तेजी
से बदलती दुनिया ने जिंदगी की परिभाषा ही बदल कर रख दी है। आज आलम यह है कि छोटी-
छोटी चीजों को पाने के लिए भी कडी मशक्कत
करनी पड.ती है, तो लाजमी है कि हम दिन-प्रतिदिन व्यस्त होते चले जा रहे हैं।
माता पिता अपनी जिम्मेदारियों का र्निवाह करते हुए अपने बच्चों से कट रहे हैं।
वजह अपने बच्चों को बेहतर जिंदगी देने की है। और अगर देखा जाए तो यह सही भी है
कयोंकि हर माता- पिता अपने बच्चों को खुश और हर क्षेत्र में आगे देखना चाहते हैं।
लेकिन आज के इस दौर में एक बात का घ्यान रखना भी माता- पिता का फर्ज है कि कहीं
जिम्मेदारियों के बोझ निभाने के बदले आप अपने बच्चे पर घ्यान ना दे पाए और वो
कोई गलत रास्ते पर चला जाए। कारण यह कि
आज एक किल्क में ही सारी दुनिया आपके बच्चे के सामने है। इंटरनेट ने हमारी लाईफ
को बहुत ही आसान बना दिया है वहीं इसके गलत इस्तेमाल से कभी- कभी हानि भी उठानी
पड. सकती है। यही नहीं आपकी हर गति वििधयों पर भी बच्चे की नजर होती है, जिसे
बच्चे बहुत जल्द कैच करते हैं। आजादी सब को पसंद होती है, लेकिन आजादी पर अकुंश
ना लगाया जाए तो उसके गंभीर परिणाम भुगतने पड. सकते हैं। अभी चंद दिनों पहले की
घटना ने विचलित कर दिया। एक नाबालिेक लड.के को बाईक चोरी के आरोप में गिरफतार किया
गया। चौंकाने वाली बात यह है कि उस बच्चे के मम्मी डाक्टर और पिता बैंक मैनेजर हैं। परिवारिक स्थ्िाति
हर तरह से सुद़़ढ होने के बावजूद आखिर वजह क्या रही होगी, जिसके कारण घर का
इकलौता वारिस महज एक बाईक के लिए चोरी जैसा रास्ता अपनाए। और छोटी उम्र में ही
जेल की सलाखों के पीछे जाने पर विवश हो जाए। इस तरह की अनगिनत घटनाएं हमारे सामने
आए दिन होती रहती हैं, तो आखिर वजह क्या है?? अगर इस तरह की घटनाओं का मनोवैज्ञानिक किया जाए तो इसे मनोविज्ञान की भाषा में एक
डिसआडर कहते हैं। जिसमें बच्चा नार्मल की तरह बिहेब करता है, लेकिन नजरें चुरा कर
अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए पहले घर के छोटे मोटे सामान उठाता है। फिर जरूरतें
बढ.ने के साथ् वह बाहर से चीजें उठानें लगता है और फिर उसे चोरी की लग जाती है। अगर
कारण पर गौर करें तो वजह बच्चे के माता- पिता का अपने बच्चों की तरफ अटेंशन न
होना ही माना जा सकता है। बच्चों के साथ दोस्ताना होना बहुत ही जरूरी है जिसके
जरिए आप उसके मन की तह तक आसानी से पहुंच सकते हैं। वहीं समाजशास्त्री का मानना
है कि घर ही प्रथम पाठशाला है इसिलए अगर बच्चे कोई गलती करते हैं, तो उसकी जिम्मेदारी
परिवार की ही होती है। कारण यह कि परिवार
के लोग बच्चों को ं नजरअंदाज कर अपनी दिनचर्या में उलझे रहते हैं। बच्चों के साथ
समय बिताना, खेलना उनसे बात करना आजकल के माता –पिता समय के आभाव के कारण नहीं कर
पाते हैं। इस तरह की घटनाओं पर अंकुश लगाने के िलए माता-पिता को बच्चों के साथ
सबसे पहले उनके साथ फेंडली होकर उनके सुख-दुख में साझेदारी करनी होगी। ताकि बच्चा
इनसिक्योरिटी फील ना कर सके। अगर इस तरह की घटनाएं समाज में होती हैं, तो हमें यह
पड.ताल करने की जरूरत है कि आख्रिर वजह क्या है? क्या परवरिश में कोई कमी है रह
गई है या फिर माता पिता अपने बच्चों के
साथ सही सामंजस्य ही नहीं बिठा पा रहे हैं या उनकी मन की बात समझने में असर्मथ
हैं। आज जरूरत है कि अपने बच्चों को भटकने ना दें, उन्हें सर्पोट करें, उनमें
सुरक्षा का अहसास जगाएं, ताकि वे भटकने से बच जाएं। बच्चों को डर से नहीं प्यार
से उनका दिल जीतें।
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