रामकृष्ण का विवेकानंद से बहुत अलग तरह का जुड.ाव था। वे विवेकानंद को अपना संदेश दुनिया तक पहुंचाने का जरिया मानते थे। रामकृष्ण विवेकानंद को लेकर बहुत ही संवेदनशील थे। अगर एक भी दिन स्वामीजी रामकृष्ण से मिलने नहीं जाते थे, तो रामकृष्ण खुद ही उनकी खोज में निकल पड.ते थे। विवेकानंद के मन में भी रामकृष्ण के प्रति वही श्रद्धा भाव थे जो एक भक्त के öदय में अपने आराध्य के लिए होता है। कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि स्वामीजी के लिए रामकृष्ण पूजनीय थे। जब-जब स्वामीजी अपने सवालों का जवाब पाने के लिए आकुल-व्याकुल हो जाते थे, तो रामकृष्ण उनके मन में उठने वाले सवालों की जिज्ञासा को शांत करने के उद्रदेश्य से स्वामीजी से कहते कि मन में जो चल रहा है उसकी जिज्ञासा शांत करने के लिए सवाल करो। तब स्वामीजी ने रामकृष्ण से आठ ऐसे प्रश्न पूछे जो दुनियाभर के हर व्यक्ति से जुड.े हुए थे। इन प्रश्नों में विवेकानंदजी ने पूछा कि जीवन में लोग क्यों समय नहीं निकाल पाते, जीवन जटिल क्यों है, इंसान हमेशा दुःखी क्यों होता है, अच्छे लोगांें का दुःख से प्राप्त अनुभव उपयोगी और अनुपयोगी क्यों होता है, जीवन की जटिलता में भी उत्साही बने रहने का क्या मंत्र है, जीवन से जुड.ा सबसे बड.ा चमत्कार क्या है, मानव जीवन में सर्वोतम बनने का मंत्र क्या है और जीवन में प्रार्थना का क्या महत्व होता है। और इन प्रश्नों का उत्तर सुनने के बाद विवेकानंद जी के जीवन की दिशा ही बदल गई, जिसने बाद में भारत को भी आत्मगौरव से भर दिया। इन प्रश्नों का उत्तर रामकृष्ण ने सिलसिलेवार दिया है- जब आप सिर्फ गतिविधियों में ही लगे रहते हैं तो समय नहीं निकल पाता, जबकि समय निकालने से ही निकलता है। इसीतरह जीवन के रोज-रोज के विश्लेषण से वो जटिल हो जाता है, वहीं स्वाभाविक कर्म करते हुए वह आनंदमय बनता है और जटिलता दूर होती है, और यही लोगों के दुःखी होने का कारण भी है। अच्छे लोगों को दुःख इसलिए मिलता है ताकि वे सोने के जैसे तप कर बेहतर जीवन जीने के लिए खुद को तैयार कर सकें। और जीवन का उत्साह बनाये रखने के लिए जो कुछ भी आपके पास हो उसी में संतुष्ट होना चाहिए। विवेकानंद का संपूर्ण जीवन मानवकल्याण और प्रेरणा का स्रोत्र है। वे युवाओं को हमेशा अपने लक्ष्य प्राप्ति और विश्व कल्याण के लिए जागरूक किया करते थे। स्वामी जी के आदर्श हमेशा हम सब को निराशा से आशा की ओर जाने की प्रेरणा देती है।
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