रविन्द्रनाथ
टैगोर यानि एक
ऐसे बहुमुखी प्रतिभा
के धनी व्यक्ति
जिनके व्यक्तित्व को
शब्दों में बयां
कर पाना असंभव
है। वे ऐसे
अदभूत प्रतिभा के
धनी व्यक्ति थे,
जिनका जीवन एक
प्रेरणादायक था। वे
एक ऐसे विरल
साहित्यकारों में से
एक हुए जो
हर जगह आसानी
से उपलब्ध नहीं
हो सकते। बल्कि
वे एक सदी
में धरती पर
जन्म लेते हैं
और, इस धरती
को धन्य कर
जाते हैं। रवीन्द्रनाथ
टैगोर का व्यक्तित्व
बिल्कुल एक महात्मा
की तरह था।
वे लंबे-लंबे
बाल रखते थे
और उनकी दाढी
लंबी हुआ करती
थी। उनके बहुत
से शिष्य थे,
जो उन्हें बड.ी श्र्या
से गुरूदेव कहते
थे। उनकी माता
का नाम शारदा
देवी और पिता
का नाम देवेन्द्रनाथ
टैगोर था। रवीन्द्रनाथ
टैगोर की प्रारंभिक
शिक्षा घर पर
ही शुरू हुई।
बचपन के दिनों
से ही उन्होंने
कविता लिखना शुरू
कर दिया था।
बाद में वे
उच्च शिक्षा के
लिए इंग्लैंड भी
गए लेकिन वहां
की पारंपारिक व्यवस्था
के द्वारा संतुष्ट
नहीं हुए और
वो भारत आए।
उनकी रूचि और
मानवता के नजदीकी
जुड.ाव ने
देश के प्रति
कुछ सामाजिक सुधार
करने के लिए
उनका ध्यान खींचा।
इसके बाद उन्होंने
एक स्कूल शांतिनिकेतन
की शुरूआत की
जहां वो शिक्षा
के उपनिषद के
आदर्शों का अनुसरण
करते हुए व्यवहारिक
शिक्षा के महत्व
को समझाया। इस
स्कूल की खास
बात यह थी
कि यह पूरी
तरह से खुले
मैदान में चलता
था। जहां पर
र्सिफ पढाई लिखाई
ही नहीं बल्कि
नाच,गाना कला
इत्यादि के बारे
में भी बताया
जाता था। बाद
में यही स्कूल
कालेज के नाम
से प्रसिद्ध हुआ।
और यहीं से
श्रीमती इंदिरा गांधी ने
भी कुछ समय
के लिए शिक्षा
ग्रहण की थी।
मनुष्य और ईश्वर
के बीच जो
चिरस्थायी संपर्क है, उनकी
रचनाओं के अंदर
वह अलग-अलग
रूपों में उभर
कर आता है।
साहित्य की शायद
ही कोई शाखा
होगी जिस पर
गुरूदेव ने रचना
न की हो।
कविता, गान, कथा,
उपन्यास, नाटक, प्रबंध, शिल्पकला
सभी विÚाओं
में रचना की।
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपने
जीवनकाल में कई
उपन्यास, निबंध, लघु कथाएं,
यात्रावृतांत, नाटक और
हजारों की संख्या
मे गाने भी
लिखे हैं। गड्ढ
में इनके द्वारा
लिखी छोटी कहानियां काफी
लोकप्रिय रही हैं।
वास्तव में बंगाली
भाषा के संस्करण की
उत्पत्ति का श्रेय
रवींद्रनाथ टैगोर को ही
दिया जाता है।
उनके काम अक्सर
उनके लयबद्ध, आशावादी
और गीतात्मक प्रकृति
के लिए काफी
उल्लेखनीय हैं। वो
एक कवि होने
के साथ-साथ
एक देशभक्त भी
थे। उन्होंने अपने
पूरे लेखन के
द्वारा प्यार, शांति और
भाईचारे का संदेश
दिया। अपनी
कविताओं के माध्यम
से प्यार और
सौहार्द के बारे
बताते हूए सब
को साथ मिलकर
काम करने के
लिए प्रोर्त्सािहत भी
किया। वे
एक ऐसे कवि
थे जिन्होंने देश
को राष्ट´गान
’जन गण मण’
दिया है। साथ
ही साथ बंगला
देश का राष्टकृीय
गान आमार सोनार
भी इन्होंने लिखा।
उनकी द्वारा रचित
गीतांजलि के अंग्रेजी
संस्करण के लिए
1913 में उन्हें नोबल पुररूकार
से नवाजा गया।
वे पहले भारतीय
और एशियाई थे
जिनको ये सम्मान
प्राप्त हुआ। देशभक्ति
इनके अंदर कूट-कूट के
भरी हुई थी।
इसलिए इन्होंने जलियांवाला
बाग नरसंहार के
खिलाफ विरोध में
1919 में ब्रिटिश सरकार द्वारा
दिये अवार्ड नाइटवुड
को इन्होंने अपने
देश और देशवासियों
के प्रति अंतहीन
प्यार के कारण
वापस कर दिया।
रवींद्रनाथ टैगोर के दृष्टिकोण
में मानवजाति के
पूर्ण विकास के
लिए सामाजिक, सांस्कृतिक
और धार्मिक विभिन्नताएं
आवश्यक हैं। वे
महान कवि तो
थे ही साथ
ही साथ समाज-सुधारक भी थे। उन्होंने
भारत का गौरव
बढ.ाया। हम
भारतवासियों को ऐसे
विद्धान पर हमेशा
ही गर्व रहेगा।
उनके आदर्शों पर
चल कर ही
हम उन्हें सच्ची
श्रद्धांजलि दे सकते
हैं।
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