साल अंतरराष्टीय महिला दिवस पर कुछ न कुछ लिखती जरूर
हूं। तो सोचा इस बार कैसे भूल जाउं। िपछले बरस मैंने अपने लेख में लिखा था 8
मार्च यानी अंतरराष्टीय म िहला दिवस। आज मैं मिहलाओं के बारे में चर्चा कैसे न
करूं, क्योंकि साल के 364 दिन तो वे अचर्चित ही रह जाती हैं। सिर्फ एक ही तो उन्हें
चर्चा का अवसर मिलता है। लेकिन आज मिहलाओं तो आलम ये है कि शायद ही कोई दिन ऐसा
रहा हो जब उनकी चर्चा नहीं होती हो। आप शायद सोच रहे होगें मैं ऐसा क्यों कह रही
हूं चलिए आप की चिंता दूर करती हूं। रोज सुबह जब हम अखबार खोलते हैं, तो शायद ही
कोई ऐसा दिन रहा हो जब हमें महिलाओं के साथ बलात्कार, छेड़छाड़, दहेज उत्पीड़न,
यौन शोषण और डायन जैसी कुप्रथा की खबरें नहीं पढ़ने को मिलती हो। ऐसी घटनाएं मन को
झकझोरती हैं, हम गुस्से का इजहार करते हैं और हक की बात दोहराते हैं। लेकिन
धीरे-धीरे घटना को भूल जाते हैं। कुछ पढ़े लिखे लोग दिस इज अनएक्सेप्टेबल कहते
हैं। फिर आज जिसे अनएक्सेप्टेबल कहा जाता है, उसे हम कल एक्सेप्टेबल मान लेते
हैं या फिर उसका जिक्र ही नहीं करते। जैसे जैसे दिन गुजरते हैं हम चीजों को फरगेट
कर उसे भूल जाते हैं। इसका ताजा उदाहरण दिल्ली गैंग रेप की घटना है। एक बहादूर
लड़की जिंदगी की जंग लड़ते- लड़ते शहीद हो गई और उसके अपराधी अभी तक जिंदा हैं।
भले ही र्कोट में केस चल रहे हों, पर उन सभी अपरािधयों की सांसें तो अब तक चल रही
हैं ना। हम कह सकते हैं कि किश्तों की मौत मरती महिलाएं कई तरह से प्रताडित होती
हैं। एक प्रतििष्ठत कानूनविद ने कहा था कि समाजिक कुरीतियों, विसंगतियों,
अंधविश्वासों को समाप्त करने के लिए कानून बनाने से पूर्व समाज में उनके समापन
के लिए वातावरण बनाना ज्यादा जरूरी है। महिलाओं के प्रति उपजती नयी नपुसंक विकृत प्रवृतियां
हमें हिला कर रख देती हैं। लेकिन यही प्रवृति समाज के किसी कोने में फलफूल रही
हैं। न सरकार चौकंन्नी है, न समाज चौकन्ना है। हम दिल्ली रेप कांड की घटना से
कांप जरूर उठते हैं, लेकिन हकीकत यही है कि भारत के कई शहरों पर दिल्ली जैसी
घटनाएं निरंतर होते रहती हैं। एक आंकड़ों के मुताबिक बलात्कार के अधिकांश मामलें
पुलिस तक नहीं पहुंच पाते, क्योंकि ज्यादातर मामलों में पीडित को पता नहीं होता
है कि उसे कहां जा कर न्याय की गुहार लगानी है। धीरे-धीरे सरकार लोगों के आक्रोश
को देख कर दबाव में आ रही है। और महिलाओं की सुरक्षा के लिए कदम उठाने की राह पकड़
रही है। तभी तो न्यायमूर्त्ति जेएस वर्मा समिति एवं न्यायमूर्त्ति उषा मेहरा
आयोग की रिर्पोट के 90 प्रतिशत सुझावों को सरकार ने मान लिया है। इस बार संयुक्त
राष्ट्संघ ने अंतरराष्ट्ीय महिला दिवस का नारा दिया है। एक नारा समय रहते
महिलाओं के विरूद्ध हिंसा का अंत शायद इससे महिलाओं का कुछ भला हो। इस बार भी
महिलाओं को उनका अस्तित्व याद दिलाने के लिए 8 मार्च आएगा। पर आज हमें बंद कमरे
से बाहर निकल कर अपने हक और अधिकारों के लिए खुद से ये संकल्प लेना होगा कि समाज
के हर पायदान पर अब साल का र्सिफ एक दिन नहीं बल्कि अब हर दिन हमारा हो। इसी सोच
के जरिए हम स्त्री सशक्तिकरण की लौ जला सकते हैं। खुले आसमान में स्वच्छंद
निर्भय हो कर उंची उड़ान भर सकते हैं।
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