क्‍या आजादी सिर्फ तीन थके हुए रंगों का नाम है...

आजादी किसे अच्‍छी नहीं लगती, क्‍या इंसान क्‍या परिंदे सभी आजाद हो कर अपनी मर्जी से जीना चाहते हैं। वर्तमान परिवेश में एक ऐसे देश या राज्‍य की हम सिर्फ कल्‍पना ही कर सकते हैं, जिसमें सुकून और दो जून की रोटी बिना कुछ गंवाए या कीमत चुकाए हमें मिल जाए। क‍हने को तो हम आजाद हैं, पर क्‍या अभी जिस तरह की घटनाएं हमारे देश में घट रही हैं उसे देख कर हम ऐसा कह सकते हैं? हमारे चारों ओर गरीबी ,बेरोजगारी और अशिक्षा फैली हुई है। लोग जागरूक नहीं हैं वे अपने हक और अधिकार के लिए लड़ना नहीं जानते! भले सरकार कितने दावे कर ले कागज पर योजनाओं का खाका तैयार कर ले। लेकिन अटल सत्‍य तो यही है कि ये सारी समस्‍याएं आज भी हमारे आस-पास देखने को मिल जाती हैं। गरीबी, बेरोजगारी और अशिक्षा का प्रतिशत कुछ कम जरूर हुए हैं, पर इन्‍हें पूरी तरह से खत्‍म होने काफी वक्‍त लगेंगे। कुछ लोग सिर्फ शहरी आकड़ों के आधार पर गरीबी कम होने की बात करते हैं। पर ऐसा कह कर वे अपने आप को प्रोत्‍साहित और जनता को छलने का प्रयास करते हैं। ये सारी समस्‍याएं तो बदस्‍तूर हमारे साथ बीते 65 सालों से चल रही हैं। फिर भी हम अपनी आजादी का जश्‍न मनाने को उत्‍सूक रहते हैं। और क्‍यों न हों आजाद होना किसे अच्‍छा नहीं लगता। देश इन दिनों हर रोज नई-नई समस्‍याओं से जूझ रहा है। इन सब के बीच हमारे राज नेता अपने वोट बैंक की राजनीति में व्‍यस्‍त एक दूसरे पर दोषारोपण में इतने मशगूल हैं कि उन्‍हें जनता के दर्द की कोई परवाह ही नहीं है। गुजरे चंद दिनों पहले बिहार के मिड डे मील की घटना ने कितने मासूमों की जान ली। कई घरों के चिराग बुझ गए, नन्‍ही आखों के मासूम सपने टूट गए। पर नतीजा क्‍या निकला चंद पैसों के मुआवजे, कुछ दिनों की चर्चा और फिर सब कुछ पहले की तरह नार्मल! वैसे भी हमारे देश में एक नई परंपरा चल निकली है, कोई भी घटना घटे चंद रूपए के मुआवजा पीडि.त परिवार के परिजनों को  दे दो और अपने काम में लग जाओ। पर मेरा सवाल इन राजनेताओं से है क्‍या चंद पैसों के मुआवजे की राशि किसी उजड.े हुए सुहाग का सूनापन और किसी उजड.ी कोख वापस कर सकता है? शायद कभी नहीं! स्‍वतंत्रता दिवस के अभी चंद दिन ही रह गए हैं और एक सुबह खबर आई हमारी सीमा पर पाकिस्‍तान की सेना ने घुसपैठ कर आक्रमण कर दिया। इस मुठभेड. में हमारे देश के पांच जाबांज सैनिक शहीद हो गए। इस स्‍तब्‍ध कर देने वाली घटना पर भी हमारे राजनेता राजनीति करने से बाज नहीं आए। यह वक्‍त देश के सारे राजनीतिक दलों को एकजुट हो कर कोई ऐसा कठोर निर्णय लेने का था, ताकि अगली बार पाकिस्‍तान की सेना ऐसी हिमाकत करने का दुसाहस दुबारा न कर सके। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। शहीदों के परिजन भारी मन से न्‍याय की गुहार लगाते रहे पर हमारे देश के नेता बयानबाजी में लगे रहे। इन सब के बीच एक साहासिक घटना यह घटी की एक शहीद की विधवा ने दस लाख की मुआवजे की राशि यह कहते हुए लौटा दिया की उसे पैसे नहीं उसका पति चाहिए या फिर इंसाफ! वर्तमान परिस्‍‍थि‍‍ति में मुझे धूमिल की कविता याद आ रही है- क्‍या आजादी र्सिफ तीन थके हुए रंगों का नाम है, जिसे एक पहिया ढोता है।’ या इसका कोई खास मतलब भी होता है। सच हालात बिल्‍कुल यही है। हमारी स्‍वतंत्रता र्सिफ तीन रंगों में सिमट कर पहिए के पीछे आजाद होने के लिए करा‍ह रही है।

                 

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Milan Tomic

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