एक दिन नहीं, चाहिए बस एक मौका...


अंतरराष्‍टी्य महिला दिवस यानि अपने अ‍‍ि‍घकार हक और अपने महिला होने के अहसास का दिन! आप शायद सोच रहे हों कि मैं ऐसा क्यों कह रही हूं। तो जवाब बहुत ही आसान है, क्‍योंकि साल का एक ही दिन (8 मार्च) है जिस दिन महिलाओं को महिला होने पर गर्व करवा कर, स्‍त्री सशक्तिकरण की बातें कर उन्‍हें बरगलाया जाता है। दो चार कार्यक्रम उच्‍च विचारों वाला भाषण और बड़े –बड़े वादों के साथ समापन और खत्‍म हो गया महिला दिवस। दूसरे दिन वही महिलाओं पर अत्‍याचार बलात्‍कार, कन्‍या भ्रूण हत्‍या, दहेज हत्‍या, वेब क्राइम और न जाने क्‍या-क्‍या । भारतीय शास्‍त्रों में नारी को देवी का दर्जा दिया गया है। देवी की शक्ति की उपासना को बेहतर तरीका बताया गया है। वहीं अगर वेदों की बात करें तो उसमें भी व‍ि‍र्णत है कि ईश्वर अर्द्धनारीश्‍वर हैं या‍नि ईश्‍वर भी नारी के बिना आधे-अधूरे हैं। फिर क्‍यों जिसके बिना संसार अधूरा हो, जिसकी हम पूजा करते हों हम क्‍यों उसी को मार डालना और उसे प्रताि‍ड़त करने गुरेज नहीं करते हैं। आ‍‍ि‍खर वजह क्‍या है जो इतने बड़े पैमाने पर कन्‍या भ्रूण हत्‍याएं हो रही हैं ? आज अगर पंजाब, हरियाणा और राजस्‍थान में लड़कियों का प्रतिशत देखा जाए तो 100 लड़कों में लड़कियों का प्रतिशत महज 80 प्रतिशत ही है। आलम यह है कि उन राज्‍यों में लड़कियों के अभाव के कारण लड.कों की शादी नहीं हो पा रही है। वहीं बनारस जयपुर जैसे व्‍यापारिक जगहों पर भी कन्‍या को कोख में मारने से लोग गुरेज नहीं करते हैं। मानवता को शर्मसार करती विंघ्‍याचल की तो बात ही निराली है। वहां जगह-जगह पोस्‍टर चिपका कर यह लिखे हुए मिल जायेंग की गर्भपात मात्र दो सौ रूपए में। अगर भ्रूण हत्‍या से लड़कियां बच भी जाए तो दहेज के नाम पर न जाने कितनी अनगिनत मासूमों की हत्‍या कर दी जाती है। आकंड़ें  गवाह हैं कि दहेज हत्‍या के 2003-04 में 362 मामले आए, जो 2002-03 में 443 थे। वहीं यह आँकड़ा 2002-03 में 308 और 2002-01 में 536 था। दूसरी ओर दहेज के लिए सताई जाने वाली महिलाओं की तादाद 902, 1072, 726, 943 रही। शादी के बाद भी उनकी समस्‍या में कोई कमी नहीं आई। 2003-04 में 143 महिलाएँ या तो छोड़ दी गईं या उनके पति ने दूसरी शादी रचा ली। यानि कहा जा सकता है कि दहेज की कीमत पर सात फेरे पूरे किए जाते हैं। और इसके लिए बना कानून महज मजाक बन कर रह जाता है। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का कहना था कि स्त्रियों की मानहानि साक्षात् लक्ष्‍मी और सरस्‍वती की मानहानि है। लेकिन वर्तमान परिवेश में ऐसा शायद ही देखने को मिले। आज महिला कामकाजी हो या घरेलू वह कहीं भी सुरि‍क्षत नहीं है। वादे और कानून तो बड़े- बड़े बनाए जाते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयान करती है। महिलाओं को उनका सही हक तभी मिलेगा जब मानसिक और शारीरिक रूप से उन्‍हें सभी अ‍धि‍कार प्राप्‍त होंगे। महिलाएं तभी कंधा से कंधा मिला कर चल  पाएंगी, जब समाज उन्‍हें संभलने के मौका देगा। आज उन्‍हें एक दिन की नहीं बल्कि एक मौके की जरूरत है ताकि वे अपने आप को स्‍थापित कर समाज में अपना एक मकाम हासिल कर सकें। एक बलात्‍कार पीिड़त को समाज में दया दृष्टि की नहीं  बल्कि उसे जरूरत है ऐसे मजबूत कंधे की जो उन्‍हें सहारा दे कर उनका खोया हुआ आत्‍मविश्‍वास पुन वापस दिला कर एक नई शुरूआत के लिए प्रेरित करे। चंद म‍िहलाओं को उच्‍च पायदान पर स्‍थापित देख कर महिला सशक्तिकरण का नारा नहीं दिया जा सकता है। आज हमें यह समझना होगा कि मात्र एक दिन महिला दिवस के नाम करने से महिला समाज का कल्‍याण नहीं हो्गा। लोग एक रैली में तो महिला उत्‍थान के नारे लगाते हैं, पर वहीं घर जा कर अपनी बेटी को छोटे स्‍कर्ट पहनने पर डांटते हैं और पत्‍नी को खाने में नमक कम होने पर पीटते हैं। अगर ऐसा है तो वे कतई महिला समाज के प्रति उदारवादी सोच नहीं रखते हैं। आज हमें नारी के विषय और उसकी जरूरतों को समझना होगा तभी महिलाओं का सही मयाने में उत्‍थान होगा और वे निर्भय हो कर अपना जीवन यापन कर सकेंगी।
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Milan Tomic

Hi. I’m Designer of Blog Magic. I’m CEO/Founder of ThemeXpose. I’m Creative Art Director, Web Designer, UI/UX Designer, Interaction Designer, Industrial Designer, Web Developer, Business Enthusiast, StartUp Enthusiast, Speaker, Writer and Photographer. Inspired to make things looks better.

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