हिंदी साहित्य जगत में मुंशी प्रेमचंद एक कालजयी, जनवादी तथा प्रगतिशील लेखक के रूप में जाने जाते हैं। प्रेमचंद ने 20 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में अपना लेखन कार्य आरंभ किया था, लेकिन उन्होंने उस दौर में ही आधुनिक समाज के 21 वीं शताब्दी तक की समस्याओं को अपने साहित्य लेखन के उस दौर में लिख दिया था। अपने काल से करीब सौ साल पहले घटित होने वाली घटनाओं को प्रेमचंद ने अपने साहित्य में उकेर कर अपनी दूर दृष्टि से आने वाले कल को देख लिया था। और ऐसे ही कालजयी लेखक हिंदी साहित्य जगत में एक अमिट छाप छोड. जाते हैं। प्रेमचंद ने अपनी रचनाओं में जिस प्रकार की घटनाओं कर उल्लेख किया है वह आज के संदर्भ में बिल्कुल सटीक बैठती हैं। प्रेमचंद की रचनाएं समाज का वास्तविक रूप प्रस्तुत करती हैं। चाहे एक किसान की व्यथा हो, एक दलित की पीड.ा हो या फिर एक नारी की बेबसी ही क्यों ना हो प्रेमचंद उसमें वास्तविकता का रंग दे कर पाठकों के दिल और दिमाग में एक सवाल छोड. कर उसे झकझोर जाते हैं। वाराणसी के लमही गांव में जन्में मुंशी प्रेमचंद सिर्फ हिंदी ही नहीं बल्कि उर्दू के भी लोकप्रिय उपन्यासकार, कहानीकार एवं विचारक रहे हैं। छोटी उम्र में ही प्रेमचंद के सिर से माता का हाथ उठ गया था। उसके एक साल के बाद पिताजी का भी स्वर्गावास हो गया। प्रेमचंद सौतेली मां के र्दुव्यवहार और तिरस्कार से दुखी रहने लगे। और अपने इन्हीं दुखों से दूर जाने के लिए वे किताबों के नजदीक आने लगे। लगभग 14 वर्ष की आयु में उन्होंने उर्दू की एक कहानी लिख डाली। उसके बाद से वे निरंतर लेखन कार्य करने लगे। प्रेमचंद ने समाज के शोषित, उपेक्षित और हाशिए पर रहने वाले लोगों के लिए अपनी लेखनी के माध्यम से आवाज उठाया। कृषक और महाजनी प्रताड.ना तो लगभग उनके उपन्यासों के मुख्य मुड्ढे रहे हैं। प्रेमचंद ने नारियों की पीड.ा को समझा उनकी समस्याओं और उनके संघर्ष पूर्ण जीवन को अपने उपन्यासों के माध्यम से लोगों के समक्ष रखा। प्रेमचंद के नारी पात्रों में शहरीय वर्ग, गांव का किसान और अभिजात्य वर्ग के दर्शन होते हैं। उनकी कृतियों में सामाजिक परिस्थितियां सत्यता लिए हुए ज्यों की त्यों नजर आती हैं, वहीं इनकी लेखिनी लोगों से संवाद करती है जिसमें काल्पनिकता का कोई आभास नहीं होता है।
प्रेमचंद के नारी पात्रों में एक मां, पत्नी, प्रेमिका, बहन, सौतेली मां, दोस्त, बदचलन, वेश्या, भाभी, नंनद, समाज सुधारक, देशप्रेमी, परिचारिका, आश्रिता आदि कई रिश्ते भी दिखाई देते हैं। प्रेमचंद स्त्री को उनके गुणों के कारण पुरूष से श्रेष्ठ मानते थे। उनका मानना था कि त्याग और वात्सल्य की मूर्ति नारी के जीवन का वास्तविेक आधार प्रेम है और यही उसकी मूल प्रकृति भी है। प्रेमचंद स्त्रियों का बेहद सम्मान करते थे। उनके नारी पात्र सिर्फ एक साहित्यकार की कल्पना मात्र नहीं है बल्कि भारतीय नारी समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं। प्रेमचंद एक ऐसे लेखक थे जिन्होंने न सिर्फ नारी की दयनीय स्थिति को अपनी रचनाओं में उद्धत किया बल्कि नारी को पुरूषों के समान अधिकार की भी बात सामने रखी। इनकी रचनाओं में नारी पात्र दीन दुखी तो है पर वह सशक्त है, वह अपने साथ हो रहे अत्याचारों के खिलाफ लड.