हिंदूस्तान को एकसूत्र में बांधने वाली भाषा हिंदी


अपनी अभिव्यक्ति को सहज रूप से व्यक्त करने की भाषा है हिंदी। हिंदी भाषा को र्सिफ अपने देश में ही नहीं, बल्कि दूसरे देशों में भी सम्मान दिया जाता है। विश्व में हिंदी सबसे ज्यादा बोले जाने के मामले में चौथे स्थान पर है। 14 सितंबर 1949 को भारतीय संविधान मे हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया था। और तभी से हिंदी हमारी राष्ट्र की भाषा बन गई। हिंदी हमारे देश हिंदूस्तान को एक सूत्र में बांधती है। इसलिए गांधी जी ने इसे जनमानस की भाषा माना था और हिंदी की खड. बोली को अमीर खुसरो ने अपनी भावनाओं को प्रस्तुत करने का माध्यम भी बनाया था। हिंदी भाषा की लोकप्रियता के कारण ही हिंदी भाषा के इतिहास पर पहले साहित्य की रचना एक फ्रांसिसी लेखक गार्सा तासी ने की थी। इसके अलावा हिंदी भाषा पर थीओलोजी आफ तुलसीदास नामक पहला शोध कार्य लंदन विश्वविद्यालय में अंग्रेज विद्वान जे आर कारपेंटर द्वारा किया गया था। हिंदी को हिंदुस्तान की भाषा बनाने में सुभाषचंद्र बोस का बहुत योगदान है। सुभाषचंद्र बोस ने आजादी की लड.ाई में जय हिंद का उद²घोष किया था उसी वक्त से भारत अपने दूसरे नाम हिंद से जाना जाने लगा। और चारों ओर से यही आवाज आने लगी कि हिंद की भाषा हिंदी ही होनी चाहिए। और इस तरह हिंदी अपने अस्तित्व में आयी। भारत सहित विभिन्न देशों में करीब 60 करोड. लोग हिंदी बोलते, लिखते और पढ.ते हैं। वहीं पूरे विश्व में करीब 130 विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ.ाई जाती है। चीनी भाषा के बाद यह दूसरी भाषा है जो इतनी बड. संख्या में बोली जाती है। हिंदी भाषा के इतिहास की बात करें तो, यह लगभग एक हजार साल पुरानी मानी जाती है। हिंदी की उत्पत्ति अपभ्रंश भाषाओं से हुई और अपभ्रंश भाषाओं की उत्पत्ति प्राकृत से हुईं। सामान्यताः प्राकृत की अंतिम अपभ्रंश अवस्था से ही हिंदी साहित्य का अर्विभाव स्वीकार किया जाता है। उस समय अपभ्रंश के कई रूप थे और उनमें सातवीं-आठवीं शताब्दी से ही पड्ढ रचना प्रारंभ हो गई थी। हिंदी का उद्रभव अपभ्रंश की अंतिम अवस्था अवहऊ मानी जाती है।  प्राकृत संस्कृत भाषा से निकली। इस तरह कहा जा सकता है कि हिंदी का विकास अपभ्रंश, प्राकृत और संस्कृत भाषाओं के मिश्रण से हुआ। हिंदी जब अस्तित्व में आयी तब भारत में कई प्रादेशिक भाषाओं का अपना महत्व था। वे भारतीय भाषाएं अनेकता का स्वरूप थीं। लेकन राष्ट्र की एकता को बरकरार रखने में वे प्रादेशिक भाषाएं असमर्थ थीं। वहीं हिंदी भाषा अपने विकास यात्रा के प्रारंभ से ही राष्ट्र की एकता में अपना महत्वपूर्ण योगदान देते आयी है। सारे भारतवर्ष को एक सूत्र में बांधने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हिंदी के प्रचार-प्रसार में भारतीय साहित्यकारों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। प्रेमचंद की कहानियां और उपन्यास ने हिंदी के विस्तार में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हिंदी के माध्यम से प्रेमचंद ने साहित्य को आम आदमी और जमीन से जोड.ने का कार्य किया। अपने लेखनी के माध्यम से उन्होंने साहित्स को सच्चाई के धरातल पर उतारा। प्रेमचंद ने 15 उपन्यास और 300 से ज्यादा कहानियां लिखी और लोगों को हिंदी भाषा की तरफ खींचा। साथ ही साथ सहज और सरल हिंदी को अपनाया, आम बोलचाल की भाषा में अपनी लेखनी चलाई। जिससे लोग स्वतः इनकी कहानियों की तरफ आर्कषित हुए। और हिंदी का प्रचार-प्रसार बढ.ा। महादेवी वर्मा ने स्वतंत्रा से पहले और बाद के भारत की स्थितियों को अपनी रचनाओं में उकेरा। और आधुनिक हिंदी से लोगों का परिचय करवा कर हिंदी के प्रचार में अपना योगदान दिया। भारतेंदू ने 15 वर्ष की आयु में ही साहित्य की सेवा आरंभ कर दी थी। भारतेंदू को हिंदी, मराठी, बंगला, उर्दू तथा अंग्रेजी भाषा का ज्ञान था। लेकिन इन्होंने 18साल कीे उम्र में कवि वचन सुधा नामक पत्रिका हिंदी में निकाली और हिंदी भाषा के महत्व से लोगों को रूबरू करवाया। वे आधुनिक  हिंदी साहित्य के पितामह कहे जाते थे। अपने छोटे जीवनकाल में ही हिंदी के लिए उन्होंने बहुत कुछ किया। वर्तमान परिवेश में हिंदी विश्व वाणी बनने के पथ पर अग्रसर है। अमेरिका के पूर्व राष्टकृपति बराक ओबामा कई अवसरों पर अमेरिकी नागरिकों को हिंदी सीखने की सलाह दे चुके हैं। वह कहते थे कि हिंदी सीखे बिना काम नहीं चलेगा। भारत की उभरती हुई विश्व शक्ति के रूप में पूरे विश्व में जाने के कारण ही उन्होंने अपने लोगों से यह बात कही थी। 10वें विश्व हिेदी सम्मेलन भोपाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी माना कि भारत में हिंदी सर्वमान्य भाषा है। हिंदी भारत की राजभाषा होते हुए भी आजादी के इतने सालों के बाद भी इसे राष्ट्र भाषा के रूप में मान्यता नहीं मिल पाई। इसे हमारा दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है। अंगेजी भाषा भले ही आज की जरूरत बन गई हो, लेकिन जिस भाषा में हमने अपना पूरा जीवन बिताया हो उस भाषा के लिए हमारे मन में सम्मान होना चाहिए। हिंदी को राष्ट्र भाषा का दर्जा मिलना ही चाहिए तभी 70 सालों से किया जा रहा प्रयास सफल होगा।

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Milan Tomic

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