लोकचिंतक, लोकरक्षक दिव्य प्रेमी श्रीकृष्ण



   श्रीकृष्ण के हर स्वरूप की पूजा की जाती है, उनका हर रूप खूबसूरत, मनमोहक और पूजनीय है। बाल  रूप में वे यशोदा मैया के दुलारे हैं, प्रेमी के रूप में राधा को सताने वाले कृष्ण हैं, और मार्गदर्शक के रूप में अर्जुन के सारथी बन कर समस्त जगत को गीता का ज्ञान देने वाले लोकचिंतक और गोकुलवासियों की रक्षा कर लोकरक्षक भी हैं। भाद्रपद की अष्टमी को देवकी के पुत्र के रूप में जन्में भगवान कृष्ण, विष्णु के अवतारों में से एक हैं। श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में ही इस दिन जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाता है। कृष्ण का नाम लेने मात्र से ही लोगों के मन में एक आकर्षक छवि उभर जाती है। एक ऐसा दिव्य आकर्षण है इस नाम में कि लोग एक चिर आनंद में गोते खाने लगते हैं। श्रीकृष्ण का जीवन चरित्र जितना मोहक है उतना ही रहस्यमय भी है। कभी वे लागों के समक्ष एक चंचल बालक की छवि के रूप में सामने आते हैं, तो कभी गंभीर बन कर बाल्यावस्था में ही पूतना नामक राक्षसी का वध कर के एक गंभीर छवि लोगों के समक्ष प्रस्तुत करते हैं। राधा के लिए वे एक सरल, निश्छल प्रेमी हैं, जो दुनियादारी के बंधनों से दूर सिर्फ उसी के श्रीकृष्ण हैं, वहीं दूसरी ओर मीरा के अलौकिक प्रेम के रूप में एक जटिल दिव्य प्रेमी हैं। जो प्रत्यक्ष हो कर भी पास हैं। मीरा के जहर के प्याले को अमृत और सांप को फूलों की माला बना कर अपने होने का अहसास करवाते हैं।  कहने का तात्पर्य यह है कि भक्ति ऐसी चीज है जो व्यक्ति को खुद से भी खाली कर देती है। भक्ति का मतलब भरोसे और आस्था के साथ आगे बढ.ने से है। कुछ भी हो आप निश्चिंत रहें कि आप सुरक्षित हैं। भक्ति कोई मत या मान्यता नहीं है। भक्ति इस अस्तित्व में होेने का सबसे खुबसूरत तरीका है। जिसे मीरा ने आत्मसात कर लिया, और कृष्ण की दीवानी हो गई।  श्रीकृष्ण के लीलाओं को शब्दों में समेटना असंभव है। विष्णु के आठवें अवतार और देवकी के आठवें पुत्र श्रीकृष्ण की  लीलाएं अदभुत और अवर्णिय है। उनके जीवन की सारी लीलाएं एक पाठशाला है। वे ज्ञानयोगी, कर्मयोगी और भक्ति का उद्रगम हैं। वह एक ऐसे रहस्यमयी सागर हैं जिसमें गोते लगाने मात्र से ही लोगों का जीवन धन्य हो जाता है। श्रीकृष्ण का जन्म द्वापर युग में हुआ था। इस युग में उन्हें युगपुरूष या युगावतार का सर्वश्रेष्ठ स्थान दिया गया। मर्हिष वेदव्यास द्वारा रचित श्रीमदभागवत और महाभारत में कृष्ण और अर्जुन का संवाद है, जो आज भी पूरे विश्व में लोकप्रिय है। इस कृति के लिए कृष्ण को जगतगुरू का भी सम्मान दिया जाता है। एक शिक्षक के रूप में श्रीकृष्ण ने भीष्म पितामह जो मृत्यु की शैया पर अपनी अंतिम सांसे ले रहे थे उन्हें उनके सवालों का जवाब दे कर उन्हें सत्य असत्य के भंवर से उबारा। भीष्म ने महाभारत युद्ध की समाप्ति पर कृष्ण से पूछा इस युद्ध में जो कुछ भी हुआ अर्थात र्दुयोधन का वध, निहत्थे कंस का वध, आर्चाय द्रोण का वध, दुशासन की छाती का चीरा जाना और जयद्रथ का वध क्या यह सब उचित था, ठीक था? तब श्रीकृष्ण ने कहा इन सब का उत्तर मैं कैसे दे सकता हूं , क्योंकि इस युद्ध में मैं कहीं था ही नहीं। इस युद्ध में तो सिर्फ अर्जुन था, उसी ने वध किया। भीष्म ने फिर कहा सनातन धर्म में छल नहीं है पर आपने युद्ध छल से जीता।  तब भीष्म पितामह की जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए कृष्ण ने कहा कुछ भी बुरा या अनैतिक नहीं हुआ वही हुआ जो होना चाहिए था। युद्ध में जो मारे गए हैं उन सभी ने छल किया था। उनकी समाप्ति के लिए हर छल उचित था।  क्योंकि पाप का अंत आवश्यक था फिर चाहे वो जिस भी विधि से हो। श्रीकृष्ण ने भविष्य की ओर संकेत करते हुए यह भी बता दिया था कि आने वाला समय और भी नकारात्मक होगा। कलयुग में लोगों कोे कृष्ण से भी अधिक कठोर होना होगा, नहीं तो धर्म समाप्त हो जाएगा। जब अनैतिक और क्रूर शक्तियां धर्म का विनाश करने के लिए आक्रमण कर रहीं हों , तो नैतिकता का पाठ आत्मघाती होता है। विजय प्राप्त करने के लिए भविष्य को यह सीखना ही होगा।





















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Milan Tomic

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