छोटे से गांव में बड.े सपने सजाए रीतू दिल्ली शहर में पढ.ाई कर नौकरी करने के उड्ढेश्य से आई थी। उसे अपने पिता जो पेशेे से किसान थे, उनके सिर से कर्ज का बोझ उतारना था। और अपने छोटे भाई बहनों को अच्छी शिक्षा भी दिलवानी थी। थोड.े बहुत पैसे जो उसकी मां ने बचा कर रखे थे उसने रीतू को दिल्ली जाने के लिए दे दिए। वो भी यही चाहती थी कि रीतू दिल्ली जा कर छोटी -मोटी नौकरी करे और आगे की अपनी पढ.ाई भी पूरी करे। रीतू अपने सपने और घर की जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव से दिल्ली आ गई। पढ.ाई में वो काफी तेज थी इसलिए कॉलेज में उसे एडमिशन जल्द ही मिल गया। जल्द ही उसने पार्ट टाईम जाब भी ढूंढ लिया और कालेज के पास एक छोटा सा कमरा किराए पर ले लिया। रीतू की दिनचर्या अब बहुत ही व्यस्त हो गई थी। कॉलेज के बाद उसे तुरंत ही अपने काम पर जाना पड.ता था। उसकी जिंदगी मशीन बन गई थी। कभी- कभी जब वह अपनी उलझनों से परेशान हो जाती तो अपने घर के पास के पार्क पर जा कर प्रकृति के बीच अपना मन हल्का कर लेती थी। पार्क की हरिेयाली, उसके पेड. पौधे और बीच में एक तालाब रीतू के मन को बहुत ही सुकून देते थे। वहां जा कर वो अपने सारे गम और थकान भूल जाती थी। सप्ताह की भाग दौड. के बाद रविवार के दिन रीतू ने सोचा क्यों न आज प्रकृति का सान्निधय पाया जाए, ऐसा सोच कर वह पार्क में चली गई। पार्क के अंदर बहुत भीड. थी। कोई सैर कर रहा था, तो कहीं बुजुर्गों की मंडली लगी हुई थी। रीतू इन सब को देख कर अपने गांव और अपने परिवार वालों को याद कर उदास हो गई। थोड.ी ही देर में एक लड.की ने रीतू का ध्यान आकर्षित किया। फूलों के बगीचे के बीच लगभग सात आठ साल की एक खूबसूरत सी लड.की फूलों से बातें कर मुस्कुरा रही थी। उसके चेहरे में मासूमियत और आंखों में एक उम्मीद थी। उस खबसूरत सी आंखों वाली लड.की का नाम था नयना। रीतू उसकी ओर जा कर उसने उसकी बातें सुनने लगी। उसकी बातें सुन कर रीतू को अपनी छोटी बहन की याद आ गई। और वह उसके साथ एक जुड.ाव महसूस करने लगी। रीतू उसके पास जा कर उससे बातें करने ही वाली थी कि अचानक उस लड.की की दोस्त उसे वहां से बुला कर ले गई। रीतू अब प्रत्येक रविवार को पार्क में जाने लगी यह सोच कर की कभी उस लड.की से उसकी बात हो जायेगी। एक अनजानी सी डोर रीतू को उसकी तरफ खींच रही थी। वहीं नयना पार्क में आने-जाने वालों से बेखबर अपनी ही दुनिया में मस्त रहती थी। रीतू जब भी नयना से बात करने उसकी तरफ जाती तभी वह पार्क से वापस लौट रही होती। रीतू ने सोचा किसी दूसरे दिन इससे बात की जायेगी, यह सोच कर वह अपने कमरे में आ गई। तभी गांव से उसकी छोटी बहन का फोन आया। उसने बताया कि पिताजी की तबीयत ज्यादा खराब हो गई है। वो अब खेत पर भी नहीं जा पा रहे हैं, और कर्जदार रोज आ कर अपने पैसे मांग रहे हैं। और खाने पीने की भी दिक्कत हो गई है। यह सुन कर रीतू अपने आंसूओं को रोककर अपनी बहन को कहती है कि वह कुछ इंतजाम करेगी। बहन से बात करने के बाद रीतू बहुत