दुनिया में हिंदू धर्म और भारत की प्रतिष्ठा स्थापित करने वाले स्वामी विवेकानंद एक युगप्रर्वतक और अध्यात्मिक हस्ती थे। अपनी मेधा और तर्कशीलता के कारण स्वामीजी ने युवाओं के दिलों में अमिट छाप छोड.ी। युवा स्वामी जी से प्रेरणा लेकर उन्हें अपने जीवन का आर्दश मानते थे। वहीं स्वामी जी युवाओं को देश का भविष्य मान कर उन्हें हमेशा आगे बढ. कर अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह करने के लिए प्रेरित करते थे। स्वामी जी युवाओं की शक्ति को एक नई दिशा दे कर उन्हें अपनी र्क्जा को अच्छे कामों में लगाने की प्रेरणा देते थे। कहने का तात्पर्य यह है कि वे युवाओं को हमेशा अच्छे कामों में अपना योगदान देने का आग्रह करते थे। उनका मानना था कि अगर भलाई के कामों में इजाफा करना है तो युवाओं की र्क्जा उनकी नई सोच और विचारों का सम्मान कर उन्हें प्रोत्साहित करना होगा। ताकि देश का विकास हो और युवाओं को भी एक दिशा मिल सके। स्वामी जी का कहना था कि देश जिस अतीत से भविष्य की ओर अग्रसर हो रहा है, उस अतीत को अस्वीकार करना निश्चय ही निर्बुद्धिता का घोतक है। अतीत की नींव पर ही राष्ट´ का निर्माण करना होगा। युवा वर्ग में यदि अपने विगत इतिहास के प्रति कोई चेतना न हो, तो उनकी दशा प्रवाह में पड.े एक लंगरहीन नाव के समान होगी। एक ऐसी नाव जो कभी अपने लक्ष्य तक नहीं पहुचती। और इस बात को सदैव स्मरण रखना होगा। स्वामी जी अपनी बातों से हमेशा ही युवाओं को आगे बढ.ने की प्रेरणा देते थे, उन्हें आगे बढ. कर अपनी जिम्मेदारियों के निवार्ह करने की सलाह देते थे। इसलिए स्वामी विवेकानंद के जन्म दिवस 12 जनवरी को युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। स्वामी जी सभी धर्मों से क्पर मानव समाज की सेवा को बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान देते थे। उन्होंने पूरे विश्व में मानवता का संदेश फैला कर मानव सेवा को सर्वोपरि बताया। वे समाज सेवक के साथ-साथ समाज सुधारक भी थे। उन्होंने स्त्री शिक्षा, स्त्री पुनस्द्धार तथा आर्थिक प्रगति का महत्व बताते हुए लोगों को जागरूक किया। साथ ही साथ रूढिवादिता, अंधविश्वास, निर्धनता और अशिक्षा की उन्होंने कटु आलोचना भी की। स्वामी विवेकानंद ने कहा कि हिंदू धर्म का असली संदेश लोगों को अलग-अलग धर्म संप्रदायों के खांचों में बांटना नहीं, बल्कि पूरी मानवता को एक सूत्र में पिरोना है। ईश्वर ने भगवान कृष्ण के रूप में अवतार ले कर हिंदूओं को बताया कि मोतियों की माला को पिरोने वाले धागे की तरह मैं हर धर्म में समाया हुआ हूं। स्वामीजी वेदांत के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरू थे। इसलिए उन्होंने अमेरिका के शिकागो में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। और भारत का आध्यात्मिकता से परिपूर्ण वेदांत दर्शन अमेरिका और यूरोप के हर एक देश में पहुंचाया।
स्वामीजी ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की जो वर्तमान समय में भी अपना काम कर रहा है। कलकत्ता के एक कुलीन बंगाली कायस्थ परिवार में जन्में विवेकानंद बचपन से ही आघ्यात्मिकता की ओर झुके हुए थे। वे अपने गुरू रामकृष्ण देव से काफी प्रभावित थे जिनसे उन्होंने सीखा कि सारे जीवों में स्वयं परमात्मा का ही अस्तित्व है। इसलिए मानव जाति जो दूसरे की मदद करता है, जरूरतमंदों की सेवा करता है। वो परमात्मा की सेवा करता है और ईश्वर उनसे प्रसन्न होते हैं। स्वामीजी सदा खुद को गरीबों का सेवक मानते थे। भारत के गौरव को देश दुनिया तक पहुंचाने के लिए वह सदा प्रयत्नशील रहते थे। बचपन से ही विवेकानंद बहुत ही कुशाग्र बुद्धि के थे। इनकी माता भूवनेश्वरी देवी एक धार्मिक महिला थीं। और उन्हें धार्मिक कथाएं सुनने का शौक था, इसलिए कथा वाचक इनके घर में आया करते थे। और उन कथाओं को सुन कर स्वामीजी में धार्मिक भावना और प्रबल हो गई। और वे इसका प्रचार- प्रसार कर लोगों को लाभंवित करने लगे। स्वामीजी दर्शन, धर्म, इतिहास, सामाजिक विज्ञान, कला और साहित्य सहित विषयों के एक उत्साही पाठक थे। इनकी वेद, उपनिषद, भगवद गीता, रामायण, महाभारत और पुराणों के अतिरिक्त अनेक हिंदू शास्त्रों में गहन रूचि थी। स्वामीजी ने भारतीय शास्त्रीय संगीत का प्रशिक्षण भी लिया था। और अपने बचपन में वे नियमित रूप से शारीरिक व्यायाम व खेलों में भाग भी लेते थे।स्वामीजी बचपन से ही ती्रव बुद्धि और जिज्ञासू प्रवृति के थे। परमात्मा को पाने की प्रबल इच्छा थी स्वामीजी के अंदर, और अपनी इसी इच्छा पूर्ति के लिए वे ब्रöा समाज में गये। लेकिन वहां भी उन्हें आत्मसंतुष्टि नहीं मिली। उसके बाद वे रामकृष्ण परमहंस के पास तर्क वितर्क के लिए गए, लेकिन उनके विचारों से इतने प्रभावित हुए कि स्वामीजी ने उन्हें अपना गुरू मान लिया। और परमहंस की कृपा से ही इन्हें आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हुआ। स्वाामीजी का मानना था कि ज्ञान केवल शिक्षा के माध्यम से ही प्राप्त किया जा सकता है, और आर्थिक स्थिति के आधार पर बाधाओं तथा भेदभाव को दूर करने के लिए शिक्षा बहुत ही आवश्यक है। किसी भी राष्ट´ की प्रगति और विकास वहां के नागरिकों की शिक्षा के अधिकार की उपलब्धता पर निर्भर करता है। स्वामीजी ने सफल जीवन जीने के तीन सिद्धांतों का जिक्र करते हुए कहा कि निर्भय बनो, आत्मविश्वासी बनो तथा अपने शब्दों पर विश्वास करें। दुनिया में हिंदू धर्म और भारत की प्रतिष्ठा स्थापित करने वाले स्वामी विवेकानंद एक आध्यात्मिक हस्ती होने के बावजूद अल्पयायु में ही लोगों को जीवन जीने का सही मूल्य समझा गए।


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