मानव को प्रकृति से सीधे रूप में जोड.ने वाली छठ पूजा का त्योहार कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है। वर्तमान में यह पूजा पूरे भारतवर्ष में मनायीे जाने लगी है। लेकिन इसकी शुरूआत भारत के पूर्वी भाग से ही मानी जाती है। इस त्योहार में उगते और अस्त होते सूर्य की पूजा की जाती है। हिंदू धर्म के अनुसार प्रकृति की पूजा का विशेष प्रावधान है हम ईश्वर को विभिन्न रूपों में मानकर उनकी पूजा अर्चना करते हैं। पूरे ब्रöमांड में रोशनी और जीवन सूर्य से ही प्राप्त होते हैं और सूर्य के कारण ही दिन और रात होते हैं। भारतीय संस्कृति में ऋृग वैदिक काल से सूर्य की उपासना का उल्लेख मिलता है। हिंदू धर्म के अनुसार सूर्य ही एक ऐसे देवता हैं, जिनका साक्षात रूप से दर्शन किया जाता है। संपूर्ण जगत सूर्य से ही चलायमान है। पेड. पौधों के अस्तित्व से लेकर दिन, रात, धूप-छांव, सर्दी गर्मी और बरसात भी सूर्य के द्वारा ही संचालित होते हैं। जिसके कारण सूर्य को आदिदेव भी कहा जाता है। और इसी कारण से हिंदू धर्म में सूर्य की विशेष पूजा उपासना का महत्व है। दीपावली के ठीक छठे दिन पड.ने के कारण इस पूजा को छठ पूजा कहा जाता है। लोक आस्था का यह महापर्व लगातार चार दिनों तक चलने वाला एक कठिन पर्व है। जिसमें महिलाएं, पुरूष और बच्चे सभी सम्मिलित रूप से भाग लेते हैं। व्रतीे व्रत रख कर सूर्य देव से अपनी मनोकामना पूर्ति हेतु गुहार लगाते हैं। आस्था के इस महापर्व पर कई मान्यताएं एंव कहानियां और लोक कथाएं भी हैं। इनमें से महाभारत और रामायण काल से जुड.ी घटनाएं भी हैं। रामायण काल में जब श्रीराम लंका विजय से अयोध्या लौटे थे तब उन्होंने अपने राज्य में रामराज्य की स्थापना के लिए सीता जी के साथ छठ के पावन व्रत को किया था। और भगवान सूर्य का आर्शीवाद प्राप्त किया था। उसके बाद से यह व्रत लोकमंगल और कल्याण के लिए लोगों द्वारा किया जाने लगा। महाभारत काल में कुंती ने विवाह से पूर्व भगवान सूर्य की आराधना की थी और कर्ण जैसा प्रतापी और वीर पुत्र की प्राप्ति की थी। इसलिए बहुत सारे लोग कर्ण की तरह पुत्र प्राप्ति के लिए भी यह व्रत करने लगे। भारतीय उत्सवों और पर्वों से कई कहानियां, गीत और कलाएं जुड.ी हैं। दक्षिण में ओणम और पोंगल पर रंगोली बनाई जाती है और महाराष्ट´ में विभिन्न अवसरों पर कुछ खास नृत्य किए जाते हैं। अन्य राज्यों में भी कई लोक कलाएं त्योहारों के साथ जुड.े हुए हैं। ठीक इसी तरह बिहार के इस प्रमुख छठ महापर्व में भी कई लोक गीतों को गाया जाता है। छठ पूजा के लिए प्रसाद बनाने, खरना, अर्घ्य देते समय और घाट से घर लौटते वक्त अनेक मधुर और भक्ति भावना से ओत-प्रोत लोकगीत गाये जाते हैं। छठ पूजा पर गाए जाने वाले लोकगीत बहुत कुछ कहते हैं। इन गीतों में सूर्य ,चंद्रमा, तारा,नदी पर्वत, पेड. पौधों से मनुष्यों के वार्तालाप का वर्णन है। सूर्य प्रतीक है समदर्शिता, दिव्यता और लोकमंगल का। वह अपनी रोशनी फैलाने में भेदभाव नहीं करता। उसके लिए धनी, गरीब सब बराबर हैं। परंतु उसकी दया दृष्टि अभावग्रस्त और सभी दृष्टि से पिछड.े लोगों पर अधिक रहती है। और उन गीतों के बोल और भाव इतने मधुर होते हैं कि पूरा महौल भक्ति के रंग से सराबोर हो जाता है। छठ पूजा के कुछ गीतों और उनके अर्थ को सुन कर आत्मा को साज और दिल को सुकून मिलता है जैसे गीत है-
केरवा जे फरेला घवद से, ओह पर सुग्गा मेड.राय
कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए।
इस गीत में एक ऐसे तोते का जिक्र है जो केले के एक गुच्छे के पास मंडरा रहा है और वो फल को खा कर जुठा करने ही वाला होता है कि उसे गीत के बोल के जरिए डराया जाता है कि तुम इस फल को जुठा मत करो, नहीं तो तुम्हारी शिकायत भगवान सूर्य से कर दी जायेगी।
पटना के घाट पर नारियर, नारियर किनबे जरूर
हाजीपूर से केरवा मंगाई के अरग देबे जरूर
पांच पुत्र, अन्न, धन, लछमी, लछमी मांगबे जरूर
इस गीत में छठ माता से धन, संतान और सुहाग से जुड.े वरदान मांगने की बात कही गई है, जिसमें पूजा करने वाले कह रहे हैं कि वे पूरे विधि विधान से पूजा जरूर करेंगे और ऐसा करके वे छठ माता से इन चीजों का वरदान मांग रहे हैं। पिहर धोती पहिरन भेल उहमांइस प्रकार इस गीत में सभी जातियों के प्रतिनिधि के साथ सूर्य का वार्तालाप होता है, क्योंकि छठ पूजा में सभी जातियों की जरूरत पडती है। सबका व्यवसाय बढ. जाता है। सूर्य को अर्ध्य देने वाले सूप में बहुत सारे सामान होते हैं जो कि सभी जाति के लोगों से लिए जाते हैं। यह पूजा जाति के नाम पर होने वाले भेदभाव को हटा कर भाईचारे का संदेश देता है। एक स्त्री के लिए बांझ होना एक सामाजिक दंश है जिसके कारण वह समाज में प्रताडि.त होती है। एक गीत में एक बांझ महिला विलाप करते हुए सूर्यदेव से संतान मांगते हुए अपने जीवन की कठिनाईयों का वर्णन करती है। सूर्य देव उसपर प्रसन्न होकर उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है।
दर्शन दिनहा अपान हे दीनानाथ, भेटलीहना हमार, ससुरा में मांगीला अन्न,
धन सोनवा, नहिरा सहोदर जेठ भाई, सभवा बैठन के बेटा मांगीला,
गोड.वा दबन के पतोह हे दीनानाथ, रूनकी झुनकी बेटी मांगी ला,
पढ.ला पंडि.तवा दामाद हे। इस गीत में महिला की सेवा से सूर्यदेव प्रसन्न होकर उससे वर मांगने को कहते हैं वह व्रती महिला अपने ससुराल के लिए मांगती है कि वह हमेशा हरा भरा रहे। अपने मायके के लिए एक सदोदर भाई मांगती है ताकि वह उसे एक नजर देखे। इसके उपरांत सभा में बैठने के लिए बेटा और घर की शोभा के लिए एक बहू मांगती हैं। उसके बाद घर में चहल-पहल के लिए एक चंचल बेटी और उसके लिए एक योग्य वर का वरदान मांगती है। इस गीत के जरिए औरतों की त्याग के बारे बताया गया है कि एक औरत ही सब के लिए सोचती है। अर्थात वंचित पीडि.त औरतें भी अपने परिवार व्यवस्था को संतुलित करना चाहती है। समाज बेटी विरोधी रहा है, लेकिन इस गीत में महिला सूर्यदेव से बेटी मांगती है। इसलिए सूर्यदेव कहते हैं कि यह महिला सभी गुणों से परिपूर्ण है। परिवार चलाने के लिए संतुलित स्थिति चाहती है। ये लोकगीत और लोक परंपराएं समाज के मन के बोल हैं। इनमें महिलाओं की भूमिका अधिक है। लोकपरंपराओं को निभाने में भी और इनकी आत्मा के रूप में भी। छठ पूजा के लोेक गीतों की महिला पुरूष से हीन नहीं है। बल्कि यहां पुरूष ही नगण्य है। छठ पूजा में छुआछूत और धनी गरीब का भेदभाव नहीं रहता है। इस पूजा में सभी याचक हैं। चाहे राजा हो या रंक सभी बराबर हैं। श्रद्धाभक्ति से किया गया यह व्रत लोकमंगल सिखाता है और लोक हित में किए गए कार्यों को सामाजिक प्रतिष्ठा दिलाता है। छठ पूजा के लोक गीतों में वर्णित सूरज शास्त्रीय सूक्तियों, उक्तियों और श्लोकों में वर्णित ज्योतिपूंज सूर्य से कम नहीं है। और लोक मन पर यह सूरज सदियों से स्थापित है और हमेशा रहेगा।
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