स्त्रियों के अंर्तमन की आवाजः शिवानी

स्त्रियों के अंर्तमन की आवाजः शिवानी

    िहदी साहित्य में शिवानी एक चर्चित एवं लोकप्रिय कथाकार थीं। इनकी अधिकतर उपन्यास महिला प्रधान थे। नारी संवेदना को इन्होंने अत्यंत मार्मिक एवं कलात्मक ढंग से उकेरा है। इनकी रचनाएं पाठकों से जुड.ाव के साथ-साथ संवाद भी करती हैं। इनकी लिखी गई कहानियां हर एक को अपनी सी लगती है। कहानी के क्षे़त्र में पाठकोें और लेखकों की रूचि निर्मित करने तथा कहानी को केंद्रीय विधा के रूप में विकसित करने में शिवानीजी का अमूल्य योगदान रहा है। उनकी लेखनी में कुछ ऐसी बात थीं कि लोगों में पढ.ने की जिज्ञासा स्वतः जागृत होती थीं। उनकी भाषा शैली कुछ-कुछ महादेवी वर्मा जैसी थीं। शिवानी जी के पिता अश्विनी कुमार पांडे रामपुर स्टेट में विद्वान थे, वह वायसराय के बार काउंसिल में मेंबर भी थें। इनकी माता जी संस्कृत की विदूषी एवं लखनऊ महिला विद्यालय की प्रथम छा़त्रा थीं। शिवानीजी की हिंदी, संस्कृत, गुजरात, बंगला, उर्दू तथा अंग्रेजी पर अच्छी पकड. थी। इनकी कृतियों में उत्तर भारत के कुमायूं क्षेत्र के आसपास की लोक संस्कृति की झलक और किरदारों के बेमिसाल चरित्र चित्रण और भाषा की सादगी देखने को मिलता है। 12 वर्ष की उम्र में ही इन्होंने अपना लेखन कार्य शुरू कर दिया था। शिवानी जी ने अपनी रचनाओं में नायिका के सौंदर्य और उसके चरित्र का वर्णन बड. ही दिलचस्प अंदाज में किया है। 