ने में सक्षम भी है, तभी तो वे अपने कालजयी उपन्यास में उस दौर में लिखते हैं जिसकी कल्पना उस दौर में करना भी अपराध था। जब पुरूष में नारी के गुण आ जाते हैं तो वो महात्मा बन जाता है और अगर नारी में पुरूष के गुण आ जाये तो वो कुल्टा बन जाती है। गोदान में उद्धत ये पंक्तियां प्रेमचंद को नारी को देखने का संपूर्ण नजरिया बयां करती है। आज हमारा पूरा भारतीय समाज नारी को सशक्त बनाने के लिए जिस क्रंातिकारी दौर से गुजर रहा है उस नारी को प्रेमचंद बहुत पहले ही सशक्त साबित कर चुके हैं। प्रेमचंद के साहित्य की स्त्री सशक्त है वह कर्मभूमि में उतरकर पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर देश की आजादी के लिए संघर्ष करती है, उसे गबन कर लाये पैसों से अपने पति की भेंट में मिला चंद्रहार स्वीकृत नहीं है, वो एक गरीब किसान के दुख-दर्द की सहभागी बन अपना पति धर्म भी निभाती है। परिवार की खुशी के लिए वो सारे दुख हंसते-हंसते सह लेती है। प्रेमचंद अपनी रचनाओं में महिला चरित्रों को कर्म, शक्ति और साहस के क्षेत्र में पुरूष के समकक्ष प्रस्तुत करते हैं पर महिला की नैसर्गिक अस्मिता, गरिमा और कोमलता को वे क्षीण नहीं होने देते हैं। प्रेमचंद का साहित्य उन तमाम आधुनिक महिला सशक्तिकरण के चिंतकों के लिए उदाहरण प्रस्तुत करता है जो नारी को सशक्त बनाने के लिए उदाहरण प्रस्तुत करता है साथ ही साथ उसके चारित्रिक पतन की पैरवी करे और उसकी अस्मिता के प्रदर्शन को नारी शक्ति का प्रतीेक मानते हैं। 1916-47 के काल को प्रेमचंद युग कहा जाता है। इस काल में भारतीय समाज का रूप निरंतर बदल रहा था और सामाजिक प्रक्रियाएं व्यक्ति को प्रभावित कर रही थी। जिसका असर साहित्य में भी देखने को मिल रहा था उपन्यास और कहानियों के माध्यम से नारी चेतना एवं नारी स्वतंत्रता की बातें हो रही थी। उस वक्त समाज में स्त्रियों की दशा अच्छी नहीं थी। मध्यम व निम्न वर्ग की स्त्रियों को अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं थी और वो अपने अधिकारों से वंचित थी। जमींदार, महाजन आदि परिवार की स्त्रियां घरेलू कार्यों तक सीमित थी जबकि छोटी जाति की महिलाएं घरेलू कार्यों के साथ-साथ खेतों में भी काम करती थीं। ऐसे समय में प्रेमचंद ने नारी समस्या को मुख्य विषय बनाया तथा अपने उपन्यास एवं कहानियों के माध्यम से नारी की दुर्दशा को उजागर किया जो हिंदी साहित्य को प्रेमचंद द्वारा दी गई अपूर्व देन है। प्रेमचंद का मानना था कि नारी की उन्नति के बिना समाज का विकास संभव नहीं है उसे समाज में पूरा आदर दिया जाना चाहिए, तभी समाज उन्नति करेगा। कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि प्रेमचंद की नारी भावना ने साहित्य में एक युगांतर प्रस्तुत किया है।
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