श्रीकृष्ण के नाम लेने से हमारे सामने एक ऐसी मनमोहक छवि उत्पन्न होती है, जिसके अघरों पर मधुर मुस्कान और चेहरे पर एक दिव्य आर्कषण दिखाई देता है। जिसकी दिव्य ज्योति में हम सभी अपनी पीड.ा को भूल जाते हैं सुख की अनुभूति करते हैं। कृष्ण एक संस्कृत शब्द है, जो काला अंधेरा या गहरा नीला का समानार्थी है। अंधकार शब्द से इसका संबंध ढलते चंद्रमा के समय को कृष्ण पक्ष कहा जाता है। कृष्ण पक्ष के आठवें दिन भाद्रपद के अष्टमी तिथी को श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। और इसी दिन भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव को जन्माष्टमी के नाम से मनाया जाता है। कृष्ण बचपन में एक नटखट बालक के रूप में सभी का मन मोह लेते थे। वे अपने दुश्मनों के लिए एक योद्धा हैं, तो गोकुल के लोगों के लिए नित्य नए रास रचाने वाले कान्हा है। कृष्ण एक ऐसे अवतार हैं जिनसे प्रेम करने वाले हर घर में मौजूद हैं। वे एक चतुर राजनेता महायोगी और सज्जन पुरूष हैं। कहा जा सकता है कि कृष्ण ऐसे अवतार हैं जो जीवन के हर रंग को अपने भीतर समाए हुए हैं। जिसे लोग अलग- अलग रूपों में देख कर उनकी भक्ति कर उन्हें पूजते हैं। कृष्ण के बचपन की सखी और प्रेमिका जो गांव की सीधी सादी लड.की है जो दूध का काम करती है वो कृष्ण के बारे कहती है कि कृष्ण तो मेरे भीतर हैं। मैं कहीं भी रहूं, वे हमेशा मेरे साथ हैं। वे किसी के साथ रहें, तब भी वे मेरे साथ हैं। शिखंडी जिन्हें बचपन से बहुत सताया गया था । वे कृष्ण के बारे कहते हैं वैसे तो कृष्ण ने मुझे कोई उम्मीद की किरण नहीं दिखाई है। लेकिन वे जहां भी होते हैं, आशा की एक लहर चलती है जो सबको छूती है। और वो आशा की किरण सबका जीवन बदल देती है। मीरा जो कृष्ण को एक दिव्य प्रेमी के रूप में पूजती थी। कृष्ण के ना होने पर भी हर पल उनकी उपस्थित का अहसास करती थी वो कृष्ण के बारे में कहती है मेरे रोम रोम में कृष्ण बसते हैं प्रत्यक्ष उनकी उपस्थिती कोई मयाने नहीं रखती है। सांवला रंग होने के बावजूद कृष्ण की मनमोहक मुस्कान में वो दिव्य आर्कषण है कि लोग स्वतः ही उनके साथ प्रेम की डोर में बंध कर उन्हें अपना मान कर उनकी आराधना में लीन हो जाते है।
कृष्ण का जन्म द्वापर युग में हुआ था। उनका संपूर्ण जीवन -संघर्ष एक खुली किताब है। जन्म से लेकर देहावसान तक, उन्होंने लोकहित के लिए संघर्ष ही किया है। लेकिन उन्होंने हर विलापमय क्षण को मंगलमय क्षण में तब्दील कर दिया। उन्होंने निराशा की स्थिती में भी आशा की ज्योत दिखा कर यह संदेश दिया कि परिस्थतियां चाहें कैसी भी हो उसे अपनी विवेक और मेहनत के जरिए अपने अनुकूल बना सकते हैं। कृष्ण के जीवन से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है। सबसे पहले हम उनके जन्म को देखें तो रात्रि के बारह बजे यह एक ऐसा समय है जब विराट सूर्य भी अंधकार की गहरे सागर में होता है। कृष्ण का जन्म कारागार में हुआ था यानी एक ऐसी जगह जहां सिर्फ और सिर्फ दुःख और सिसकियों की आवाजें ही गूंजती थी। लेकिन इसी जगह पर एक दिव्य किलकारी की गूंज ने उस स्याह रात के भय को खुशी की घड.ी में परिर्वतित कर दिया। और उन्होंने सारी दुनिया को दिखा दिया कि जन्म स्थान के कारण कोई महान नहीं होता। महान होता है अपने कर्मों से । कृष्ण को लेकर उनके पिता वसुदेव जब यमुना नदी को पार करने लगे, तो भयंकर तूफान और बारिश होने लगी। तभी एक विशालकाय सर्प ने अपने फन से कृष्ण को बारिश से बचा कर उनकी रक्षा की। लोग सर्प को काल का प्रतीक मानते हैं, जो मृत्यु का सूचक होता है। लेकिन भगवान कृष्ण ने उसे अपना रक्षक बना कर समाज के समक्ष यह सीख दी कि, यदि तुम काल से भागना चाहोगे, तो भाग नहीं पाओगे। इसलिए उसे अपना मित्र बना लो। फिर उससे तुम्हें डरने की आवश्यकता नहीं पड.ेगी। और काल ही तुम्हारा रक्षक बन जायेगा। कृष्ण का रंग काला था। और यह जगजाहिर है, कि काला रंग अच्छा नहीं माना जाता है। यह सब रंगों में उपेक्षित रंग है। लेकिन कृष्ण ने अपने महान दृष्टिकोण से इस रंग में भी गुण ढूंढ कर काले रंग को भी और रंगों की तरह महत्वपूर्ण बना दिया। कृष्ण के जीवन की लीलाओं के द्वारा हमें यही संदेश मिलता है कि चाहे परिस्थिति कैसी भी हो हमें हौसला और सकारात्मक सोच रखते हुए जीवन जीना चाहिए।


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