लॉकडाउन और बच्चों का अकेलापन लॉकडाउन स्टेटस

lockdown status for children

कोरोना ने हम सभी की जिंदगी को बदल कर रख दिया है। 2019 में चायना से आई इस बीमारी ने लोगों की नार्मल लाइफ को अस्त-व्यस्त कर दिया है। 2020 में कहर बरपाने के बाद 2021 में इस बीमारी ने और भी भयावह रूप ले लिया है। लोग त्राहिमाम कर रहे हैं उनकी सांसे जिंदगी का साथ छोड. रही है। और लोग बेबस होकर अपने अपनों का साथ छूटते हुए देख रहे हैं। रोजी-रोटी तो दूर हम सब बहार खुली हवा में निकल कर सांस भी नहीं ले पा रहे हैं। और ये सब कोरोना जैसी जानलेवा बीमारी के कारण ही हो रहा है। जब से कोरोना रिर्टन हुआ है, लोग और भी ज्यादा भयभीत हैं। क्या बड. क्या बच्चे सभी अपनी नार्मल लाइफ की ओर लौटने के लिए व्याकुल हैं। बड. तो फिर भी अपने आप को बिजी रख लेते हैं। लेकिन सबसे ज्यादा परेशानी बच्चों को हो रही है। लगभग साल भर से ज्यादा समय से उनके स्कूल बंद हैं। वे बाहर खेलने जा नहीं सकते और अपने दोस्तों से भी मिल नहीं सकते हैं। ऐसे में वे घर और बाहर के डरावने वातावरण को देख कर तनाव में चले जा रहे हैं। बच्चे कोरोना काल में घर पर रह कर चिड.चिड. हो गए हैं। और ये लक्षण 6 से 12 साल के बच्चों में ज्यादा देखने को मिल रहा है। कुछ बच्चों में तो डिप्रेशन जैसे लक्षण भी दिखाई दे रहे हैं। उनके व्यवहार में भी बदलाव दिख रहा है। और इसका कारण स्कूल नहीं जाना, अपने दोस्तों के साथ खेल-कूद नहीं पाना और उनसे मिल नहीं पाना है। वर्तमान स्थिति को देखते हुए तो कहा जा सकता है कि ये बच्चे कब स्कूल जायेंगे ये पता नहीं है। ऐसे में बच्चों के लिए टीवी, लैपटॉप और मोबाईल ही अपने को व्यस्त रखने का विकल्प है। ऑनलाइन पढ.ाई के कारण घंटों बच्चे मोबाईल और लैपटॉप पर बैठे रहते हैं। इसके कारण तेजी से उनका वजन बढ. रहा है और आंखों को भी नुकसान पहुंच रहा है। इन सभी कारणों से भी बच्चे तनावग्रस्त हो रहे हैं। अकेलापन और बुरी खबरों का तनाव भी बच्चों को परेशान कर रहा है।कोरोना के कारण जो लाकॅडाउन लगी हुई है ऐसे में बच्चों में क्या -क्या परेशानियां रही हैं। इन सारी बातों की जानकारी देते हुए मनोचिकित्सक उषा जी बतलाती हैं कि लाकॅडाउन में बच्चों में चिड.चिड.ापन, ज्यादा गुस्सा, दुखी चेहरा इत्यादि देखने को मिल रहे हैं। बच्चों में अचानक कम या बहुत ज्यादा नींद की शिकायतें  और मायूसी देखने को मिल रही हैं। इन सब के अलावा एकाग्रता की कमी और थकावट की शिकायतें भी देखने को मिल रही हैं।


       उषा जी बताती हैं कि लगभग 6 साल से ज्यादा बड. बच्चों में डिप्रेशन संभव है। लेकिन सामान्य तनाव और डिप्रेशन दोंनों बिल्कुल अलग-अलग होते हैं। सिर्फ चुपचाप, उदास और खोये खोये रहना डिप्रेशन नहीं है। सबकुछ धीरे-धीरे बिना किसी रूचि के करना और अपनी दुनिया में खोये रहना ये सारी चीजें डिप्रेशन के लक्षण हैं। अचानक गुस्सा और गुस्से से चीजों को तोड.ना, फेंकना ये चीजें डिप्रेशन कही जा सकती है, लेकिन ये डिप्रेशन ही हैं इस बात का प्रमाण नहीं है। एक अनुमान के मुताबिक देश में लगभग 47 करोड. से ज्यादा बच्चे हैं। ऐसे में उनकी और उन के घरवालों की समस्याओं को गंभीरता से समझा जा सकता है। भारत में बच्चों की आबादी दुनिया में सबसे ज्यादा है।एकल परिवार होने की वजह से बड.ों का साथ रहने का अवसर नहीं मिलता और वे अकेलेपन का शिकार हो जाते हैं। ऐसे में उनका दायरा विस्तृत नहीं हो पाता और वे हर छोटी बड. बात के लिए अपने माता-पिता पर निर्भर रहते हैं। माता-पिता अगर कामकाजी हैं तो ऐसे में बच्चों को और भी दिक्कत हो जाती है। इन स्थितियों से निपटने के लिए जरूरी है कि बच्चों को इग्नोर ना करें। उनसे बात करें उन्हें हर परिस्थिती से निपटने का गुण सिखायें। बच्चों को पुराने वाले शेडयूल के अनुसार चलने दें, नया शेड्रयूल और काम तय ना करें। बच्चों के दोस्तों की जानकारी रखें। उनसे बातचीत करते हुए आशावादी रहें। उनकी दिनचर्या में फिजिकल एक्टिविटी को शामिल करें। उनके साथ खेलें उन्हें योगा करने के लिए प्रोत्साहित करें। और अगर डिप्रेशन का शक हो तो फिर डॉक्टर से संपर्क करें। इन बातों का ध्यान रख कर आप अपने बच्चों को लॉकडाउन के दौरान कुछ नया और अलग सीखने को प्रेरित कर सकते हैं। और उन्हें अकेलेपन से बचा सकते हैं।

 

 

 

 

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Milan Tomic

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