सम्मान सिर्फ एक दिन का !

अंतरराष्ट´ीय महिला दिवस अर्थात सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्र में महिलाओं ने जो उपलब्धियां हासिल की हैं, उनका सम्मान करने के लिए मनाया जाने वाला दिन। यह दिवस दशकों से नारी को सृजन की शक्ति मानकर पूरे विश्व में 8 मार्च को महिलाओं के अधिकार और सम्मान के लिए अंतरराष्ट´ीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता रहा है। लेकिन अब यह एक रसमआदायिगी का त्योहार बन कर रह गया है। क्योंकि साल के 365 दिनों में सिर्फ एक दिन महिला सशक्तिकरण के नाम कर देने से ही साल के 364 दिन की वो प्रताड.ना कम या खत्म नहीं की जा सकती है। जिसका दंश हर महिला चाहे वो शिक्षित हो या अशिक्षित झेलती चली रही है। सिर्फ एक दिन महिलाओं के प्रति प्रेम, प्रशंसा, सम्मान और अपनापन व्यक्त कर समाज में बदलाव की उम्मीद नहीं की जा सकती है। शुरूआती दौर में अंतरराष्ट´ीय महिला दिवस मनाने के पीछे नारी सामथ्र्य को सम्मानित करना और प्रेरित करने वाला और जन जागरूकता फैलाने वाला था। लेकिन वक्त के साथ महिला दिवस के मायने भी बदल रहे हैं। सदियों से नारीयों ने भारी विरोध  और विपरीत परिस्थितियों का सामना करते हुए केवल अपनी गरिमा की रक्षा की है बल्कि अपने परिवार, समाज और राष्ट´  को भी एक नई पहचान दी है। 

        विडंबना ये है कि आधी आबादी होने के बावजूद आज भी वे  हाशिए पर हैं। ये सच है कि वर्तमान परिवेश में महिलाएं हर क्षेत्र में आगे आने लगी हैं। आज की नारी अब जागृत और सक्रिय हो चुकी हैं और वे पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर काम कर देश, परिवार और समाज में अपनी भागीदारी निभा रही हैं। लेकिन घरेलु हिंसा, दहेज उत्पीड. और बलात्कार जैसी घटनाएं उन्हें स्त्री होने का अहसास करवा ही देती हैं। आज भी पुरूषों की तुलना में महिलाओं को कम मजदूरी मिलती है। आखिर महिलाओं की क्षमता पर सवाल क्यों खड. किए जाते है यह बड. सवाल है। गांव से लेकर शहरों तक में उनका शोषण होता है। ऐसे में सशक्तिकरण की बातें करना बेमानी ही लगती है। महिलाओं के लिए सबसे ज्यादा प्रयुक्त होने वाला शब्द सशक्तिकरण ही है। सबसे पहले तो महिलाओं को स्वयं को पहचान कर अपने अंदर की शक्ति को पहचानना होगा। क्योंकि सशक्तिकरण अंदर की प्रेरणा से आता है। जब तक आप अंदर से मजबूत नहीं होंगे तब तक आप बाहरी दुनिया से मुकाबला नहीं कर पायेंगे। सकारात्मक दृष्टिकोण के जरिए ही आप अपनी समस्याओं का मुकाबला कर पायेंगे। कहा जा सकता है कि सशक्तिकरण एक विचार है, जिसे धरातल पर केवल दृढ. निश्चय से ही उतारा जा सकता है।

                     स्वामी विवेकानंद ने भी कहा है- नारी जब अपने क्पर थोपी हुई बेडि.यों एवं कडि.यों को तोड.ने लगेगी तो विश्व की कोई शक्ति उसे नहीं रोक पायेगी। अर्थात नारी को अपने अंदर की शक्ति को पहचान कर पूरे विश्वास के साथ अपने पर हो रहे अन्याय को रोकना होगा। सशक्तिकरण एक विचार है, जिसे धरातल पर केवल दृढ. निश्चय से ही उतारा जा सकता है। और यह सच है कि इस सदी के एक दशक में नारी सशक्त हो रही है, समाज उससे परिचित भी हो रहा है, लेकिन मूढ. मान्यताएं उसके विकास में बाधक बनती हैं। इसके बावजूद महिलाओं ने अपने जीवन के कठिन अवरोधों को पार कर विभिन्न क्षेत्रों में उन्नति के शिखरों को छुआ है। और अपने वाजूद को एक आयाम दे कर दुनिया में अपने होने का अहसास करवाया है। वर्तमान समय में हमारे समाज की बेटियों को सम्मान दे कर उनकी प्रतिभा को पहचान दिलाना बहुत ही जरूरी है। ताकि वे आत्मनिर्भर बन सके और घरेलु कामों के अलावा अन्य चुनौती भरे क्षेत्रों में भी पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर काम कर अपनी क्षमता साबित कर सके। और यह तभी हो सकेेगा जब महिलाओं को उनका सही सम्मान मिलेगा। मानसिक और शारीरिक रूप से महिलाओं को जब अधिकार प्राप्त होगा तभी वे समाज में अपनी भागेदारी सही तरीके से निभा पायेेंगी। आज महिलाओं को दया दृष्टि नहीं बल्कि आत्मविश्वास और एक मौके की जरूरत है। आज के संदर्भ में यह कहा जा सकता है कि महिलाओं के उत्थान की राह अभी लंबी है और इस सफर के लिए उन्हें एक लंबा रास्ता तय करना होगा।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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Milan Tomic

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