नवरात्रि नारी के शक्ति के आदर और सम्मान के लिए मनाया जाने वाला त्योहार है। नवरात्रि स्त्री शक्ति के तीन आयामों दुर्गा] लक्ष्मी और सरस्वती का उत्सव है। नवरात्रि के नौ दिनों को इन्हीं देवी के मूल गुणों के आधार पर बांटा गया है। शुरू के तीन दिन देवी दुर्गा जो हमें शक्ति प्रदान करती है उन्हें समर्पित किया गया है। उसके बाद के तीन दिन देवी लक्ष्मी जो धन-दौलत प्रदान करती हैं उन्हें समर्पित किया गया है। और उसके बाद के तीन दिन देवी सरस्वती जो कि हमें ज्ञान प्रदान करती हैं उनको समर्पित किया गया है। विजयादशमी दसवां दिन जीवन के इन तीनों पहलुओं पर जीत को दर्शाता है। नवरात्रि एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है नौ रातें। इन नौ रातों के दौरान] आदि शक्ति के नौ रूपों की पूजा की जाती है। यह वर्ष में चार बार आता है। पौष] चैत्र] आषाढ] अश्विन प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है। दुर्गा का मतलब दुखों का नाश करने वाली होता है। अर्थात मां दुर्गा हमारे जीवन के समस्त दुखों का नाश करके हमारे जीवन में खुशियां लाती हैं।
स्त्री शक्ति की पूजा धरती पर पूजा का सबसे पुरातन रूप है। र्सिफ भारत में ही नहीं] बल्कि यूरोप अरेबिया और अफ्रीका के बड-| हिस्सों में स्त्री शक्ति की पूजा होती है। शक्ति की उपासना का भारतीय चिंतन में बड-k ही महत्व है। शक्ति ही संसार का संचालन कर रही है। शक्ति के बिना शिव भी शव की तरह चेतना शून्य माने गए हैं। स्त्री और पुरूष शक्ति और शिव के स्वरूप माने गए है। भारतीय उपासना में स्त्री तत्व की प्रधानता पुरूष से अधिक मानी गई है। नारी शक्ति की चेतना का प्रतीक है। जो प्रकृति की प्रमुख सहचरी भी है जो जड] स्वरूप पुरूष को अपनी चेतना प्रकृति से आकृष्ट कर शिव और शक्ति का मिलन कराती है। और संसार की सार्थकता सिद्ध करती है। पुरातन युग में जितने भी अवतारी पुरूष हुए] जिन्होंने समाज को तत्व ज्ञान दे कर असुरी शक्तियों का विनाश किया वे सब आदिशक्ति दुर्गा के उपासक थे। त्रेतायुग में भगवान राम ने भी रावण युद्ध के समय भगवती देवी की आराधना की थी। देवी से वरदान पा कर ही रावण कर संहार किए थे। हिंदी के कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के राम की शक्ति पूजा काव्य में देवी की महिमा का वर्णन किया गया है। शास्त्रों के अनुसार शिव और शक्ति सनातन है। जिनकी आराधना करने से व्यक्ति और राष्टकृ दोनों का कल्याण होता है। नवरात्रि में मां आदिशक्ति की आराधना के साथ ही ये प्रत्येक नारी को यह याद दिलाने भी उत्सव है कि वो अबला नहीं बल्कि वो जन्म देने वाली जननी है। नवरात्रि प्रत्येक नारी को अपने स्वाभिमान व अपनी शक्ति का स्मरण भी करवाता है, साथ ही समाज के अन्य पुरोधाओं को भी नारी शक्ति का सम्मान करने के लिए प्रेरित करता है। आदिशक्ति की आराधना के साथ-साथ यह जरूरी है कि नारी के प्रति संवेदनाओं में भी विस्तार होना चाहिए। तभी देवी की पूजा सार्थक होगी। देवी की सच्ची आराधना तभी है जब मातृशक्ति के अनेक स्वरूपांे का पूजन करते हैं] उसी तरह उनके गणों का सम्मान करेंगे। और इसकी शुरूआत हमें अपने घर में रहने वाली माता] पत्नी] बेटी] बहन और बहू में ढूढ-ना होगा। आदिशक्ति तभी प्रसन्न होंगी जब संसार की समस्त नारियों को सम्मान मिलेगा।


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