.सदमा,बेबसी,खौफ और फिर एक न टूटने वाली खामोशी क्या नाम दूं इस मौत का? जब भी मैं कोई खुदकुशी की खबर देखती या सुनती हूं, तो आनायास ही गालिब का ये सेर घबरा कर कहते हैं कि मर जाऐंगे। मर के भी चैन न मिला तो किधर जाऐंगे...
मेरे
जेहन में आ जाता है। परिस्थितियों से हार मान कर मन में नकारात्मक विचारों को
पनाह देकर जिंदगी को खत्म कर देने का ही नाम है आत्महत्या या खुदकुशी! शायद ही
दुनिया में कोई ऐसा शख्स होगा जिसकी
जिंदगी में कोई परेशानी न आयी हो , पर क्या परेशानियों से मुंह मोड़़ कर जिंदगी को खत्म कर
लेना ही समझदारी या जिंदादिली है? शायद नहीं! तेजी से बदलती हुई दुनिया में एक
दूसरे से आगे निकलने की होड़ और कम समय में सब कुछ पा लेने की चाहत ने हमारी लाईफ
स्टाइल को प्रभावित किया है। आज का युवा
वर्ग चीजों को जल्द से जल्द पा लेने की चाहत रखने वाला है। उन पर मानसिक दबाव है
कम समय में अपने को स्थापित करने का, शायद यही वजह है कि वो अपनी जिंदगी को लेकर अतिसंवेदनशील
हो गए हैं। अभी चंद दिन पहले दसवी और बारहवीं परीक्षा के परिणाम घोषित हुए। उसके
बाद तो खुदकुशी की घटनाएं लगातार घटने लगीं। अभी हाल ही में अभिनेत्री जिया खान ने
प्यार में बेवफाई से आहत हो कर अपनी जान गंवा दी। इन घटनाओं को देख कर ऐसा लगता
है, कि जिंदगी का नया फलसफा ही चल निकला है मौत को गले लगा कर परेशानियों से निजात
पाने का। राष्टीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आकड़ों के मुताबिक भारत में
आत्महत्या की दर 1978 के 6.3/एक लाख आबादी से बढ़ कर 1990 में 8.9 प्रति एक लाख
हो गई है। इस तरह एक दशक में 41.3 फीसदी की वृद्धि हुई है। रिनपास की एसोसिएट प्रोफेसर
डा.मशरूर जहां का कहना है कि आत्महत्या या खुदकुशी करने वाले 90 प्रतिशत व्यक्ति
कहीं न कहीं मानसिक रूप से बीमार होते हैं। ऐसे व्यक्ति जो स्टेस डील नहीं कर
सकते हैं वे तुरंत डिप्रेशन में चले जाते हैं और उन्हें लगता है कि अब कोई रास्ता
नहीं बचा। नकारात्मक विचार उनपर इतना हावी हो जाता है कि वो खुदकुशी का रास्ता
आख्तियार कर लेते हैं। मनोवैज्ञानिक दृष्किोण से हम खुदकुशी को तीन भागों में
बांटते हैं-
1.इसमें
व्यक्ति डिप्रेशन में आ कर खुदकुशी कर लेता है।
2.जो
मानसिक रूप से बीमार होते हैं।
3.जो
लोगों का अटेंशन यानी घ्यान अपनी ओर आकर्षित करवाना चाहते हैं।
कैसे
रोका जा सकता है-
अगर
किसी भी व्यक्ति के साथ ऐसी परेशानी हो तो उसके सामने कमजोर न पड़ें। उसे भावनात्मक
सहारे की जरूरत होती है इसलिए उसके साथ दोस्ताना संबंध बनाने का प्रयास करें। कनवरसेशन
बहुत जरूरी है ताकि उसके मन की बात को जाना जा सके। परिवार के लोग धैर्य पूर्वक प्यार
और दोस्ताना संबंध बना कर बहुत हद तक खुदकुशी की घटना को कम कर सकते हैं।
कितनी
मशक्कत के बाद हमें यह जिंदगी मिलती है। तो फिर इसे क्यों खत्म करना। वैसे भी
आज अगर परििस्थतियां विपरीत हैं तो क्या हुआ,वो कल अनुकूल हो जाएंगी। जिंदगी
तालाब की तरह है जिसमें तैरना सीख कर नहीं कूदा जाता, बल्कि कूद पड़ों तैरना अपने
आप ही आ जाता है।
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