समाज में महिलाओं के योगदान और उपलब्धियां पर ध्यान केंद्रित करने के लिए देश के विभिन्न क्षेत्रों और पूरे विश्व में 8 मार्च को अंतरराष्ट´ीय महिला दिवस मनाया जाता है। इसे महिला दिवस के अलावा महिलाओं के अधिकार और अंतरराष्ट´ीय शांति के लिए बुतपरस्त दिवस भी कहा जाता है। महिलाएं समाज का मुख्य हिस्सा होती हैं, वे आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक क्रियाओं में बड.ी भूमिका निभाती हैं। इसलिए महिलाओं की सभी उपलब्धियों की इस दिन सराहना की जाती है। ताकि महिलाएं मजबूत हो कर और आगे बढ. सकें। लेकिन वर्तमान परिवेश के जो हालात हैं उसे देख कर एक प्रश्न उठता है कि क्या महिलाएं सचमुच मजबूत बनी हैं? और क्या उनका लंबे समय से चला आ रहा संर्घष ;अपने वजूद की तालाशद्ध खत्म हो चुका है। तो इसका जवाब शायद नहीं ही होगा। साल के 365 दिनों में से र्सिफ एक दिन 8 मार्च को महिलाओं के सम्मान, हित और उपलब्धियों पर चर्चा कर उन्हें प्रोत्साहित किया जाता है। लेकिन बाकी बचे दिनों में वे गुमनाम रहती हैं। नारी सशक्तिकरण की बातें भाषण और प्रवचन आदि तो होते हैं, पर वास्तव में उन्हें वो सम्मान नहीं मिल पाता है। अपने देश में उच्च स्तर की लैंगिक असमानता है, जहां महिलाएं अपने परिवार के साथ-साथ समाज के बुरे वर्ताव से भी पीडि.त हैं। इन्हें उचित शिक्षा और आजादी के लिए भी मूल अधिकार नहीं दिए गए हैं। इन्होंने पुरूष प्रधान देश में हिंसा और दुर्व्यवहार झेला है। कहने को 21वीं सदी है लेकिन आज भी महिलाओं की स्थिती दयनीय है। पंस्ति जवाहरलाल नेहरू ने महिलाओं का आत्मबल बढ.ाने के लिए कहा था कि महिलाओं को जागृत होना जरूरी है। एक बार जब वो कदम उठा लेती हैं, तो परिवार आगे बढ.ता है और राष्ट´ उन्मुख होता है। इसलिए हमें सबसे पहले महिलाओं के अधिकारों और मूल्यों को मारने वाली सामाजिक कुरितियां जैसे दहेज प्रथा, यौन हिंसा, भ्रूण हत्या, घरेलू हिंसा और बलात्कार जैसे कृत्य को मिटाना होगा। महिलाओं को र्सिफ उपभोग की वस्तु न समझ कर उन्हें सम्मान देना होगा। ताकि वो समाज में अपने आप को सुरक्षित महसूस कर सकें। और बेझिझक अपनी भागीदारी निभा सकें। वर्तमान समय को अगर हम नारी उत्कर्ष की सदी कहें तो गलत नहीं होगा। भारतीय नारी लगातार हर क्षे़त्र में आगे बढ. रही हैं। लेकिन अभी भी उन्हें अपना खोया सम्मान पाने में वक्त लगेगा। क्योंकि आये दिन हम समाचार पत्रों में महिलाओं की उपलब्धियां तो देखते हैं, लेकिन उनके प्रताड.ना की खबरें भी विचलित करती हैं। आज महिलाएं चाहे कितनी ही क्ंची पायदान पर पहुंच जाये लेकिन वो खुले आबोहवा में सांस नहीं ले सकती। और अगर कोशिश करे तो बलात्कार जैसी घटनायें उन्हें यह याद दिलाते हैं कि वो एक औरत है। और पुरूष वर्ग उनकी उपलब्धियां कम और उनकी देह को ज्यादा देखते हैं। कभी फब्तियां कस कर तो कभी सहानुभूति दिखा कर। पर इस देह के अंदर बसने वाली सांसें उन्हें नहीं दिखती। जो सजीव है, वो खुशी में आंनदित होती है और चोट लगने पर उनमें दर्द भी होता है। और इस दर्द को र्सिफ महिलाएं ही महसूस कर सकती हैं। इसलिए आज यह जरूरी है कि हम सबको अपने जीवन की नायिका बनना होगा शिकार नहीं। और संकल्प लेने के लिए आज से बेहतर दिन कोई नहीं हो सकता।
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