देर तक रोती रही। क्योंकि वह खुद भी जानती थी कि अभी महीने के आखिरी दिन हैं और इतनी जल्दी वह कुछ भी कर पाने में असमर्थ है। यही सब सोचती हुई वह अपने मन को हल्का करने के लिए पार्क में जाने लगी। क्योंकि यही वो जगह है जहां रीतू को शांति मिलती थी। रीतू पार्क में आ कर अपने घर की हालत और अपनी पिता के ईलाज के लिए पैसे कहां से आयेंगे यही सब सोच रही थी। क्योंकि उसके पास इतने पैसे तो थे नहीं कि वो दिल्ली जैसे महानगर में रह कर अपनी पढ.ाई भी पूरी कर सके और अपने परिवार की मदद भी कर सके। इसलिए उसने तय कर लिया कि वह कुछ ही दिनों में सब कुछ छोड.कर अपने गांव लौट जायेगी। इतने में उसके पास से नयना और उसकी दोस्त गुजर रहे थे। रीतू ने उन दोनों को आवाज दे कर बुलाया, और उनसे बातचीत शुरू की। नयना भी रीतू से बात कर बहुत ही खुश हुई। अब तो अक्सर ही नयना और रीतू की बातें होने लगी। रीतू नयना को देखकर हमेशा सोचा करती थी कि यह कितनी नसीब वाली है, जो हर वक्त हंसती मुस्कुराती रहती है। काश मेरी भी किस्मत इसके जैसे होती। आज रीतू नयना से आखिरी बार मिलने पार्क जा रही थी। रीतू बहुत ही दुखी थी। नयना ने आते ही रीतू से पूछा दीदी आज आप बहुत ही उदास हैं कोई बात है क्या। रीतू ने पहले तो बहाने बनाये लेकिन अंत में उसे नयना की जिद के कारण उसे सब कुछ बताना पड.ा। और अंत में यह भी कहा कि अब हम कभी नहीं मिल पायेंगे, क्योंकि मैं हमेशा के लिए अपने गांव लौट रही हूं। नयना यह सुन कर बहुत ही दुखी हो गई। और रीतू से कहा दीदी आज अगर आपके परिवार में परेशानियां हैं, तो कल सब कुछ ठीक हो जायेगा। लेकिन आप इस तरह स हिम्मत हार कर नहीं जा सकतीं। रीतू ने कहा नयना हर किसी की किस्मत तुम्हारी तरह नहीं होती है न। नयना यह सुन कर कहने लगी दीदी भगवान न करे किसी की किस्मत मेरी तरह हो। बचपन में एक एक्सीडेंट में मेरे माता-पिता का देहांत हो गया। मुझे सारे रिश्तेदारों ने ठुकरा दिया। एक संस्था ने मुझे पाला पोसा। फिर भी मुझे जिंदगी से कोई शिकायत नहीं है, आज आपके पास आपकी ताकत आपका परिवार है। फिर आप कैसे हिम्मत हार सकती हैं। नयना की बातें सुन कर रीतू को हिम्मत मिली। उसने नयना को कहा शायद तुम ठीक कहती हो, और आसमान में अस्त हो रहे सूरज की ओर इशारा करते हुए उसे देखने को कहती है। लेकिन नयना अंजान बन कर वहीं खड.ी रही। रीतू कहती है नयना यह देखो यह सूरज अस्त हो रहा है शायद मेरी दुखों की तरह। रीतू ने देखा कि नयना चुपचाप खड.ी है, तब उसने पूछा तुम देख क्यों नहीं रही हो। नयना उदास मन और भारी आवाज से बोली दीदी मैं देख नहीं सकती हूं। यह सून कर रीतू को आर्श्यय हुआ कि उसे इतने दिनों में कभी यह पता नहीं चला कि नयना देख नहीं सकती, फिर भी वो कितनी खुश है। उसे जिंदगी से कोई शिकायतें नहीं है। और एक मैं हूं जो घबराकर भाग जाना चाहती हूं। उसने नयना को गले से लगाया और रोने लगी। ये आंसू उसे दुखों से लड.ने कीे प्रेरणा दे रहे थे।
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