आधुनिक हिंदी कहानी के पितामह कहे जाने वाले प्रेमचंद ने कहानी और उपन्यास की ऐसी परंपरा का विकास किया जिसने एक पूरी सदी के साहित्य का मार्गदर्शन किया। प्रेमचंद की रचना ने साहित्य को आम आदमी से जोड.ा। जिसके कारण उन्होंने अपने बाद की पूरी पीढ.ी को भी गहराई तक प्रभावित किया। प्रेमचंद ने हिंदी को विकसित किया और उसे जन जन तक पहुंचाया। उनका लेखन हिंदी साहित्य की एक ऐसी विरासत है, जिसके बिना हिंदी के विकास का अध्ययन अधूरा है। प्रेमचंद ने साहित्य को धरातल पर उतार कर जीवन और कालखंड की सच्चाई को पन्ने पर जीवंत कर दिया। प्रेमचंद और उनके द्वारा रचित साहित्य का अंतरराष्टकृीय महत्व है। आज पूरे विश्व के विशाल जनसमूह को उनके और उनके साहित्य पर गर्व है जो साम्राज्यवाद, पूंजीवाद और सामंतवाद के साथ संघर्ष में जुटा हुआ है। प्रेमचंद ने अपनी रचनाओं में जीवन की विविध समस्याओं का चित्रण किया है। उन्होंने मिल मालिकों और मजदूरों, जमीनदारों और किसानों के साथ-साथ नवीनता और प्रचीनता का संघर्ष भी दिखाया है। प्रेमचंद ने आदर्शोन्मुख यथार्थवाद को अपनाया। उनकी रचनाओं के पात्र प्रायः वर्ग के प्रतिनिधि रूप में सामने आते हैं, जिनका चुनाव प्रेमचंद ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से किया था। लेकिन उनकी रचनाओं में प्रथमिकता उसी वर्ग को मिली थी सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण से उपेक्षित था। शायद इसका एक महत्वपूर्ण कारण यह भी था, कि उन्होंने इस तरह के जीवन को जिया था। बचपन में माता फिर पिता की मृत्यु ने उन्हें अंदर से खाली कर दिया था। और इसी खालीपन को भरने के लिए वे साहित्य की ओर रम गए। उनकी लेखनी ने गरीबी, जमींदारी और समाज के उन मुद्रदों को छुआ जो आगे चल कर उनकी कालजयी रचना बन गई। प्रेमचंद की रचनाओं में घटनाओं के विकास के साथ-साथ पात्रों के चरित्र का भी विकास होता था। उनके कथोपकथन मनोवैज्ञानिक हैं। प्रेमचंद एक सच्चे समाज-सुधारक और क्रांतिकारी लेखक थे। उन्होंने अपनी कृतियों में दहेजप्रथा, बेमेल विवाह का विरोध किया। और विधवा विवाह पर जोर दे कर खुद एक बाल विधवा शिवारानी से विवाह कर समाज के समक्ष एक उदाहरण प्रस्तुत किया। नारी प्रेमचंद के लिए श्र्रद्धेय थीं। समाज में उपेक्षिता, अपमानिता और पतिता स्त्रियों के प्रति उनका öदय सहानुभूति से परिपूर्ण रहा। प्रेमचंद ने अपनी कृतियों में आम बोलचाल की सीधी और सरल भाषा का प्रयोग किया है। उनके हिंदी पात्र हिंदी और मुस्लिम पात्र क् र्दू बोलते हैं। वहीं ग्रामीणों की भाषा ग्रामीण है, और शिक्षितों की भाषा शुद्ध और परिष्कृत है। प्रेमचंद ने हिंदी और कर््दू दोनों की शैलियों को मिला कर अपनी रचनाएं लिखीं। दोनों ही भाषाओं पर उनका अधिकार था, इसलिए वे भावों को व्यक्त करने के लिए बड.