उपन्यास सम्राट प्रेमचंद और उनका साहित्य भारतीय संस्कृति की धरोहर है। उन्होंने समाज की अन्य समस्याओं पर लेखनी तोे चलाई ही साथ ही साथ नारी की व्यथा पर भी दृष्टि डाली है। एक स्त्री और पुरूष ही सृष्टि के सृजनहार होते हैं। समाज के निर्माण में दोनों की भूमिका अहम होती है। लेकिन हमारे पुरूष प्रधान समाज में पुरूष को मान-सम्मान तो दिया जाता है, लेकिन एक स्त्री हमेशा ही उपेक्षित होती आई है। नारी की आत्मा को उसकी तमाम अच्छाईयों और बुराईयों के साथ प्रेमचंद ने पहली बार यथार्थवादी ढंग से प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया। उन्होंने अपने साहित्य के माध्यम से समाज में स्त्रियों की वास्तविक स्थिति पर न र्सिफ प्रश्न उठाये, समस्याएं बयान किया। बल्कि उनके समाधान की तरफ भी लोगों का ध्यान आकृष्ट करवाया। प्रेमचंद के नारी पात्रों में शहरीय वर्ग, गांव का किसान समुदाय और अभिजात्य वर्ग के दर्शन होते हैं। उनकी कृतियों में सामाजिक परिस्थितियां सत्यता लिए हुए ज्यों की त्यों नजर आती है। कहीं कोई काल्पनिकता का बोध नहीं होता। असफलताएं भी हैं, और सफलताओं द्वारा नयी दिशा भी दिखाई गई है। प्रेमचंद की नारी पात्रों में मां, पत्नी, प्रेमिका, बहन समाज सुधारक, देशप्रेमी, और आश्रिता जैसे कई रिश्ते दिखाई देते हैं। संघर्षरत एवं मेहनतकश नारियां प्रेमचंद के साहित्य की जान हैं। उपन्यास ’गबन’ की नारी पात्र जालपा प्रारंभ में पितृसत्तात्मक समाज का अंग है, जो दूसरों पर आश्रित रहती है। सांमती परिवार की महिलाओं की भांति उसे भी आभूषणों से अतिशय प्रेम था। उसे अपने अलावा कुछ भी नहीं सूझता था। लेकिन जब उसका पति रामनाथ घर छोड.कर चला जाता है, तब जालपा के चरित्र में परिर्वतन आता है। वह अपने पति को ढूंढने के घर की दहलीज लांघ कर बाहर निकलती है। और कलकत्ता जैसे शहर में अकेली पहुंच कर अपने पति को सही राह पर चलने के लिए प्रेरित करती है। वहीं उपन्यास की दूसरी पात्र जोहरा जो एक वेश्या है। लेकिन वह आत्मनिर्भर एवं स्वालंबी है। इस तरह प्रेमचंद ने समाज में स्त्रियों की दशा को उजागर किया। उपन्यास ’सेवासदन’ की नारी पात्र सुमन प्रारंभ में एक कमजोर चरित्र के साथ उपस्थित होती है। पिता के लाड. प्यार ने उसे अभिमानी बना दिया था। लेकिन उसके चरित्र की विशेषताओं का उद्रघाटन तब होता है जब वह पिता के घर से पति के घर में जाती है। सुंदर अभिमानी सुमन का विवाह जब गजाधर जैसे कुरूप, निर्धन मात्र 15 रू मासिक कमाने वाले अधेड.एवं दोहाजू से होता है, तब उसके जीवन की परीक्षा का समय शुरू होता है। वह ससुराल में सारे काम करती है, जो उसने कभी नहीं किया था। इस जगह सुमन के चरित्र में समझौते की प्रवृति का पता चलता है। लेकिन स्थिती तब असहाय हो जाती है जब गजाधर उसके चरित्र पर उंगली उठाता है। और उसे घर से निकल जाने पर मजबूर कर देता है। वह अपने आत्मसम्मान की रक्षा के लिए घर त्याग कर वेश्या का जीवन स्वीकार कर स्वालंबन का मार्ग तलाशती है। लेकिन खुद को इस दलदल में फंसने नहीं देती है। सुमन अपने चरित्र की इसी पवित्रता के कारण विधवा आश्रम में रहना स्वीकार करती है। जहां उसके चरित्र की कर्मठता के दर्शन होते हैं। निर्भीकता और साहस भी सुमन के चरित्र की विशेषता है। सेवा भावना भी उसमें कूट-कूट कर भरी हुई है। वह अपने बहन की प्रसव काल के लिए अपने