भारती जी की रचनाएं समाज का दर्पण

भारती जी की रचनाएं समाज का दर्पण


सदाबहार
उपन्यास गुनाहों का देवता के रचनाकार धर्मवीर भारती नई कविता के भावुक कवि, कथाकार निबंधकार एवं समाजिक विचारक भी थे। साथ ही साथ वे धर्मयुग पत्रिका के संपादक भी थे। बहुमुखी प्रतिभा के धनी भारती जी अपने नाटक अंधा-युग के लिए भी जाने जाते हैं। भारती जी अपनी बातों को कहानियों के माध्यम से कहते थे। भारती जी का जन्म 25 दिसबंर 1926 को हुआ था। इन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय से एम . की डिग्री लेने के बाद पी.एच. डी की उपाधि प्राप्त की। कुछ दिन भारती जी ने प्रयाग विश्वविद्याालय में पढाने का भी कार्य किया। लेकिन इन्हें यात्राओं का बहुत शौक थाA इसलिए इन्होंने अनगिनत यात्राएं किये। इसके अलावा भारती जी ने अध्ययन पर भी बहुत जोर दिया था। 1972 में भारत सरकार ने भारती जी को हिंदी सेवाओं एवं हिंदी पत्रकारिता में योगदान के लिए पद्रमश्री से अलंकृत कर सम्मानित किया। भारती जी ने खड. बोली में अपनी रचनाओं की रचना की है। अंग्रेजी] उर्दू और संस्कृत में इन्होंने अपनी रचनाएं लिखीं। साथ ही साथ देशज शब्दों और मुहाबरों का भी प्रयोग किया हैं। भारती जी कि कविताओं में रागतत्व और कहानियों और उपन्यासों में समाजिक एवं मनोवैज्ञानिक समस्याओं को लेकर बड. जीवंत चरित्र प्रस्तुत किए गए हैं। भारती जी में किसी भी दृश्य को शब्दों की सीमा मे बांटकर उसमें चित्रमयता प्रदान करने की अदभुत क्षमता थी। बचपन की एक घटना ने उनके भविष्य का आकलन कर दिया था। जब भारती जी छोटे थे, तब देवदास फिल्म थियेटर पर आई थी। भारती जी का प्रारंभिक जीवन बहुत ही संघर्ष पूर्ण रहा था। ऐसे में फिल्म देखने के पैसे भी नहीं थे। लेकिन भारती जी का बालक मन फिल्म देखने की जिद करने लगा। उन्होंने अपनी माता जी से पैसे मांगे। लेकिन उनकी माता पैसे देने में असर्मथ थीं। कुछ दिनों बाद जब माता जी के पास पैसे आए, तो उन्होंने भारती जी को फिल्म देखने के लिए पैसे दिए। भारती जी जब फिल्म देखने के लिए जा रहे थे तो दूर कहीं गाने के बोल दुख भरे दिन बीते रे भईया उन्हें सुनाई दिया। और इस गाने का ऐसा भारती जी पर असर हुआ कि उन्होंने उन पैसों से देवदास फिल्म नहीं देख कर देवदास की किताब ही खरीद ली। और यहीं से उनके अध्ययन का दौर शुरू हो गया। 

                 

भारती जी की रचनाएं समाज का दर्पण

भारती जी अध्ययन और यात्राओं को बहुत ही महत्व देते थे। उनका मानना था कि यात्राएं मनुष्य को बहुत कुछ सिखलातीं हैं। भारती जी की सदबहार रचना गुनाहों का देवता एक आदर्शवादी और क्लासिकल उपन्यास माना जाता है। भारती जी के इस उपन्यास के प्रति पाठकों का अटूट सम्मोहन हिंदी साहित्य जगत की एक बड. उपलब्धि बन गए हैं। यह उपन्यास उस समय में भारतीय भाषाओं की सबसे अधिक बिकने वाली लोकप्रिय साहित्यिक पुस्तकों में एक थी। गुनाहों का देवता मध्यम वर्गीय भारतीय समाज के एक साधारण परिवार की कहानी है। जो सिर्फ तीन किरदारों के इर्द र्गिद घूमती है। सूधा] चंदर और पम्मी प्रेम] समर्पण और समाज के बंधनों की कहानी है गुनाहों का देवता। साधारण भाषा में लिखी गयी यह पुस्तक समाज का दर्पण है। लेखक ने इतने सरल भाषा में इस कहानी को लिखा है कि पाठकों को किरदारों से अलग जुड-ाव महसूस होने लगता है। दर्द भरी प्रेम गाथा है गुनाहों का देवता।  भारती जी के लेखनी में एक बात थी कि उनका साहित्य पाठकों से बातें करता है। वहीं कनुप्रिया जो एक खंडकाव्य है इस में भारती जी ने राधा कृष्ण के प्रणय संबंधों को एक नया अर्थ देने की कोशिश की है। कृष्ण की प्रिया राधा की अनुभूतियों की गाथा है कनुप्रिया। इसमें भारती जी ने सूक्ष्म अनुभूति को कोमलता के साथ शब्दों में पिरोया है। नारी और नारायण के बीच की दीवार है जो टूट सकती है। यह कहा जा सकता है कि चिर विरह और चिर मिलन की आध्यात्मिक गाथा है कनुप्रिया। भारती जी के नाटक अंधा युग में समाज की विसंगतियों को भारती जी ने दिखाया है। इस नाटक में भारती जी ने पौराणिक कथा से आधुनिक भावबोध को स्थापित किया है। आज के विघटित मानव मुल्यों की समस्या को नाटक में प्रमुखता से स्थान दिया गया है। नाटककार ने युद्ध की समस्या और उसके विध्वंशकारी परिणाम] भाई-&भतीजावाद] धर्म -अधर्म आदर्श-यथारथ आदि जीवन सत्यों को मुखरित किया गया है।

 

 

 

 

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Milan Tomic

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