फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी के
दिन ही सृष्टि
का प्रारंभ अग्निलिंग
से हुआ था।
और यह अग्निलिंग
महादेव का विशालकाय
स्वरूप केे उदय
से हुआ है।
इसलिए इस दिन
शिवरात्रि का त्योहार
मनाया जाता है।
शिवरात्रि का त्योहार
शिव और शक्ति
का अभिसरण है।
सृष्टि निर्माण के बाद
पुरूष और प्रकृति
के बीच सामंजस्य
स्थापित होने से
ही सृष्टि सुचारू
रूप से चलती
है। और शिव
और शक्ति के
प्रतीक शिवलिंग का यही
अर्थ होता है।
यहां शिव पुरूष
के प्रतीक हैं,
और देवी पार्वती
प्रकृति की प्रतीक
हैं। इन दोनों
के सहयोग से
ही पृथ्वी पर
जीवन सुचारू रूप
से चलायमान है।
यदि इन दोनों
में संतुलन न
हो तो सृष्टि
सुचारू रूप से
चल नहीं पायगी।
शिव जब अपना
भैरवी रूप त्याग
कर सामान्य घरेलू
रूप धारण करते
हैं तो वे
शिव शंकर बन
जाते हैं और
जब पार्वती इस
रूप में आती
हैं तो वे
ललिता बन जाती
हैं। इस संबंध
में न कोई
विजेता होता है,
और न कोई
विजित, दोनों का एक
दूसरे में संपूर्ण
अधिकार होता है।
और इसे ही
प्रेम कहते हैं।
स्त्री की शक्ति
को स्वीकार किए
बिना पुरूष पूर्ण
नहीं हो सकता
और शिव की
प्राप्ति भी नहीं
हो सकती। यह
सिर्फ एक देवी
के माध्यम से
ही प्राप्त हो
सकता है। देवों
के देव महादेव
और माता पार्वती
की शादी की
सालगिरह के रूप
में शिवरात्रि का
त्योहार पुरे भारतवर्ष
में मनाया जाता
है। भगवान शिव
के रूप में
ही जीवन के
सार छुपे हुए
हैं।
शिव को
त्रयंबक कहा जाता
है, वह इसलिए
क्योंकि उनकी तीसरी
आंख है। तीसरी
आंख का मतलब
बोध और अनुभव
का एक दूसरा
आयाम। दो आंखें
सिर्फ भौतिक चीजें
देख सकती हैं,
वहीं अगर तीसरी
आंख खुले तो
बोध का एक
दूसरा आयाम खुल
जाता है। और
यह बोध दुनिया
को एक अलग
दृष्टि से देखने
का अवसर देता
है। और यह
दुनिया की सारी
अच्छाई और बुराई
से हमें अवगत
करता है। भगवान
शिव के मस्तक
पर चंद्रमा विराजमान
है, जिसका अर्थ
होता है सोम।
शिव को चंद्रमा
की वजह से
ही सोम या
सोमसंुदर कहा जाता
है। यहां सोम
का अर्थ होता
है नशा। यहां
नशे से मतलब
बाहरी पर्दाथों के
द्वारा नशा करना
नहीं बल्ेिक यह
हमारे जीवन की
प्रक्रिया का रूप
है। लोग सिर्फ
अपनी जरूरतों को
पूरा करन जिंदगी
को कष्टदायक बना
कर जीवन जी
रहे हैं। इस
परिस्थती से बाहर
निकल कर जीवन
को सरल बना
कर जीने की
कला चंद्रमा से
मिलती है। भगवान
शिव की सवारी
नंदी अनंत प्रतीक्षा
का प्रतीक है।
भारतीय संस्कृति में इंतजार
को सबसे बड.ा गुण
माना जाता है।
और नंदी शांत
भाव से चुपचाप
बैठ कर भगवान
शिव की प्रतीक्षा
करता रहता है,
उसे उम्मीद है
कि उसके आराध्य
आयेंगे और उसपर
ध्यान देंगे। नंदी
मनुष्यों को
ध्यान लगा कर
अपने लक्ष्य के
प्रति मेहनत करने
की सीख देता
है। उसमें घैर्य
इतंजार और विश्वास
है, जो अपने
लक्ष्य पर अडिग
रहने की प्रेरणा
देता है। शिव
का त्रिशूल जीवन
के तीन पहलुओं
को दर्शाता है।
योग परंपरा में
उसे रूद्र, हर
और सदाशिव कहा
जाता है। ये
जीवन के तीन
आयाम इड.ा, पिंगला
और सुषुम्ना का
प्रतीक हैं। ये
तीन नाडि.यां
मानव तंत्र के
क् र्जा के
सोत्र हैं। जिनसे
मनुष्य में प्राणों
का संचार होता
है। इन नाडि.यों
का कोई भौतिक
रूप नहीं होता
है। शिवजी के
गले में लिपटा
सर्प कुंडलिनी का
प्रतीक है। जिसका
स्वभाव यह होता
है कि जब
वह स्थिर होती
है, तो यह
पता नहीं चलता
कि वो कितनी
शक्तिशाली है। उसे
देखने पर वह
शांत दिखती है,
वहीं समय आने
पर वह अपनी
शक्ति प्रकट करती
है। भगवान शिव
के मंत्र › नमः
शिवाय वह मूल
मंत्र है, जिसे
कई सभ्यताओं में
महामंत्र माना गया
है। और यह
मंत्र शरीर के
पांच मुख्य केंद्रों
के भी प्रतीक
हैं। इस में
पांच मंत्रों का
समावेश है इसलिए
इस मंत्र को
पंचाक्षर मंत्र कहा गया
है। यह मंत्र
पूरे तंत्र के
शुद्धिकरण के लिए
बहुत ही शक्तिशाली
है। इस पंचाक्षर
मंत्र से पांचों
केंद्रों को सहज
ही जाग्रत किया
जा सकता है।
इस तरह भगवान
शिव के सारे
अलंकारों में समस्त
जीवन के सार
छुपे हुए हैं।
जो मनुष्यों को बेहतर
जीवन यापन में
लाभदायक हैं। और
शक्ति स्वरूप पार्वती
सारी इंद्रियों को
और भी शक्तिशाली
बना कर सृष्टि
के कालचक्र में
अपना योगदान देती
हैं। इसलिए शिव
और शक्ति ही
सृष्टि के संचालक
हैं।
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