महिला दिवस के
मायने
8 मार्च यानी अंतरराष्टी´य महिला
दिवस अर्थात महिलाओं
को यह अहसास
दिलाने का दिन
की वो कितनी
खास हैं पूजनीय,
सम्मानीय और न
जाने क्या-क्या
हैं। लेकिन अगर
इन तमाम बातों
पर गौर किया
जाए तो यह
विचारणीय है। कि
आखिर ऐसी क्या
वजह रही होगी
कि महज एक
दिन के लिए
महिलाएं आम से
बिल्कुल खास हो
जाती हैं। और
साल के 364 दिन
उन्हें अपने सम्मान
और अधिकारों के
लिए जद्रदोजहद करनी
पड.ती कभी
खुद से, तो
कभी समाज से
और कभी अपने
परिवार से। और
यह सब सिर्फ
भारत के संदर्भ
में कही गईं
बातें नहीं है।
यह पूरे विश्व
की महिलाओं की
स्थिती है। तभी
तो अपने अधिकारों
और अपने सम्मान
के लिए 8 मार्च
अंतरराष्ट´ीय
महिला दिवस की
आवश्यकता महसूस हुई। इस
महापर्व को मनाने
का मुख्य उड्ढेश्य
यह भी था
कि महिलाओं और
पुरूषों में समानता
बनी रहे। लेकिन
आज भी दुनिया
के कई हिस्सों
में महिलाओं को
समानता का अधिकार
प्राप्त नहीं है।
भेदभाव की शिकार क्यों
होती हैं महिलाएं
नौकरी हो या
पदोन्नती सभी में
महिलाओं को परेशानियों
का सामना करना
पड.ता है।
आज भी कई
देशों में वे
शिक्षा और स्वास्थ्य
की दृष्टि से
पिछड.ी हुई
हैं। दिन प्रतिदिन
महिलाओं के प्रति
हिंसा के मामलों
में निरंतर बढ.ोतरी हो
रही हैं। इसके
अलावा राजनीतिक परिपेक्ष्य
में अभी भी
महिलाओं की संख्या
पुरूषों से बहुत
ही पीछे है।
और उनका आर्थिक
स्तर भी पिछड.ा हुआ
है। शायद अंतरराष्टी´य महिला
दिवस इस लिए
मनाने का निर्णय
लिया गया होगा
ताकि महिलाओं को
इन समस्याओं से
निजात मिल सके।
भारतीय संस्कृति में नारी
के सम्मान को
बहुत महत्व दिया
गया है। संस्कृत
में एक श्लोक
है- यस्य पूज्यंते
नार्यस्तु तत्र रमन्ते
देवताः। अर्थात, जहां नारी
की पूजा होती
है, वहां देवता
निवास करते हैं।
किंतु वर्तमान में
जो हालात हैं,
उसमें नारी का
हर जगह अपमान
हो रहा है।
बेजान नहीं होती
है इनमें भी
जान
उसे लोग र्सिफ
और र्सिफ एक
भोग की वस्तु
समझ कर अपने
तरीके से इस्तेमाल
कर रहा है।
जो बेहद ही
चिंताजनक बात है।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पहले
औरतों को पुरूषों
ने सती सावित्री
की तरह परिभाषित
किया था। जो
एक स्वप्न लोक
में बसी एक
खूबसूरत देह थी,
एक ऐसी देह
जिसके अंदर कोई
भावना नहीं होती
थी। वह एक
बेजान सी रहने
वाली नारी थी
जिसके अंदर किसी
चीज की कोई
आशा नहीं थी।
वह अपनी भावनाओं
को छुपा कर
रखती थी, और
र्सिफ परिवार और
पति के ईदर्गिद
अपनी पूरी जिंदगी
समर्पित कर देती
थी। ऐसा नहीं
था कि वो
अपनी भावनाओं को
व्यक्त नहीं करना
चाहती थीं। वे अपनी
भावनाओं की अभिव्यक्ति
के लिए भीतर
ही भीतर छटपटती
रहती थीं। और
उनकी अभिव्यक्ति की
छटपटाहट को समझा
महादेवी वर्मा, मन्नू भंडारी,
उषा प्रियवंदा और
शाशिप्रभा आदि लेखिकाओं
ने। इन्होंने नारी
की पीड.ा
को समझा और
उनकी अभिव्यक्ति को
शब्दों में ढाल
कर लोगों को
रूबरू करवाया। और
नारी के सती
सावित्री वाली बोध
से उसे नारायणी
जैसा सम्मान दिलवाया।
आज के दौर
में भारतीय संस्कृति
में नारी को
महत्वपूर्ण स्थान दिया गया
है वह शिव
भी है और
वो शक्ति भी
है।
उठरती हैं दोहरी जिम्मेदारी
आज वो सभी कार्य कर रही है जो एक पुरूष करता है। पुरूषों से ज्यादा आज महिलाएं घर और बाहर दोंनो ही जगह अपनी जिम्मेदारियां निभा रही हैं। वहीं लड.के एक समय में एक ही जिम्मेदारी उठाते हैं। लेकिन फिर भी महिलाओं को वो सम्मान नहीं मिल पा रहा जिसकी वो हकदार हैं। वे आज मानसिक, वैचारिक और शारीरिक रूप से प्रताडि.त हो रही हैं। अब तो महिलाओं के साथ अभद्रता की पराकाष्ठा हो रही है। आए दिन हम अखबारों और न्यूज चैनलों में पढ.ते और देखते हैं कि महिलाओं के साथ-साथ छोटी बच्चियों के साथ भी छेड.छाड. और सामूहिक बलात्कार की घटनाएं घटित हो रही हैं। इस तरह की घटनाओं को देख कर कहा जा सकता है कि यह समाज का नौतिक पतन ही हो रहा है। भ्रूण हत्या और घरेलू हिंसा के आकड.े तो नित्य प्रतिदिन बढ.ते ही जा रहे हैं। इन घटनाओं को देख कर सहज ही कहा जा सकता है कि आज भी महिला निसहाय और बेबस ही है। इन सब घटनाओं के पीछे फिल्म टेलीविजन और इंटरनेट में परोसी जाने वाली अश्लीलता जिम्मेदार है। जिसे देख कर नवयुवकों के मन मस्तिष्क पर बहुत ही खराब असर पड.ता है। और इसका परिणाम दिल्ली गैंगरेप जैसी दिल को दहला देने वाली घटना होती है। इसमें सारे पुरूष कौम शामिल नहीं हैं। आज महिलाओं के सम्मान और उसकी अस्मिता की रक्षा के लिए कड.े कानून और सजा मुकर्र करने की जरूरत है। ताकि लोगों में इस तरह की घटनाओं को अंजाम देने से पहले उनकी रूह कांप जायें। तभी हर दिन हमारा होगा।
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