संवेदना एवं अनुभूति के कवि सुमित्रानंदन पंत



सूमित्रानंदन पंत एक महान लेखक, कवि और एक स्वतंत्रता सेनानी थे। वे हिंदी साहित्य के चार छायावादी स्तंभों में से एक हैं। सुमित्रानंदन पंत नये युग के प्रर्वतक के रूप में आधुनिक हिंदी साहित्य मे उदित हुए। पंत जी ऐसे साहित्यकारों में गिने जाते है, जिनका प्रकृति चित्रण समकालीन कवियों में से बेहतरीन था। इन्होंने अपनी लेखनी के माध्यम से भाषा में  निखार लाते हुए जिस तरह उसे सौंद्रर्य में ढाला वह अविस्मरणीय है। इनकी इसी खुबी के कारण इन्हें हिंदी साहित्य का वर्डस्वर्थ कहा गया है।  पंत की रचनाओं पर रविंद्रनाथ टैगोर के अलावा शैली, कीट्रस, टेनिसन आदि जैसे अंग्रेजी कवियों की कृतियों का भी प्रभाव रहा है। पंतजी को प्रकृति के सुकुमार कवि के रूप में जाना जाता है, पर वास्तव में वे मानव सौंद्रर्य और अघ्यात्मिक चेतना के कवि थे। इनका जन्म 20 मई 1900 में कौसानी उत्तराखंड में हुआ था। सात साल की उम्र में ही सूमित्रानंदन पंत ने कविताएं लिखना शुरू कर दिया था। इसका एक कारण यह भी था कि पंतजी के जन्म के कुछ घंटों के बाद ही इनकी माता का देहांत हो गया था, इसलिए प्रकृति की रमणीयता में ही इन्होंने मां का प्यार देखा। और उन्हें शब्दों के माध्यम से कागज पर उकेर कर कविता का रूप दे दिया। 1907 से 1918 तक पंतजी ने अपने प्रकृति प्रेम को सृजनशीलता के जरिए कविताओं का रूप दे दिया। और इन्हीं कविताएं का संकलण 1927 में वाणी नाम से किया गया। इसके पहले 1922 में सुमित्रानंदन की पहली पुस्तकउच्छावासऔर दूसरी पल्लव के नाम से प्रकाशित हुई। पंतजी की इन कृतियों को कला, साधना एवं सौंदर्य की अनुपम कृति माना जाता है। हिंदी साहित्य में इस काल को पंत का स्वर्णिम काल भी कहा जाता है। भाषा के समृद्ध हस्ताक्षर संवेदना एवं अनुभूति कवि सुमित्रानंदन पंत के ने चिदंबरा, वीणा, उच्छावास, गुंजन और लोकायतन समेत अनेक काव्य कृतियों की रचना की है। चिंदबरा के लिए उन्हें पहली बार ज्ञानपीठ पुरस्कार भी मिला। गुंजन को वे अपनी आत्मा का गुंजन मानते थे। उनकी प्रारंभिक कविताएं वीणा में संकलित हैं। उच्छवास एवं पल्लवन उनकी छायावादी कविताओं का संग्रह है। ग्रंथी, ग्राम्या युगांत स्वर्ण किरण, स्वर्ण धूलि, कला और बूढ., सत्यकाम आदि उनकी अन्य कृतियां हैं। सुमित्रानंदन  पंत ने अपनी रचना के माध्यम से सिर्फ प्रकृति का ही गुणगान नहीं किया, वरन उन्होंने प्रकृति के माध्यम से मानव जीवन के उन्नत भाविष्य की कामना भी की है। हिंदी साहित्य के विलियम वडसर्वथ कहे जाने वाले पंत जी के बारे में साहित्यकार राजेंद्र यादव कहते हैं कि पंत जी अंग्रेजी के रूमानी कवियों जैसी वेशभूषा में कर भी प्रकृति केंद्रीत साहित्य लिखते थे। पंत लोगों से बहुत जल्दी प्रभावित हो जाते थे। उनसे मिल कर वे सहज ही उन पर कुछ लिख डालते थे। उन्होेंने महात्मा गांध और र्काल मार्क्स से प्रभावित होकर उनके बारे में भी अपनी लेखनी चलाई। हरिवंशराय बच्च्न और श्री अरविंदों के साथ इनके वक्त गुजरते थे। पद्रमभूषण, ज्ञानपीठ और साहित्य आकदामी जैसे पुरस्कारों से नवाजे जा चुके पंत की रचनाओं में समाजके यर्थाथ के साथ-साथ प्रकृति और मानुष्य की सत्ता के बीच टकराव भी होता था। आधी सदी से भी अधिक उनके रचना काल में आधुनिक हिंदी कविता का एक पूरा युग समाया हुआ है।  संुमित्रानंदन पंत आधुनिक हिंदी साहित्य के युग प्रर्वतक कवि हैं। उन्होंने भाषा को निखार और संस्कार देने, उसकी सामर्थ्य को उद्रघाटित करने के अतिरिक्त नवीन भावों एवं विचारों की समृद्धि दी। पंतजी को प्रकृति का सुकुमार कवि माना जाता रहा है, लेकिन वे मानव - सौंदर्य और चेतना के महान कवि थे।






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Milan Tomic

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