सरसों के पीले फूल, बगीचे के पौधों में नए फूलों का आना, के पेड़ों पर मंजरी का आना, और धीरे-धीरे ठंड के अहसास का जाना! जी हां आपने बिल्कुल ठीक पहचाना मैं बात की रही हूं शरद ॠतु यानी बसंत ऋतु की। बसंत ऋतु अर्थात प्रकृति के श्रृंगार और जन-जन में प्रेम का संचार का मौसम। बसंत ऋतु के आगमन के पूर्व ही वातावरण में हरियाली छा जाती है और नए जीवन कर आगाज हो जाता है। क्या पशु क्या मनुष्य सभी इस मौसम का बेसबरी से इंतजार करते हैं। शिशिर ऋतु की बिदाई और शरद ऋतु का आगमन के समय ऐसा प्रतीत होता है मानो लंबे समय से सोई पृथ्वी अपने नए जीवन, परिवर्तन के लिए तैयार है
बसंत ऋतु के कुछ दिनों के बाद ही आती है विद्या और बुद्धि की देवी सरस्वती
की पूजा का दिन। जिसका इंतजार प्रत्येक विद्यर्थी करते हैं। पर अब समय के साथ्-साथ
पूजा के प्रति लोगों की श्रद्धा और विद्यािर्थयो की सोच भी बदलती चली जा
रही है। आप शायद सोच रहे होंगे मैं ऐसा क्यों कह रही हूं। तो जवाब बहुत ही सीधा
सा है, आजकल सरस्वती पूजा के नाम पर छोटे-छोटे बच्चों को जबरन चंदा वसूलते देख्
कुछ तो ऐसे भी हैं जिन्हें पढ़ाई से कोई सरोकार नहीं वे भी चंदा वसूली में लगे हुए हैं
ऐसे बच्चों को देख् कर शायद आपके मन में भी यह ख्याल आया हो की जमाना बदल रहा
है। हमारे शास्त्र और धर्मग्रंथ इसकी इजाजत नहीं देते कि आप किसी का नुकसान कर िकसी
िनयम या संस्कार को पूरा करने के िलए िववश हों। अगर देवी को खुश् करना ही है, तो
आप सच्चे दिल, अपनी मेहनत और लगन से सहज ही उन्हें खुश् कर देख सकते हैं। चंद
रोज कि बात है मैंने कुछ छोटे बच्चों
लगभग( दस से ग्यारह साल ) की टोली को देखा जो जबरन आने जाने वाली गाडि.यों को रूकवा
कर चंदा वसूलने में लगे हुए थे। इन बच्चों को न तो अपनी जान की फिक्र थी और न ही उन गाडि.यों में बैठे हुए यात्रियों
की जिन्हें इन बच्चों की वजह से कितनी परेशानी हो रही थी।
कहते हैं
बच्चे देश् का भविष्य होते हैं। तो फिर क्यों हम अपने ही आखों के सामने इन बच्चों
और देश् का भविष्य बिग__ता हुआ देखने को मजबूर हैं। जितना वक्त ये अपनी जान
जोख्रिम में डाल कर चंदा वसूल करने में बर्बाद कर रहे होते हैं उस वक्त का
सदुपयोग कर वे कुछ ज्ञानवद्धर्क बातें सीख सकते हैं। या फिर वे अपनी पढ.ाई ही पूरी कर सकते हैं। ऐसा कर वे अपना भविष्य
संवार सकते हैं। वहीं दूसरी ओर अगर इन्हें समय रहते न रोका जाए तो यही आदत इनके
बडे. होने पर इन्हें गलत रास्ते पर न ले जायेंगे। आज जरूरत है इन्हें सही
मार्गदर्शन की ताकि ये बच्चे अपना भला बुरा समझ सके हैं और अपने भविष्य के प्रति
संवेदनशील हो सकें। इन बच्चों को हमें ही बताना होगा कि कोई भी भगवान पैसों और
चढा.ओं से खुश नहीं होते हैं, बल्कि वे सच्चे दिल से की गई पूजा और गरीबों की मदद
से खुश होते हैं। किसी भी चीज का सम्मान दिल से किया जाना चाहिए क्योंकि सच्चे
दिल से किया गया सम्मान ही असली पूजा होती है। विद्यािर्थयों
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