नयी कहानी आंदोलन के नायक मोहन राकेश हिंदी साहित्य के उन चुनिंदा साहित्यकारों में से जाने जाते हैं। जिन्होंने नयी कहानी आंदोलन के जरिए हिंदी कहानी की पूरी तस्वीर बदल दी। हिंदी नाटक के क्षितिज पर मोहन राकेश का जन्म उस समय हुआ, जब स्वाधीनता के बाद पचास के दशक में सांस्कृति पुर्नजागरण का ज्वार देश के हर क्षेत्र में स्पंदित कर रहा था। उनके द्वारा रचित नाटकों ने न र्सिफ नाटकों के तेवर और स्तर को बदला बल्कि हिंदी रंगमंच की दिशा को भी प्रभावित किया। उनके प्रयासों के जरिए आधुनिक हिंदी साहित्य काल में अपने लेखन से दूर होते हिंदी साहित्य को उन्होंने रंगमंच के करीब ला दिया और स्वयं को भारतेंदू हरिश्चंद्र और जयशंकर प्रसाद के समकक्ष खड.ा कर दिया। मोहन राकेश हिंदी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्रय लेखक और उपन्यासकार हैं। उनकी कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिसके कारण वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट आते गए। मोहन राकेश कथा शिल्प के उस्ताद थे और उनकी भाषा एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। मोहन राकेश का जन्म 8 जनवरी, को अमृतसर, पंजाब में हुआ था। उनके पिताजी वकील थे और साथ ही साथ संगीत के प्रेमी भी थे। पिता की साहित्यिक रूचि का प्रभाव मोहन राकेश पर पड.ा । किशोरावस्था में ही पिता का साया सर से उठ गया लेकिन मोहन राकेश ने हिम्मत नहीं हारी और अपनी पढ.ाई को जारी रखा। इसके बाद उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से हिंदी और अंग्रजी में एम. ए किया। जीविकोपार्जन के लिए स्कूल में अघ्यापन का कार्य भी किया। साथ ही साथ लघु कहानियां भी लिखना शुरू कर दिया। उसके बाद उन्होंने कई नाटक और उपन्यास भी लिखा।
साहित्यिक अभिरूचि के कारण राकेश मोहन का अध्यापन के कार्य में मन नहीं लगा। और उन्होंने सारिका पात्रिका में संपादन का कार्य प्रारंभ कर दिया। लेकिन जल्द ही इस कार्य से भी किनारा कर अपने लेखन कार्य को आगे बढ.ाया। पिता के असमय देहांत के कारण अपनी जिंदगी के खालीपन को उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से लोगों तक पहुंचाया। संवेदनशीलता ही उनकी कहानियों की विषय वरूतु बनी। उनकी लिखी रचनाएं पाठकों और लेखकों के दिलों को छूती हैं। मोहन राकेश के नाटकों में आधे-अधूरे, आषाढ. का एक दिन और लहरों के राजहंस मशहूर हैं। उन्होंने नाटक, उपन्यास, कहानी, यात्रा वृतांत, निबंध आदि विधाओं में अपनी लेखनी चलाई। राकेश मोहन जी की सबसे बड.ी उपलब्धि उनका नाटक आषाढ. का एक दिन था, जिसने नाटकों को एक नया आयाम दिया था। इस नाटक को आधुनिक युग का प्रथम नाटक भी कहा जाता है। सन 1959 में इसे वर्ष का सर्वश्रेष्ठ नाटक होने के कारण संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। और 1979 में निदेशक मणि कौल ने इस पर आधारित एक फिल्म का र्निमाण भी किया था। जिस साल की सर्वश्रेष्ठ फिल्म के लिए फिल्म फेयर का पुरस्कार भी मिला। आषाढ. का एक दिन नाटक महाकवि कालीदास जी के निजी जीवन पर आधारित है। इस नाटक का शीर्षक कालीदास की कृति मेघदूतम की शुरूआती पंतियों से लिया गया है। क्योंकि आषाढ. के महीने में वर्षा ऋृतु की शुरूआत होती है, और इसका अर्थ होता है, वर्षा ऋृतु का एक दिन। यह नाटक त्रिखंडीय नाटक है। इसमें सफलता और प्रेम दोनों में से एक को चुनने के संशय से जुझते कालिदास की मनोवेदना को उकेरा गया है। दूसरी ओर एक रचनाकार और एक आधुनिक मनुष्य के मन की पहेलियों को रखा गया है। और प्रेम में टूटकर भी प्रेम को नहीं टूटने देने वाली इस नाटक की नायिका मल्लिका के रूप में हिंदी साहित्य को एक न भूलने वाला योग्य पात्र भी मिला। मोहन राकेश का लेखन एक अलग ही पहचान रखती है। यह र्सिफ इसलिए नहीं कि उन्होंने अच्छे नाटक लिखे, बल्कि इसलिए क्योंकि उन्होंने हिंदी नाटक को अंधेरे बंद कमरों से बाहर निकाला और उसे युगों के रोमानी सम्मोहन से उबारकर एक नए दौर के साथ जोड.कर दिखाया। आषाढ. का एकदिन नाटक के प्रकाशन के बाद भी मोहन राकेश जी ने और भी महत्वपूर्ण कार्य किए। वे अपने नाटक आषाढ. का एक दिन की भूमिका में कहते हैं कि हिंदी रंगमंच की हिंदी भाषी प्रदेश की सांस्कृतियों पूर्तियों और आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करना होगा, रंगों और राशियों के विवेक को व्यक्त करना होगा हमारे दैनिक जीवन के रागरंग को प्रस्तुत करने के लिए हमारे संवेदों और स्पंदनों को अभिव्यक्त करने के लिए जिस रंगमंच की आवश्यकता है, वह पाश्चातय रंगमंच से कहीं भिन्न होगा।
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