विरह और वेदना की प्रतिमूर्ति महादेवी वर्मा



 संपूर्ण भारतीय साहित्य में विरह वेदना को श्रेष्ठ रूप में प्रस्तुत करने के लिए महादेवी का स्मरण किया जाता है। वेदना और पीड. महादेवी जी की कविताओं के प्राण रहे हैं। उनका समस्त काव्य वेदनामय ओर चिंतन प्रधान है। उनकी विरह वेदना एक कवयित्री की विरह वेदना है। महादेवी वर्मा रहस्यवाद और छायावाद की कवयित्री थीं। इसलिए उनके काव्य में आत्मा-परमात्मा के मिलन विरह तथा प्रकृति के व्यापारों की छाया सहज ही देखने को मिलती है। उनकी कविताओं में वेदना प्रधान होने के कारण ही उन्हें निराशावाद अथवा पीड.ावाद की कवयित्री कहा गया है। महादेवी ने स्वयं लिखा है कि दुः, मेरे निकट जीवन का ऐसा काव्य है, जिसमें सारे संसार को एक सूत्र में बांध कर रखने की क्षमता होती है। इनकी कविताओं में सीमा के बंधन में पड. असीम चेतना का क्रंदन है। और यह वेदना लौकिक वेदना से भिन्न आध्यात्मिक जगत की है, जिसने उस अनुभूति क्षेत्र में प्रवेश किया हो। इस वेदना को महादेवी ने एक सूत्र में बांध कर रखने की क्षमता भी कहती हैं। लेकिन विश्व को एक सूत्र में बांधने वाला दुख सामान्यता लौकिक दुःख ही होता है, जो भारतीय साहित्य की परंपरा में करूण रस का अस्थायी भाव होता है। और महादेवी ने इस दुःख को नहीं अपनाया। उनके लिए दुःख के दोनों रूप ही प्रिय थे। आघ्यात्मिक वेदना की दिशा में प्रारंभ से अंत तक महादेवी के काव्य की सूक्ष्म और विवृत्त भावानुभूतियों का विकास और प्रसार दिखाई पड.ता है। हजारी प्रसाद द्विवेद्धी ने तो महादेवी वर्मा की पीड. को मीरा की काव्य पीड. से बढ.कर माना है। हिंदी साहित्य को जिन रचनाकारों ने अपनी पहचान के साथ समृद्ध किया है, उसमें महादेवी का नाम प्रमुख है। वे हिंदी साहित्य के छायावादी युग की कवयित्री हैं, जिन्होंने हिंदी साहित्य में विरह वेदना काव्य की रचना की। उन्हें वेदना की साक्षात मूर्ति कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। इनकी कविताओं में करूणा, संवेेदना और दुःख के पुट की अधिकता है। महादेवी के काव्य की प्रत्येक पंक्ति विरहानुभूति से उद्रवेलित है। विरह की मधुर पीड. का संचार इनके जीवन में इस हुआ कि हिंदी साहित्य में इन्हें आधुनिक मीराबाई की उपाधि मिली। महादेवी जी की वेदनानुभूति संकल्पात्मक अनुभूति की सहज अभिव्यक्ति है। मिलन का नाम मत लो, मैं विरह में भी चिर हूं अपनी कविता के माध्यम से वे इसी विरह को जीवन की साधना मानती हैं। उन्होंने पीड. की महत्व को ही नहीं बताया बल्कि उसका सुखद पक्ष भी स्पष्ट भी किया है। महादेवी के लिए सुख का कोई अस्तित्व नहीं है। उनका मानना है कि जब दुःख अपनी अंतिम सीमा तक पहुंच जाता है तब वही सुख का रूप ले लेता है। अर्थात दुःख जीवन का वह काव्य है जो समस्त विश्व को एक सूत्र में बांधने की क्षमता रखता है। उनकी कविता अनूभूति से परिपूर्ण है, पंत और निराला की कविताओं में दार्शनिकता का पुट देखने को मिलता है। लेकिन वहींे महादेवी के काव्य में ऐसी कोई बातों का उल्लेख नहीं है। उनमें दार्शनिकता होते हुए भी सरसता है, वह सर्वत्र भावना प्रधान है। उनके काव्य में संगीतात्मकता  का विशेष गुण है। वे गीत लेखिका हैं। गीतों की लय छंदों पर उनका अदभुत अधिकार हर जगह दिखाई देता है।  उनके गीत उज्जल प्रेम के गीत हैं। उन्होंने ब्रö को अपने प्रियतम के रूप में देखा है। और अपने प्रेम पात्र के लिए ही उन्होंने प्रिय का संबोधन किया है। अपने प्रियतम के लिए वेदना ही उनके öदय का भाव केंद्र है जिससे अनेक प्रकार की भावनाएं निकलती हैं। वेदना से महादेवी जी ने स्वाभाविक प्रेम व्यक्त किया है। वे उसी साथ रहना चाहती हैं, उसके साथ वे बहुत खुश हैं।और इस वेदना में इतनी खुशी ढूंढ लेती हैं। इसके आगे मिलनसुख को भी कुछ नहीं मानती हैं।  और कहती हैं कि - मिलन का नाम मत ले मैं विरह में भी चिर हूं। इस वेदना को लेकर वे अपने öदयमें ऐसी अनुभूतियां सामने रखी हैं जो लोकोत्तर हैं। कहां तक वे वास्तविक अनुभूतियां हैं और ये कहां तक रमणीय कल्पना यह कहा नहीं जा सकता है। कहा जा सकता है कि  वे दुःख को जीवन की स्फूर्ति तथा प्रेरणा तत्व मानती हैं। उनकी दृष्टि में वेदना अंतःकरण कोे शुद्ध करती है, प्रिय को निकट लाती है और प्रियतम की शोभा भी उसी पर आधारित होती है। अतः उनके काव्य में दुःख के तीन रूप मिलते हैं निर्माणात्मक, करूणात्मक और साधनात्मक। वे नैराश्यवाद को स्वीकार नहीं करतीं। उन्होंने दुःख को मधुर भाव के रूप में स्वीकार किया है जिसमें वे अलौकिक प्रिय के लिए दीप बनकर जलना चाहती है। और अपने प्रियतम का पथ आलोकित करना चाहती हैं।



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Milan Tomic

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