हरिवंश राय बच्चन का नाम लेने से ही हमारे जेहन में उनकी कालजयी कृति मधुशाला की छवि उभरती है। बच्चन जी की मधुशाला ऐसी रचना है] जिसने हर उम्र के लोगों पर अपना प्रभाव डाला है। बच्चन जी की रचनाओं में भावुकता के साथ-साथ रस और आनंद भी देखने को मिलता है। प्रेम और मस्ती के कवि हरिवंश राय बच्चन बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। बच्चन जी एक कवि के साथ-साथ गीतकार भी थे। लेकिन उन्हें प्रसिद्धि कविताओं के जरिए ही मिली। बच्चन जी की रचनाओं में सरलता और समरसता दोनों ही देखने को मिलती हैं। इनकी कविताएं सम्मोहक होती थी, जो लोगों को सहज ही सम्मोहित कर लेती थीं। इनकी शिक्षा-दीक्षा उत्तर प्रदेश में हुई इलाहाबाद से एम. ए की डिग्री लेने के बाद पी एच डी की डिग्री के लिए ये विदेश गए और वहां पर इन्होंने डब्लू बी इस्ट की कविताओं पर अपना शोध कार्य किया। अंग्रेजी से पी एच डी करने के बाद भी हिंदी से लगाव और जुड-kव होने के कारण बच्चन जी ने अपना लेखन कार्य हिंदी में किया। और मधुशाला और निशा निमंत्रण जैसी अमर काव्य कृतियों की रचना की। बच्चनजी का व्यक्तिगत जीवन संघर्षपूर्ण ही रहा। छोटी उम्र में पिता की मृत्यु होने के कारण परिवारिक जिम्मेदारियां इन्हें कम उम्र में ही मिल र्गईं । उन्नीस वर्ष की उम्र में बच्चनजी का विवाह श्यामा से हुआ था। प्रेम को जब इन्होंने जाना ही था कि श्यामा की मृत्यु टी बी के कारण हो गई। इस घटना के बाद बच्चनजी टूट-फूट से गए] लेकिन वे बिखरे नहीं बल्कि उन्होंने अपने को समेटा और अपनी वेदना को शब्दों के माध्यम से अपनी पहली आत्मकथा क्या भूलूं ] क्या याद कंरू लिख कर पाठकों को अपने दुख अपनी पीड-ा से रूबरू करवाया। इसके बाद बच्चनजी अनगिनत रचनाएं लिखीं। इसी बीच दिल्ली में बच्चनजी कविता पाठ के लिए गए] वहां उनकी मुलाकात तेजीजी से हुई। पहली मुलाकात में ही इन दोनों का भावनात्मक मिलन हो गया था। और बच्चन जी तेजी की खुबसूरती देख कर सभी के आग्रह पर अपनी पुरानी लिखी कविता सुनाया।
इसीलिए सौंदर्य देखकर
शंका यह उठती तत्काल]
कहीं फंसाने को तो मेरे
नहीं बिछाया जाता जाल।
उसके बाद उसी रात को बच्चनजी ने अनगिनत कविताएं सुनाई। कविता की हर पंक्ति में उनका दर्द समाया हुआ था। जिसे बच्चनजी ने अपनी पहली पत्नी प्रेमा की मृत्यु के दौरान लिखा था। उष्णता आवेग बन कर वाणी बन गई थी। धीरे-धीरे सभी लोग कमरे से चले गए लेकिन बच्चनजी और तेजी सूरी वहीं रूके और उन दोनों के आंखों से निरंतर अश्रुधारा बह रही थी। और वे उस आंसूओं के बहाव में खुद को हल्का नहीं बल्कि और भारी महसूस कर रहे थे। सुबह बच्चनजी को कुछ बदली हुई सी लगी। उन्हें महसूस हुआ कि सिर्फ प्रकृति ही नहीं, पूरा ब्रहृमांड ही रातों रात एक प्रेमी का रूप धारण कर चुका है। उन्हें लगा के दिल के दरवाजे खुल गए हैं। और उसी में से तेजी सूरी ने उनके अंदर प्रवेश करके उनको आंदोलित कर दिया। तेजी जी के साथ विवाह के बाद बच्चन जी ने अपनी आत्मकथा के साथ-साथ अनगिनत कविताएं और गीत भी लिखा। उनकी कविताएं यर्थाथ को बंया करते हुए जीवन दर्शन का पाठ पढ.ाती हैं। साथ ही साथ इनकी कविताओं ने भारतीय साहित्य में परिर्वतन करते हुए हालावाद से परिचय भी करवाया। वे लोगों को दुखों से घबराने को मना करते थे। बल्कि उनका मानना था कि दुख का डट कर सामना करना चाहिए। इसलिए वे लोगों से कहा करते थे कि फूलों की तरह मत बनो, वो खिल कर बिखर जाते हैं। बनना हो तो पत्थर की तरह बनो क्या पता एक दिन तराशे जाओ और खुदा बन जाओ। जीवन की मधुरता और कटुता का सम्मान करने वाले बच्चन ने अपनी अनुभूतियों का बहुत ही सुंदर भाव-प्रवण] मार्मिक चित्रण अत्यंत सरल और सहज भाषा में किया है। आपबीती में जगबीती को बयां करने वाले बच्चन कहते हैं मेरा जीवन सबका साखी है। कालजयी साहित्य का प्रणयन करने वाले बच्चन का साहित्य मानव मात्र के लिए प्रेरणा का स्रोत है। कहा जा सकता है कि बच्चनजी ने जो जिया वही शब्दों के माध्यम से अपनी बात पाठकों तक रखा। इनके साहित्य में प्रेम] सौंदर्य और मस्ती का अद्रभूत संगम देखने को मिलता है। और इनकी कालजयी कृति मधुशाला ने तो हिंदी साहित्य में इन्हें अमर ही कर दिया।


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