14 सितंबर को हिंदी दिवस है। यह दिन इसलिए खास है क्योंकि यह हमारी मातृभाषा को सम्मान दिलाने का दिन है। यही वह भाषा है जिसने स्वतंत्रता की लड़ाई में अहम भूमिका निभा कर समस्त भारतवासियों को एक सूत्र में पिरोने का काम किया है। इसमें लेखकों और कवियों ने भी अपनी रचना के माध्यम से अपना योगदान दिया । जिसका उदाहरण हमें निराला की ‘राम की शक्ति पूजा’ और प्रेमचंद की रचनाओं में सहज ही देखने को मिल सकता है। इसके अलावा पंत, महादेवी वर्मा, नागार्जुन और दिनकर ने भी अपना सहयोग दिया। कहा जा सकता है कि उस वक्त के हिंदी साहित्य ने लोगों में जोश जगाने का काम किया।
आज के संदर्भ में अगर बात की जाए, तो आज
‘हिंदी दिवस’ मात्र एक औपचारिकता बन कर रह गया है। आज हिंदी दिवस मनाने का अर्थ है
गुम हो रही हिंदी को बचाने के लिए एक प्रयास कर सिर्फ खानापूर्ति करना। भारत में
अधिकतर घरों में बोलचाल की भाषा हिंदी ही है। लेकिन फिर भी अब यह लुप्त हो रही
है। इसका कारण हमारी संसद का है। भारत जब आजाद हुआ तब हिंदी को राष्ट्भाषा बनाने
की आवाजें उठीं, लेकिन इसे यह दर्जा नहीं दिया गया। बल्कि इसे मात्र राजभाषा बना
दिया गया। राजभाषा अिधनियम की धारा 3 के तहत यह कहा गया कि सभी सरकारी दस्तावेज
और निर्णय अंग्रेजी में लिखे जायेंगे और साथ ही उन्हें हिंदी में अनुवादित कर
दिया जायेगा। जबकि सभी सरकारी आदेश और कानून हिंदी में ही लिखे जाने चाहिए थे और
जरूरत होती तो उन्हें अंग्रेजी में बदला जाता।
हिंदी भाषा सबको आपस में जोड़ने वाली
भाषा है तथा इसका प्रयोग करना हमारा संवैधानिक एवं नैतिक दायित्व भी है। अगर आज
हमने हिंदी की उपेक्षा की तो कहीं एक दिन ऐसा न हो कि इसका वजूद ही खत्म हो जाए।
इसलिए समाज में बदलाव की जरूरत है और इसकी शुरूआत स्कूलों और शैक्षणिक संस्थानों
से की जा सकती है। साथ ही देश की संसद को भी मात्र हिंदी पखवाड़े में मातृभाषा का
सम्मान नहीं बल्कि हर दिन इसे ही व्यवहारिक और कार्यालय की भाषा बनानी होगी। और
हिंदी का इस्तेमाल भी ज्यादा से ज्यादा करना होगा तभी हम हिंदी को बचा सकते
हैं। आइये हम मिलकर संकल्प लें...
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