाता था। क्योंकि इसकी किरणों में कई रोगों को नष्ट करने की क्षमता होती है। इस व्रत के प्रभाव से भगवान श्रीकृष्ण के पौत्र शाम्ब का कुष्ठ रोग विशेष सूर्योपासना से ठीक हो गया था। ऐसी मान्यता है कि जो भी इस छठ पूजा के व्रत का विधिवत पालन करते हैं उन्हें संतान सुख और निरोगी काया मिलती है। साथ ही साथ जीवन में सुख शांति भी बनी रहती है।
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