आलौकिक प्रेम,तप, समर्पण से परिपूर्ण शिव -शक्ति मिलन


आलौकिक प्रेम,तप, समर्पण से परिपूर्ण शिव -शक्ति मिलन

 शिव यानी वह परम तत्व जिससे सब कुछ है पर वह स्वयं में कुछ भी नहीं, यह निराकार है, संसार में ऊर्जा का स्रोत है, जो कुछ भी जड. और चेतन हमें दृष्टिगोचर होता है वह इसी शिव की अभिव्यक्ति है। शिव शब्द का अर्थ है वह जो नहीं है यानी शून्य। ऐसी मान्यता है कि सब कुछ यानी पूरा ब्रह्माण्ड स्वयं शून्य से निकला है और वह फिर लौट कर शून्य में चला जाता है। यही जीवन का सत्य है , यही शिव है। और यही सृष्टि का स्रोत है। शिव ना प्रकाश है और ना ही अंधकार वह शून्य भी है और पदार्थ भी, वह समस्त ब्रह्माण्ड हैं। वह शक्ति का सा्रेत हैं, शक्ति का हिस्सा और खुद ही शक्ति। शिव नाम में पूरी सृष्टि समाहित है और जब शिव के साथ शक्ति का मिलन हो जाए तो वह प्रेम का सर्मपण है। फाल्गुन मास की चतुर्थी तिथि को मनाई जाने वाली महाशिवरात्रि के दिन ही भगवान शिव और माता पार्वती की शादी हुई थी। शिव पार्वती का विवाह कोई साधारण विवाह नहीं, बल्कि प्रेम, तपस्या और त्याग समर्पण की कहानी और परीक्षा है। जितने उतार चढाव इस प्रेम कहानी मे देखने को मिलते हैं उतने किसी भी कहानी में नहीं मिलते। पार्वती जी पिछले जन्म में शिवजी की पत्नी थीं, तब उनका नाम सती था और वे दक्ष प्रजापति की बेटी थीं। पार्वती जी को भगवान शिव से प्रेम हो गया और उन्होंने ठान लिया कि विवाह करेंगी तो सिर्फ और सिर्फ भगवान शिव के साथ। लेकिन भगवान शिव को पाना इतना आसान नहीं था। पार्वती जी ने ऐसी तपस्या की कि तीनों लोक थर्रा गए। सबने बहुत समझाया। भगवान शिव ने भी पार्वती की बहुत परीक्षा ली, लेकिन पार्वती जी के प्रेम और तप के आगे आखिरकार भगवान भी हार गए। और इस तरह शिव और पार्वती का विवाह संपन्न हुआ। माता पार्वती, भगवान शिव की केवल अर्धांगिनी ही नहीं बल्कि उनकी शिष्या भी रहीं। वे नित्य ही अपनी जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए महादेव से अलग-अलग प्रश्न पूछतीं और उनपर चर्चा करती थीे। एक दिन उन्होंने महादेव से पूछा-प्रेम क्या है, प्रेम का रहस्य क्या है, इसका वास्तविक स्वरूप क्या है, इसका भाविष्य क्या है? 

           

     माता पार्वती द्वारा प्रेम से जुड़े इन तमाम सवालों को सुनने के बाद महादेव ने कहा, प्रेम क्या है से तुम पूछ रही हो पार्वती? प्रेम का रहस्य क्या है? प्रेम का स्वरूप क्या है? सत्य तो ये है कि प्रेम के अनेकों रूपों को तुमने उजागर किए हैं। तुमसे ही प्रेम की अनेक अनुभूतियां हुई । तुम्हारे प्रश्न में ही तुम्हारा उत्तर निहित है। भगवान शिव की बातें सुनकर माता पार्वती ने कहा, क्या इन विभिन्न अनुभूतियों की अभिव्यक्ति संभव है। तब भगवान शिव ने माता पार्वती को कहा कि सती के रूप मे जब तुम अपना प्राण त्यागकर दूर चली गई, मेरा जीवन, मेरा संसार, मेरा दायित्व, सब निरर्थक और निराधार हो गया। मेरे नेत्रों से आसुंओं की धाराएं बहने लगी थीं, यही प्रेम है। महादेव ने कहा अपने से दूर कर तुमने मुझे मुझ से भी दूर कर दिया था पार्वती। यही तो प्रेम है। तुम्हारे अभाव में मेरे अधूरेपन की अति से इस सृष्टि का अपूर्ण हो जाना, यही प्रेम है। तुम्हारे और मेरे मिलन कराने हेतु इस समस्त ब्रह्माण्ड का हर संभव प्रयास और हर संभव षड्रयंत्र की रचना इसका कारण हमारा आसीम प्रेम ही तो है। तुम्हारा पार्वती के रूप में पुनः जन्म लेकर मेरे एकांकीपन और मुझे मेरे वैराग्य से बाहर निकलने पर विवश करना और मेरा विवश हो जाना यह प्रेम ही तो है। भालेनाथ ने आगे कहा-जब तुम मनोरंजन हेतु चौसर में मुझे पराजित करती हो तो भी विजय मेरी ही होती है क्योंकि उस समय तुम्हारे मुख पर आई प्रसन्नता मुझे मेरे दायित्व की पूर्णता का आभास कराती है। तुम्हें सुखी देख कर मुझे जो सुख का आभास होता है, यही तो प्रेम है पार्वती। और इस तरह अपने शाश्वत प्रेम को परिभाषित कर गए। शिव संपूर्ण ब्रह्मांड में शक्ति के स्रोत्र हैं वह शक्ति का हिस्सा हैं और खुद ही शक्ति हैं। माता पार्वती और महादेव के असीम से पूरा संसार वाकिफ है। उनके आगे प्रेम की पराकाष्ठा भी छोटी महसूस होने लगती है। और यही वजह है कि महादेव ने माता पार्वती को अपने आधे अंग पर स्थान दिया और स्वयं अर्धनारीश्वर कहलाए। और अलौकिक प्रेम को परिभाषित कर समर्पण का ज्ञान दिए।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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Milan Tomic

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