मुंशी प्रेमचंद का नाम लेने से हमारे मन में उजागर होती है सजीव यर्थाथ से संबंध रखने वाली कहानियां जो हमारी पारंपरिक सोच, हमारे रूढिवादी विचारों को झकझोर कर रख देती है। प्रेमचंद की कहानियां समाज का यर्थाथ बयान करने के साथ-साथ सामाजिक एवं निजी भ्रांतियों के अंधेरे को मिटाने का प्रयास करती है। उनकी रचनाओं में जो दर्द और समाजिक समस्याओं का चित्रण देखने को मिलता है उसका दंश कहीं न कहीं उन्होंने भी झेला था। बचपन में ही माता का साया इनके सिर से उठ गया था। मातृविहीन बचपन ने इन्हें गंभीर बना दिया था। प्रेमचंद की कहानी ‘बड.े घर की बेटी‘ मेें आनंदी का किरदार उनकी मां पर आधारित है। प्रेमचंद की माता के बाद इनकी दादी इनका ख्याल रखती थीं, लेकिन जल्द ही वे भी चल बसीं। इसके बाद घर में सौतेली मां का आगमन हो गया। सौतेली मां से प्रेमचंद को स्नेह नहीं मिला इसकी झलक प्रेमचंद की अन्य कहानियों में देखने को मिलती हैं। किस्से और कहानियों ने प्रेमचंद को अकेलेपन से निजात दिलवाई। और यहीं से कहानियों का सिलसिला शुरू हो गया। गोरखपुर में प्रेमचंद अपनी आगे की पढ.ाई शुरू किए और यहीं पर इन्होंने अंग्रेजी के नावेल पढ.ना शुरू किया। यहीं से प्रेमचंद ने अपनी पहली कहानी लिखी जो कभी छप भी नहीं सकी। यह कहानी एक नवयुवक की थी जो एक निम्न जाति की महिला से प्यार करता था। यह कहानी प्रेमचंद के सौतेले मामा पर आधारित थी। 1995 में जब प्रेमचंद 15 साल के थे तो उनके सौतेले नाना ने उनकी शादी एक क्ं चे कुल की लड.की के साथ करवा दिया। जो स्वभाव से प्रेमचंद के बिल्कुल विपरीत थी। वह प्रेमचंद को छोड.कर हमेशा के लिए मायकेे चली गयी। 1906 में सामाजिक विरोध के बावजूद प्रेमचंद ने बचपन की बाल विधवा शिवरानी से पुर्नविवाह किया। उनका दूसरा उपन्याय हमखुर्मा-ओ- हमसवाब ;प्रेमाद्ध में अमृतराय का किरदार उनके इसी कदम पर आधारित था। प्रेमचंद ने अपनी रचनाओं में किसानों, दलितों एवं नारियों की वेदना तथा वर्ण-व्यवस्था की कुरीतियों का मानवीय चित्रण किया है। वे साहित्य को सामाजिक परिवर्तन का सशक्त साधन मानते थे। उनकी दृष्टि में साहित्यकार समाज के भवन को गिराता नहीं है बल्कि उसका निर्माण करता है। उन्होंने समाज-सुधार और राष्ट´ीय भावना को अपनी रचनाओं में स्थान दिया। कथा- संगठन एवं चरित्र- चित्रण की दृष्टि से उनकी रचनाएं बेजोड. हैं। यही नहीं उन्होंने पूरी तन्मयता और प्रमाणिकता के साथ बाल- जीवन को अपनी कहानियों में स्थान दिया। उनकी संपूर्ण साहित्य भारत की साझाी संस्कृति व ग्रामीण जीवन के विविध रंगों से भरा पड.ा है। उनके जीवन काल में उनकी कहानियां विभिन्न संग्रहों के नामों से छपी। उनके मरने के बाद उनकी सभी कहानियों को मानसरोवर संग्रह के नाम से आठ भागों में प्रकाशित किया गया। प्रेमचंद का सबसे पहले प्रकाशित होने वाला कहानी संग्रह सोजे वतन था। सोजे वतन का हिंदी में मतलब होता है-राष्ट´ का विलाप या देश का दर्द। यह कहानी संग्रह देशभक्ति की कहानियों का संग्रह था। इसके अलावा किसान आंदोलन के दौर में लिखा गया उपन्यास प्रेमाश्रम किसानों के जीवन पर लिखा हिंदी का पहला उपन्यास था। किसानों और मजदूरों पर हो रहे शोषण की वेदना को प्रेमचंद की कहानियों में सहज ही देखा जा सकता है। प्रेमचंद की कहानी पूस की रात कहानी में उन्होंने यह दिखाया कि दुनिया में हमें आत्मियता जानवरों से तो मिल सकती है किंतु इंसानों से इसकी अपेक्षा नहीं करनी चाहिए। अपने अंतिम कालजयी कृति गोदान में उन्होंने प्रेमचंद ने साहित्य को सच्चाई के धरातल पर उतारा। प्रेमचंद गांधीवाद के समर्थक थे, उन्होंने आजादी के समय गांधी जी के एक अह्रवाहन पर सरकारी नौकरी छोड.कर आने वालों की सराहना करते हुए एक कहानी लिखी। वहीं गोदान में प्रेमचंद का गांधीवाद से मोहभंग साफ दिखाई देता है। प्रेमचंद के पूर्व के उपन्यासों में जहां आदर्शवाद दिखाई पड.ता है, गोदान में आकर यर्थाथवाद में परिलक्षित होता है। उन्होंने जीवन और कालखंडों को पन्ने पर उतारा। वे संाप्रदायिकता भ्रटाचार, जमींदारी, कर्जखोरी, गरीबी, उपनिवेशवाद पर आजीवन लिखते रहे। ये कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि वे आम भारतीय के रचनाकार थे। उनकी रचनाओं में वे नायक हुए, जिसे भारतीय समाज अछूत और घृणित समझता था।
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