आत्मसम्मान को ताक पर रख कर उसके घर पर रूकती है। इस तरह प्रेमचंद ने सुमन को एक संचालिका के रूप में उभारा है। ’गोदान’ जो प्रेमचंद की कालजयी रचना है। इसकी नारी पात्र धनिया सशक्त इरादे की निडर और धैर्यवान स्त्री है। जो यथासंभव परिस्थितिवश विरोध और विद्रोह का साहस रखती है। उसकी अद्रभूत वाक -शक्ति से होरी ही नहीं, पूरा गांव कांपता है। विपरीत परिस्थितियों में उसने चुप रहना नहीं सीखा है। वह एक कर्मठ नारी है जो घर के उत्तरदायित्व से लेकर पंचायत में जवाबदेही तक सभी कार्यों में होरी के साथ कदम से कदम मिला कर चलती है। वहीं दूसरी नारी पात्र झुनिया प्यार करके शादी का फैसला करती है, यहां वो पुरूष से ज्यादा सशक्त है। पति में हिम्मत नहीं होने के कारण वह अपने सास- ससुर को अपने रिश्ते के बारे में खुुद बताती है। गर्भावस्था के दौरान ताड.ी पी कर आए गोबर की प्रताड.ना की शिकार होती है। फिर हड.ताल में घायल हो कर आए गोबर की जी जान से सेवा करती है। एक और पात्र गोदान में बहुत चर्चित रहा और वो है मालती का है। वह आधुनिक जागरूक चतुर और हाजिर जवाब है, उसके विचार परंपरागत न होकर आधुनिक हैं। पर वह भारतीय नारी का अनुकरण करते हुए सेवा, त्याग का मार्ग अपनाती है। इसलिए प्रेमचंद ने मालती को कहा है कि वह बाहर से तितली और भीतर से मधुमक्खी है। वहीं ‘कर्मभूमि‘ उपन्यास की नारी पात्र सुखदा एक समाज कल्याण और आत्मशक्ति के रूप में उभरा व्यक्तित्व है। सुखदा का घर परिवार, ससुर की जिम्मेदारी को निभाते हुए, पति का साथ ना होने पर भी बाहर नौकरी करना, एवं लोकहित के लिए आवाज उठाना, जेल जाना ये सब नारी के चरित्रिक विशेषता के सशक्त उदाहरण है। प्रतिज्ञा उपन्यास की नारी पात्र पूर्णा सौंर्दय की प्रति मूर्ति होते हुए वैधव्य को नसीब समझ कर कृष्ण की मूर्ति में लीन हो जाती है। पति की मौत के बाद धर्माचलंबियों एवं पोंगा पंडि.तों द्वारा एक विधवा की अस्मत से खेला जाता है। इसका प्रेमचंद ने बहुत ही दुखद चित्रण किया है। गायत्री रासलीला के दलदल में घंस कर रह जाती है। वहीं धुनिया और स्वामिनी अपने मन मुताबिक विवाह करके संतुष्ट जीवन जीती है। विधवा जीवन प्रेमचंद के उपन्यास की मुख्य कथावस्तु रही है। प्रतिज्ञा उपन्यास में विधवा पुर्नविवाह का सारा तारतंम्य संभव होने के बाद भी प्रेमचंद अपने किसी भी पात्र से उसके प़क्ष में नहीं कहलवा पाये। बल्कि पूर्णा को वनिता आश्रम में छोड. दिया गया। इस बात से यह साफ जाहिर होता है कि प्रेमचंद यह फैसला समाज पर छोड.ना चाहते थे, उस पर थोपना नहीं चाहते थे। अतः हम कह सकते हैं कि प्रेमचंद की रचनाओं में नारी पात्रों ने पर्दा-प्रथा, अनमेल विवाह, दहेज प्रथा आदि कई समस्याओं को भोगा है। उन्हें जिया है अनमेल विवाह का दंश स्त्री झेलती रहंी, नौकरानियों से बदतर जिंदगी जीने को विवश रहीं। समाज में बेटियां बोझ थीं। लेकिन प्रेमचंद ने नारी की स्थिती सुधारने के लिए उसका आत्मनिर्भर होना स्वीकार किया। प्रेमचंद ने अपने उपन्यास की नारी पात्रों को स्वालंबी, आत्मनिर्भर और त्याग की प्रतिमूर्ति के रूप में उकेरा है। वे खुद स्त्रियों का बेहद सम्मान करते थे। प्रेमचंद कीे नारी पात्र सिर्फ एक साहित्कार की कल्पना मात्र नहीं है, बल्कि वह भारतीय नारी पूरे समाज का प्रतिनिधित्व करती है।
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