उलझी मानसिकता का प्रचलित शब्द, अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस

उलझी मानसिकता का प्रचलित शब्द, अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस हो और महिला सशक्तिकरण की बातें ना हो ऐसा हो ही नहीं सकता है। महिला सशक्तिकरण एक विवेकपूर्ण प्रक्रिया है। अति महत्वकांक्षा को ही सब ने सशक्तिकरण मान लिया गया है। 8 मार्च को प्रत्येक वर्ष महिला दिवस आता है जिसमें सारी महिलाओं को खास होने का अहसास दिलाया जाता है। सशक्तिकरण की बातें तो की जाती हैं, लेकिन सही मायने में सशक्तिकरण तभी होगा। जब महिलाएं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनेंगी। और उनमें कुछ करने का जज्बा भी जागेगा। लेकिन यहां भी वे दोहरी नीति का शिकार हो जाती हैं बड़ी_बड़ी बातें सशक्तिकरण के नाम पर की जाती हैं। लेकिन जब एक ही काम के लिए पुरूषों और महिलाओं को अलग-अलग वेतन दिया जाता है तो फिर कैसा सम्मान और कैसी आत्मनिर्भरता? यह एक बड़ा सवाल है उनके लिए जो सशक्तिकरण की दुहाई दे कर महिलाओं को एक दिन का सम्मान देते हैं। मनु स्मृति में लिखा है कि ’यस्य पूज्यन्ते र्नायस्तु तत्र रमन्ते देवता। अर्थात जहां स्त्रियों का सम्मान होता है वहां देवता रमण करते हैं। वैसे तो पूरे विश्व में नारियों को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। 

भारत वर्ष में तो नारी की पूजा की जाती है उन्हें सम्मान भी दिया जाता है। लेकिन वे दो भागों में विभक्त हैं। एक तरफ दबी, कुचली, अशिक्षित और पिछड़ी महिलाएं हैं। तो दूसरी ओर प्रगति पथ पर अग्रसर उंचाईयों को छूने वाली महिलाएं हैं। एक ओर मनुस्मृति में महिलाओं के बारे में ये लिखा है । वहीं दूसरी ओर याज्ञवल्लयम स्मृति में लिखा है रक्ष्यते कन्या पिता, पितां पतिः पुलास्यतु वार्धके अर्थात बचपन में स्त्री की रक्षा पिता करेगा, युवावस्था में पति और वृद्धावस्था में पुत्र। इस तरह वे सदियों से पराश्रित बनी रहेंगी। एक तरफ देवी की दर्जा दे कर नारी पूजनीय है वहीं दूसरी ओर पराश्रित। यही उलझी मानसिकता का एक प्रचलित शब्द है सशक्तिकरण। यह विडंबना ही तो है कि नारी में इतनी शक्ति होने के बावजूद भी सशक्तिकरण की अत्यंत आवश्यकता महसूस हो रही है। आधुनिक समय में महिला सशक्तिकरण एक आवश्यक विषय है। इस पर हमें अमल करने की जरूरत है।  अब सवाल यह है कि सशक्तिकरण है क्या? महिलाओं द्वारा खुद के जीवन का निर्णय खुद की आजादी को ही हम महिला सशक्तिकरण कहते हैं। महिलाओं के सामाजिक स्तर को ऊंचा करने के लिए उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त होना होगा। तभी सशक्तिकरण शब्द महिलाओं के लिए पूरक कहलायेगा। महिलाओं को आधी आबादी का तमगा तो दे दिया गया है, लेकिन वहीं अगर इनको मिले अधिकारों की बात करें तो वे आज भी आधे अधूरे ही हैं। हमारा देश काफी तेजी और उत्साह के साथ आगे बढ. रहा है , लेकिन लैंगिक असमानता को दूर कर महिलाओं और पुरूषों के लिए समान शिक्षा, तरक्की और भुगतान सुनिश्चित करना होगा। तभी महिलाओं को समान अधिकार मिल सकेगा। आज के संदर्भ में अगर बात करें तो ऐसा नहीं है कि महिलाओं को कोई अधिकार प्राप्त नहीं है। आज की महिलाओं को कुछ अधिकार मिलें हैं। जो उन्हें इस समाज में आजादी का जीवन प्रदान कर रही है। पर आज इसमें कुछ सुधार की जरूरत है। वैसे तो हर दिन महिलाओं के सम्मान का दिन होना चाहिए, लेकिन यूनाइटेड नेशन से मंजुरी के बाद हर साल 8 मार्च को महिलाओं का सम्मान करने के लिए अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। हर साल एक थीम पर अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। इस साल की थीम वीमेंस ऑफ टूमोरो रखी गई है। जिसका अर्थ है आने वाला कल महिलाओं का होगा। यह थीम कितनी सार्थक होगी ये आने वाला वक्त ही बतायेगा।

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Milan Tomic

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