जिंदगी अगर जीने का नाम है, तो मौत एक शाश्वत सत्य भी है। कहने का तात्पर्य यह है कि जो इंसान जन्म लेता है उसकी मृत्यु निश्चित है। आज की व्यस्त ंिजंदगी में और आधुनिक जीवन शैली की चाह ने लोगों को मशीन की तरह काम करने पर मजबूर कर दिया है। इसका नतीजा यह हो रहा है कि लोग अपने परिवार और आस पड.ोस से दूर हो रहे हैं। वे अब व्यवहारिक जिंदगी चाह कर भी नहीं जी पा रहे हैं। लेकिन वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इंसानियत की मिसाल कायम कर दूसरों के लिए वो सब कर जाते हैं जो उनके अपने भी ना कर पायें। ऐसे ही शख्स हैं एच बी रोड रांची के रहने वाले विश्वजीत गूईं जो अपने घर परिवार और काम के अलावा उन अनगिनत लाशों को उनकी आखिरी मंजिल तक पहुंचाते हैं। उन सब को जिनसे इनका कोई नाता भी नहीं होता है। और इस काम के लिए वे किसी से कोई शुल्क भी नहीं लेते हैं। विश्वजीत बताते हैं कि अब तक उन्होंने 168 लाशों को श्मशान घाट पहुंचाया है। जेठ की गरमी हो या सावन की झड.ी या फिर दिसंबर की कड.कती ठंड इन्हें बस कोई फोन कर दे विश्वजीत वहां तुरंत पहुंच जाते हैं। और अपने एंबूलेंस से लाश को उसकी अंतिम मंजिल तक पहुंचाते हैं।
धर्म और जाति पात से क्पर विश्वजीत लगातार सालों से समाज सेवा में कार्यरत हैं। आखिर किस कारण से विश्वजीत लोगों की निस्वार्थ भाव से मदद करते हैं। इस सवाल के जवाब में विश्वजीत बताते हैं कि बचपन में मैंने अभाव की जिंदगी देखी है। छोटी उम्र में ही पिता का स्वर्गवास हो जाने के कारण आर्थिक संकटों का सामना करना पड.ा। ऐसे में परिवार में मैंने देखा कि मेरे करीबी रिश्तेदार जिनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी उनकी आसाघ्य रोग के कारण मृत्यु हो गई थी। और उनका बेटा बाहर रहता था। उस वक्त उन्हें श्मशान घाट तक ले जाने के लिए कोई साधन और व्यक्ति भी उपलब्ध नहीं थे। इस घटना ने मुझे अंदर तक झकझोर दिया। और तभी मैंने यह तय कर लिया था कि मैं बड.े होकर पैसे कमाने लगूंगा तो लोगों की मदद करूंगा। ताकि किसी को भी मरने के उपरांत यह सब कुछ झेलना ना पड.े जो मेरे रिश्तेदार को झेलना पड.ा।
इस काम के लिए विश्वजीत किसी जाति धर्म के लोग नहीं देखते हैं। इन्हें कोई भी धर्म या जाति के लोग लाश ले जाने के लिए बुलाते हैं ये वहां पहुंच कर उनकी मदद करते हैं। वर्तमान परिवेश में पूरा विश्व कोरोना जैसी छूत की बीमारी से जूझ रहा है। लोग अपने ही घर के सदस्यों से अगर वह इस बीमारी से पीडि.त है तो उससे दूरी बना कर रहते हैं। और अगर किसी की इस बीमारी के द्वारा मृत्यु हो जाती है तो लोग उसके अंतिम संस्कार में जाना तो दूर उस व्यक्ति की लाश को अपने आस-पास न जलाने देते हैं और ना ही दफनाने देते हैं। ऐसे में विश्वजीत अपनी जान की परवाह किए बिना ही उस लाश को श्मशान घाट में पहुंचाने से भी पीछे नहीं हटते। इस दौरान वो अपनी सुरक्षा का ख्याल रखते है। आज के मतलबी दुनिया में विश्वजीत जैसे निस्वार्थ भाव से लोगों की सेवा करने वाले लोग विरले ही मिलते है। इनसे संपर्क करने के लिए इनके एंबूलेंस पर लिखें नंबरों को कोई भी जरूरतमंद व्यक्ति डायल कर सकता है।
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