प्रकृति और मनुष्य के अद्रभूत संगम का महापर्व है छठ पूजा। यह एक ऐसा महापर्व है जिसमें प्रकृति के सौंदर्य और शैली को अपना कर इस महापर्व को मनाया जाता है। यह पर्व न केवल मनुष्य को प्राकृतिक भावनाओं के साथ जोड.ता है, बल्कि प्रकृति के नजदीक ले जाकर उसे जानने का भी अवसर देता है। इसमें उगते सूर्य और अस्त होते सूर्य की पूजा की जाती है। कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी तिथि को मनाया जाने वाला हिंदूओं का एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह दिपावली के छह दिन के बाद मनाया जाता है इसलिए इसे छठ पर्व कहा जाता है। इस पर्व में सूर्य की उपासना की जाती है और यह विशेषकर बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है। लेकिन वर्तमान परिवेश में यह देश के कोने-कोने से लेकर विदेशों में भी मनाया जाने लगा है। छठ पूजा मुख्य रूप से प्रकृति से जुड.ी हुई है, इसलिए इसे प्रकृति के लिए की जाने वाली पूजा भी कहा जाता है। छठ पूजा सूर्य, उषा, प्रकृति, जल, वायु और उनकी बहन छठी मइया को समर्पित है ताकि उन्हें पृथ्वी पर जीवन की देवताओं को बहाल करने के लिए धन्यवाद और कुछ शुभकामनाएं देने का अनुरोध किया जाए। इस पूजा में किसी भी मूर्ति की पूजा नहीं की जाती है। इसलिए भी इस पूजा को प्रकृति के साथ जोड.कर देखा जाता है। हमारे पूर्वजों का मानना था कि मानव अपने भाग्य का स्वयं निर्माता है। वह अपने परिश्रम और प्र्रकृति के साथ समंवय स्थापित कर किसी भी प्रतिकूल परिस्थिति को अपने अनुकूल कर सकता है।
छठ मनुष्यों के लिए प्रकृति के साथ जुड. कर उसके संरक्षण करने वाली पूजा है। इस पर्व में व्यक्ति प्रकृति के करीब पहुंच कर उसमें देवत्व स्थापित कर उसे संरक्षित रखने की कोशिश करता है। छठ पर्व में नदियों तालाबों और पोखरों की सफाई कर उसे स्वच्छ बना कर संरक्षित किया जाता है। शहर हो या गांव इस त्योहार में मिट्रटी, किसान और खेती सी जुड.ी हुई चीजों का इस्तेमाल किया जाता है। मिट्रटी से बने चुल्हे पर मिट्रटी के बर्तनों में नहाने-खाने से लेकर खरना पूजा और सारे प्रसाद तैयार किए जाते हैं। बांस के बने सूप में सूरज को अर्ध्य दिया जाता है। कहा जा सकता है कि इस चार दिवसीय पर्व में सारी नई चीजें और वो भी प्रकृति से जुड.ी हुई चीजों का पूजा में प्रयोग किया जाता है। छठ पूजा प्रकृति की साफ सफाई के साथ-साथ प्रकृति से जुड.ी चीजों की पूजा संरक्षण के साथ उपयोग का भी संदेश देती है। सूर्य की पूजा का तो धार्मिक महत्व है ही लेकिन अगर हम इसके वैज्ञानिक कारणों पर गौर करें तो कार्तिक मास की षष्ठी तिथि को धरती की सतह पर सूर्य की पराबैगनी किरणें मानक से अधिक मात्रा में पृथ्वी से टकराती हैं। वहीं लोग सूर्य को जल में खड.े होकर अर्ध्य देते हैं तो वे पराबैगनी किरणें अवशोषित होकर आक्सीजन में परिणत हो जाती है, जिससे लोग उस हानिकारक पराबैगनी किरणों के दुष्प्रभाव से बच जाते हैं। और इस तरह प्रकृति और पर्यावरण की रक्षा होती है और हमारा जीवन सुरक्षित होता है। जिस तरह लोग प्रकृति से प्रेम का प्रतीक ही छठ महापर्व का मुख्य उद्रदेश्य है। इस त्योहार का मुख्य उद्रदेश्य सूर्य के साथ अपनेपन और निकटता को महसूस करना है। सूर्य को जल अर्पित करने का अर्थ है कि हम से संपूर्ण öदय से आपके ;सूर्यद्ध आभारी हैं और यह भावना प्र्रेम से उत्पन्न हुई है। जब हम जल के साथ दूध मिला कर अर्ध्य देते हैं तो इसका अर्थ है दूध पवित्रता का प्रतीक है। दूध और पानी मिश्रित अर्ध्य इस बात को दर्शाता है कि हमार मन और gदय दोनों की पवित्रता बनी रहे।


0 comments:
एक टिप्पणी भेजें