शिवाजी ने अपनी रचनाओं में स्त्री की व्यथा और समाजिक बंधनों को बेहद ही संजीदगी से उकेरा है। इनकी शिक्षा-दीक्षा शांति निकेतन में हुई थी इसलिए इनकी रचनाओं में बंगला साहित्य और संस्कृति की झलक भी देखने को मिलती है। कृष्ण कली उनका सबसे प्रसिद्व उपन्यास है। इस उपन्यास में उन्होंने वेश्या जीवन और उसकी मजबूरियों की तरफ हमारा ध्यान आकृष्ट करवाया है। इनकी कहानियों की मौलिक विशेषता कलात्मक और मर्मस्पर्शी है। इनकी रचनाओं में फिल्म और टीवी धारावाहिक भी बन चुके हैं। इनकी साहित्यक सेवाओं के लिए भारत सरकार ने इ्रन्हें पद्रमश्री की उपाधि से सम्मानित भी किया था। शिवानी जी की कहानियों में नारी समस्या दिखाई गई है। लेकिन साथ ही साथ उन्होंने उसका समाधान भी बताया है। नथ कहानी में भी शिवानी जी ने अकिंचन अनपढ. लदाखी पुट्टी के जीवन और उसके अंतिम सात्विक दान का जो जिक्र किया है, वह उस स्त्री की राष्ट्र के प्रति प्रेम और अपने कर्तव्य का निर्वाहन करना दिखलाता है। शिवानी का जीवन और साहित्य यह दिखलाते हैं कि स्त्रियां स्वाधीनता की एक खामोश लड.ाई पिछली सदी से लड. रही हैं जो इस सदी में भी जारी है। और इस लड.ाई में उन्होंने निजी स्तर पर बहुत कुछ चुपचाप और लगातार सहा और झेला था। शिवानी जी के उपन्यास अतिथि का कथानक और शीर्षक दोनों ही अदभुत है। उपन्यास की मुख्य पात्र जया सरल और स्वाभिमानी लड.की है, सरकारी मास्टर की बेटी अपने आत्म-सम्मान को ही सब कुछ मानती हैं। गरेीबी की वजह से उसके ससुराल वाले उसे पसंद नहीं करते थे। घर वालों के नफरत को झेलते हुए जया जैसी स्वाभीमानी लड.की अपने अस्तित्व के टुकड. समेटे आगे की जिंदगी की राह खुद तलाशती है, कैसे माधव जी को अपनी गलती का पश्चाताप होता है। इन सारी चीजों को शिवानी ने अपने उपन्यास में दिखाया है। शिवानी जी का उपन्यास चौदह फेरे जिसके कारण इन्हें प्रसिद्धि मिली थी। इस किताब का शीर्षक पाठकों के मन में जिज्ञासा उत्पन्न करता है और पाठक किताब के पात्रों में डूबता जाता है। उपन्यास की मुख्य पात्र अहिल्या का जन्म अलमोडा में होता है, लेकिन उसके माता- पिता उसे उसके पिता की महिला मित्र जो बहुत ही मार्डन थी उसी के पास पढ.ाई करने के लिए भेज देता है। लेकिन उसके बड. होेने पर उसके पिता उसकी शादी अपने गांव में करवाना चाहते हैं। उनकी बेटी प्रेम में भी पड.ती है। चौदह फेरे उपन्यास में अहिल्या का उसकी मां से हिमालय में जाकर मिलना, प्यार के उहापोह में फंसे अपने मन को समझाना, दिल की उलझने, और उन्हें सुलझाने की कोशिश इन सब को शिवानी जी ने अनूठे रंगों से रचा है। उहपन्यास श्मशान चंपा में नायिका चंपा भी खुद में रंग और गुणों की मादक कस्तूरी गंध समेटे है, लेकिन पिता की मृत्यु, बिगड.ैल छोटी बहन के कलंक और स्वयं उसकी बदकिस्मती ने उसे बुरी तरह झकझोर डाला। बाहर से संतोषी, संयमी और आत्मविश्वास से भरी डाक्टर चंपा के अभिशप्त जीवन की वेदना की मार्मिक कहानी है श्मशान चंपा। चंपा हर तरह से परिपूर्ण है, पर अपने अकेलेपन का सन्नाटा भंग नहीं कर पाती है। नियति बार-बार उसे शिखर से शून्य पर पहुंचा देती है। जिस तरह चंपा के फूलों के लिए एक कहावत है

    चंपा तुझ में तीन गुण, रूप, रंग अरू बास।

    अवगुण तुझमें एक है, भ्रमर आवत पास।

   इस लिए लेखिका ने इस कहानी की मुख्य पात्र का नाम चंपा रखा है। चंपा भी उस फूल की तरह अभिशप्त और मजबूर है, क्योंकि दोनों की नियति एक ही है। चल खुसरो घर आपने में शिवानी जी ने कुमुद की कहानी के माध्यम से निम्न मध्यवर्गीय परिवार की अनब्याही बेटी और अपराध बोध में दबी हुई उसकी मां का सजीव चित्रण किया है। शिवानी जी स्त्रियों के अंतरमन की आवाज थीं। स्त्रियों के जीवन में ऐसे कई क्षण आते हैं, जिसमें वह कई मनोभावों से होकर गुजरती हैं। स्त्रियों के अंर्तमन में उठती हर लहर को उन्होंने बहुत ही खुबसूरती से हमारे समक्ष रखा है। इनकी कहानियां लोगों को बार-बार पढ.ने के लिए प्रेरित करती हैं, और हर बार एक नए अर्थ में सामने आती है।

 

 

 

 

 

 

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Milan Tomic

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