
कालजयी रचनाओं के रचनाकार डॉ. हरिवंशराय बच्चन हिन्दी भाषा के कवि और लेखक हैं। बच्चन जी हिंदी साहित्य के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर थे। उनकी रचनाओं में उनके व्यक्तित्व और जीवन-दर्शन की झलक तो मिलती ही है, साथ ही साथ उनकी बेबाक लेखन शैली पाठकों का ध्यान बर्बस ही अपनी ओर आकर्षित करती है। हिन्दी कविता के उत्तर छायावाद काल के कवियों में से एक बच्चन जी का जन्म 27 नवंबर 1907 को इलाहाबाद के एक मघ्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय तथा बनारस हिंन्दू विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्र्रेजी के प्राघ्यापक भी रहे। उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से डब्लू. वी. येट²स एंड ऑकल्टिजम विषय पर शोध किया। जीविकोपार्जन के लिए कुछ महीने आकाशवाणी इलाहाबाद में काम भी किया। उसके बाद 1955 में वे भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में विशेष कार्याधिकारी नियुक्त किये गये। उन्हें राज्यसभा के लिए मनोनीत भी किया गया था। बच्चनजी की लोकप्रियता का प्रधान कारण उनकी सहजता और संवेदनशीलता थी और यह सहजता और सरल संवेदना उसकी अनुभूतिमूलक सत्यता के कारण ही उपलब्ध हो सकी। समाज की अभावग्रस्त व्यथा, परिवेश का चमकता हुआ खोखलापन, नियति और व्यवस्था के आगे व्यक्ति की असहायता और बेबसी बच्चन के लिए सहज, व्यक्तिगत अनुभूति पर आधारित काव्य विषय थे। उन्होंने साहस और सत्यता के साथ सीधी-सादी भाषा और शैली में सहज ही कल्पनाशीलता और सामान्य बिंबों से सजा-संवार कर अपनी रचनाएं हिन्दी जगत को भेंट किया। और हिंदी जगत ने पूरे उत्साह के साथ उसका स्वागत भी किया। पढ.ने लिखने का शौक बच्चन जी को बचपन से ही रहा था। अपनी पहली पत्नी श्यामा के प्रति वे विशेष रूप से कृतज्ञ रहे, वो हमेशा बच्चनजी के प्राथमिक काल की तुकबंदियों को पढ.कर उन्हें लेखन के क्षेत्र में रमने की प्रेरणा देती रहीं। अस्वस्थता के कारण बच्चनजी की पहली पत्नी का देहावसान हो गया। जिसके बाद वे भीतर से टूट-फूट से गए। लेकिन श्यामा के साथ गुजरे जीवन के अनमोल क्षण ने ही उन्हें आगे बढ.ने की हिम्मत दी। लगभग पांच वर्षों के बाद तेजी सूरी, जो गायन और रंगमंच से जुड.ी थी इनसे इन्होंने पुर्नविवाह किया। तेजी बच्चन से अमिताभ और अजिताभ दो पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। इसके बाद इनकी लेखनी पुःन धार पकड. ली। सामान्य बोलचाल की भाषा को काव्य भाषा की गरिमा प्रदान करने का श्रेय बच्चनजी का ही है। इनकी लोकप्रियता का एक कारण इनका काव्य पाठ भी था। हिन्दी में कवि सम्मेलन की परंपरा को सुदृढ. और जनप्रिय बनाने का श्रेय बच्चनजी को ही है। इसके माध्यम से वे श्रोत्राओं के और निकट आ गए। बच्चनजी का पहला काव्य संग्रह 1935 में प्रकाशित मधुशाला है। इसके प्रकाशन के साथ ही बच्चनजी साहित्य जगत में छा गए। मधुबाला, मधुशाला और मधुकलश एक के बाद एक तीनों काव्य संग्रह शीध्र ही प्रकाशित हुए जिसे हिंदी जगत में हालावाद कहा गया। बच्चनजी के इस होलावाद के द्वारा व्यक्ति जीवन की सारी निरसताओं को स्वीकार करते हुए भी उससे मुंह मोड.ने के बजाए उसका उपयोग करने की, उसकी सारी बुराईयों और कमियों के बावजूद जो कूछ मधुर और आनंदपूर्ण होने के कारण गाद्भा है, उसे अपनाने की प्रेरणा दी। हालावाद पलायनवाद नहीं है, क्योंकि इसमें वास्तविकता का अस्वीकार नहीं है, न उससे भागने की परिकल्पना है, प्रत्युतर वास्तविकता की शुष्कता को मनस्तरंग से सींचकर हरी-भरी बना देने की सशक्त प्रेरणा है। यह भी सत्य है कि बच्चनजी की इन कविताओं में रूमानियत और कसक है, पर हालावाद गम गलत करने का निमंत्रण है, गम से घबराकर खुदकुशी करने का नहीं। बच्चनजी को पद्यभूषण, साहित्य अकादमी पुरस्कार, अफ्रीका- एशिया लेखक संघ कांफ्रेंस का लोट²स पुरस्कार,साहित्य वाचस्पति उपाधि तथा प्रथम सरस्वती सम्मान से नवाजा गया। चार खंडों में प्रकाशित उनकी आत्मकथा हिंदी के हजार वर्षों के इतिहास में पहली घटना है जब कोई साहित्यकार ने अपने बारे में सब कुछ इतनी बेबाकी, साहस और सदभावना से अपनी बात पाठकों तक पहुंचाई हो। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि बच्चनजी की आत्मकथा अपने जीवन और युग के प्रति एक ईमानदार प्रयास है।
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