े सरल और सजीव शब्द ढूंढ लेते थे। चुलबुलापन, सरलता और निखार उनकी शैली की पहचान है। प्रेमचंद हिंदी साहित्य के युग प्रर्वतक हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं में जन साधारण की भावनाओं, परिस्थितियों और उनकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण किया है। प्रेमचंद ने उपन्यास लेखन के साथ-साथ लगभग 300 कहानियां भी लिखी हैं, जिन्हें मानसरोवर के आठ खंडों में प्रकाशित किया गया था। उन्होंने हिंदी साहित्य में भी अपना अतुलनीय योगदान दिया। प्रेमचंद के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने हिंदी कहानियों की कर्मभूमि ही नहीं बदली, बल्कि उनका कायाकल्प भी कर दिया। उनकी कहानियों की एक विशेषता यह भी थी कि उन्होंने हिंदी कहानी में स्वतंत्र चरित्र के निर्माण की शुरूआत की, जो आदर्शवादी ना होकर यथार्थवादी थे। प्रेमचंद के पूर्व में कहानियों में चरित्र लेखक के हाथों की कठपुतली हुआ करते थे। वहीं प्रेमचंद ने अपनी कहानियों में स्वतंत्र चरित्र का निर्माण किया, जो परिस्थिति के अनुसार व्यवहार करते थे। प्रेमचंद ने पूर्व में जिन रचनाओं की रचना की वो कुछ विषयों तक ही सीमित थीं लेकिन बाद मंे प्रेमचंद ने हिंदी कहानियों में विषय वैविध्य को स्थापित किया। जैसे- पूस की रात में किसानों की समस्या, बूढ.ी काकी में वृद्धों की समस्या, दूध का दाम में दलित समस्या, कफन में गरीबी की समस्या, नया विवाह में महिलाओं की समस्या का उल्लेख किया है। प्रेमचंद ने अपनी रचनाओं में ना सिर्फ समाजिक मुद्रदों को उठाया बल्कि उसका समाधान भी लोगों के समक्ष रखा। प्रेमचंद की कहानियों की एक विशेषता यह भी है कि उनकी कहानियां व्यापक सामाजिक आधार पर विकसित हुई हैं। प्रेमचंद की रचना काल के समय भारत का स्वाधीनता संघर्ष अपने चरम स्तर पर था। ऐसे समय में प्रेमचंद ने अपनी कहानियों में निम्न वर्ग व ग्रामीण जीवन की जन समस्याओं को उकेरा। इसके साथ ही ईदगाह व शतरंज के खिलाड.ी जैसी कहानियों में प्रेमचंद अपनी कहानियों में मुस्लिम अल्पसंख्यकों को भी समाहित करते हैं, जो उनकी लोकतांत्रिक मानसिकता व समावेशी दृष्टि का परिचायक है। प्रेमचंद के रचनाकाल में भारतीय समाज में दलितांे की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। ठाकुर का कुआं, दूध का दाम, सदगति आदि कहानियों में दलित मनोविज्ञान का चित्रण किया है। सदगति में प्रेमचंद ने दलित मनोविज्ञान के दो पक्षों का उल्लेख किया है एक वर्ग ऐसा है जो शोषण को स्वीकार्य समझता है, तो दूसरी ओर दलितों में एक ऐसा उभरता हुआ वर्ग है जो इस शोषण का विरोध कर रहा है। अपने लेखन कला के माध्यम से प्रेमचंद ने जिन स्वतं़त्र चरित्रों का निर्माण किया, चरम यर्थाथवाद की स्थापना की और चरित्र प्रधान कहानियों की नींव डाली यह सारी विशेषताएं बाद की हिंदी कहानी आंदोलन का आधार बनीं और नई कहानी के आंदोलन कहानीकारों ने भोगे हुए यर्थाथ्र को प्रथमिकता देते हुउ इन विशेषताओं को पूर्णता तक पहुंचाया। अर्थात प्रेमचंद की कहानियों के कला वैशिष्ट्रय ने हिंदी कहानी के विकास में मंहती भूमिका का निर्वहन किया।
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