नवरात्रि सिर्फ मातृशक्ति की आराधना, पूजा और अनुष्ठान का प्रतीक नहीं है। बल्कि यह नारीे सशक्तिकरण का स्मरण करने का भी दिन है। मां आदिशक्ति दुर्गा के नौ रूप नारी सशक्तिकरण का प्रतीक है। नवरात्रि नारी शक्ति के आदर और सम्मान का उत्सव है। कहा जा सकता है कि यह त्योहार नारी को अपनी शक्ति का अहसास करवा कर अपने स्वाभिमान की रक्षा करना भी सीखाता है। नवरात्रि एक सांस्कृतिक त्योहार है जो मां दुर्गा के सृजन,पालन और संहार तीनों रूपों के महत्व को हमारे सामने रखता है। यह त्योहार समस्त नारी जाति का प्रतिनिधत्व भी करता है। क्योंकि नारी अगर सृजन कर अपने अंश को बढ.ाती है, उसे पालती है तो वहीं अगर बात जब अपने सम्मान की रक्षा करने की होती है तो वह संहार करने से भी नहीं चूकती है। ठीक वैसे ही जैसे आदिशक्ति मां दुर्गा ने जगत के कल्याण के लिए महिषासुर जैसे दानव का संहार कर समस्त लोकों को उसके आंतक से बचा कर सृष्टि की रक्षा की थीं। नौ दिनों के इस त्योहार में प्रकृति के नौ रूपों में मां दुर्गा मानव जाति को जीवन जीने का संदेश देती हैं। विपदाओं को हरण करने वाली माता कालरात्रि हमें जीवन की विपत्तियों का डट कर सामना करने की सीख देती हैं। शांति का संदेश देने वाली श्वेत वस्त्रधारी मां महागौरी जीवन के विपरीत परिस्थितियों में शांत रहने की सीख देती हैं। नवरात्रि का त्योहार महिलाओं को सम्मान देने की परंपरा को जीवंत रखने का संदेश देता है वह यह बताता है कि आज की महिला में ताकत है तो प्रेम भी है। नारी अगर जीवन देती है तो वो संहार करना भी जानती है। अगर वह क्रोध करती है, तो वह क्षमा की शीतलता भी प्रदान करती है।
मां दुर्गा की पूजा हमें यह बतलाती है कि औरत की वास्तविक शक्ति क्या है। हमारे देश में नारी का दर्जा हमेशा से उंचा रहा है और वह पूजनीय है। लेकिन वर्तमान में नारी की स्थिती को देख कर ऐसा कहना अतिशयोक्ति ही होगी। आए दिन हम औरतों के साथ होने वाले हिंसा और बलात्कार की घटनाओं को देखते, सुनते और पढ.ते हैं। और अब तो छोटी-छोटी बच्चियां भी बलात्कार का शिकार हो रही हैं। कन्या पूजन करने वाले ही अपने घरों में कन्या का आगमन नहीं चाहते। जिस तरह हम नवरात्रि में माता की पूजा कर स्त्री शक्ति की अस्मिता को स्वीकारते हैं। क्या उसी तरह हर नारी में हम मां दुर्गा की छवि देख कर उनका सम्मान नहीं कर सकते। हर स्त्री में आदिशक्ति विराजमान है, लेकिन हम सिर्फ चौखट के अंदर रहने वाली मां को ही पूजते हैं। और जो चौखट के बाहर है उसे सम्मान की दृष्टि से देखना पसंद नहीें करते हैं। हमें अपनी दोहरी मानसिकता को बदल कर हर स्त्री को सम्मान की नजरों से देखना होगा। और इस बात की झलक बंगला संस्कृति में देखने को मिलती है। बंगला समुदाय के लोग मां दुर्गा की प्रतिमा बनाने के लिए चार चीजों का इस्तेमाल करते हैं। सबसे पहले वे गंगा घाट की मिट्रटी लेते हैं, उसके बाद गो मूत्र, तीसरी चीज गोबर और चौथी चीज वैश्या के आंगन की मिट्रटी लेते हैं। और फिर मां दुर्गा की प्रतिमा का निर्माण करते हैं। और हमारे संस्कारी समाज में वैश्याओं को हीन और तुच्छ दृष्टि से देखने का चलन है। लेकिन लोेकमान्यता के अनुसार वैश्या के आंगन की मिट्रटी लेने के पीछे का कारण यह है कि वैश्या के आंगन की मिट्रटी सबसे शुद्ध मानी गई है। ऐसा इसलिए क्योंकि जब कोई शख्स वेश्या के पास जाता है तो वो अपनी तमाम अच्छाई, और गुण को दरवाजे के बाहर छोड.कर आता है। उस दरवाजे के अंदर जाने से पहले उसके मन में सिर्फ और र्सिफ एक ही बात होती है। इसी कारण उस घर में तमाम शुद्धता और इच्छाशक्ति ही प्रवेश करती है। और जहां मनुष्य की इच्छा शक्ति ही प्रवेश करे उससे पवित्र और कोई स्थान हो ही नहीं सकता। इसलिए उस स्थान का महत्व बढ. जाता है। और वहां कि मिट्रटी पवित्र हो जाती है। कहने का तात्पर्य यह है कि जहां नारी का आदर सम्मान होता है, उनकी अपेक्षाओं की पूर्ति होती है, उस स्थान, समाज तथा परिवार पर भगवान प्रसन्न रहते हैं। और नारी सशक्तीकरण की इसी रूप को दुर्गा पूजा के रूप में मनाने की बात कही गई है। वर्तमान परिवेश में नारी के प्रति संवेदनाओं में विस्तार करने की जरूरत है। जिस तरह हम नवरात्रि में मातृशक्ति के अनेक रूपों की पूजा कर उनका स्मरण करते हैं, उसी प्रकार नारी के गुणों का हमें सम्मान करना होगा। हमारे घर से लेकर बाहर रहने वाली प्रत्येक नारी में हमें वो सारे गुणों को ढूंढ कर उसका सम्मान करना होगा। और जिस दिन नारी का सच्चा सम्मान होगा उस दिन नवरात्र में भक्ति के साथ सार्थकता के रंग का समावेश होगा। और अगर यह नहीं हो सका तो प्रत्येक नारी को अपने सम्मान की रक्षा करने के लिए खुद ही शेर पर सवार होना होगा।

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