प्रखर वक्ता, लेखिका और समाजसेवी रमणिका गुप्ता आदिवासी चिंतक और राजनीति से जुड़ी हुई विभिन्न मुद्रदों को उठानेे वाली एक साहित्यकार हैं। उन्होंने स्त्री विमर्श पर उम्दा काम किया और विभिन्न मुद्रदों को उठाया। रमणिका गुप्ता स्त्री इतिहास की एक महत्वपूर्ण दस्तावेज हैं। वे आदिवासी और स्त्रीवादी मुद्रदों पर सक्रिय रही हैं। युद्धरत आम आदमी की संपादक रमणिका गुप्ता कथाकार, विचारक और कवयित्री भी थीं। इसके अलावा इन्होंने आदिवासी साहित्य और संस्कृति तथा स्त्री-साहित्य की कई किताबें संपादित की। रमणिका जी एक ऐसी साहित्यकार हैं, जिन्होंने पूरी ईमानदारी के साथ जो जिया वही लिखा। और यही बात उन्हें अन्य साहित्यकारों से अलग करती है। अपनी पूरी जिंदगी को बिना कुछ छिपाए अपने पाठकों के समक्ष रखने की हिम्मत हर किसी में नहीं होती है। लेकिन रमणिका जी ने अपनी व्यक्तिगत और रचनागत दोंनो ही जीवन में ईमानदारी का परिचय दिया है। रमणिका जी का सार्वजनिक जीवन बहुत ही लंबा रहा है। उन्होंने न सिर्फ वंचितों, शोषितों की आवाज को अपनी रचनाओं में स्थान दिया, बल्कि अपने जीवन के आपबीती हादसों को भी परत दर परत पाठकों के समक्ष रखा।
रमणिका जी एक मजबूत एक्टिविस्ट और नेता भी थीं। इन्होंने गरीबों और वंचितों के हक में आवाज भी उठाई। और उनके लिए लगातार संघर्ष भी किया। झारखंड के कोयला खादान, मजदूरों और आदिवासियों के हकों के लिए किए गए उनके काम ने उन्हें उनका हक दिलवाया। रमणिका जी मांडू से विधायक भी थीं। जिसके कारण गरीबों वंचितों की आवाज संसद तक पहुंचा कर उन्हें उनका हक दिलवाया। यही नहीं वामपंथी मजदूर आंदोलन संगठित करने से लेकर प्रगतिशील सांस्कृतिक आंदोलन में भी इन्होंने सांस्कृतिक रचनाकार और संगठन के रूप में अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई। रमणिका जी ने आदिवासी-दलित समुदाय खास कर स्त्री विमर्श के स्वर को मुखरता के साथ अभिव्यक्त किया। साथ ही साथ नारी मुक्ति और झारखंड समेत देश के आदिवासी साहित्यक स्वर को भी मुख्यधारा में लाने का प्रयास किया और इसमें वे सफल भी रहीं। रमणिका जी ने हर विघा पर अपनी लेखनी चलाई। उनकी कविताओं में, दरअसल शुरू से लेकर अंत तक मुक्ति की एक जिद है। यह मुक्ति तमाम रूपों में उनकी रचनाओं में व्यक्त होती है। कहा जा सकता है कि रमणिका गुप्ता का सारा काव्य कर्म वंचितों की आवाज को असर्ट करने का एक बृहत आंदोलन है। इनमें महिलाएं, आदिवासी, दलित और वे तमाम वर्ग हैं जिनके अधिकारों के लिए वे आजीवन युद्वरत रहे। उनकी रचनाओं को पढ.ने से यह आभास होता है कि उनके सभी संघर्ष के मूल में उनकी व्यक्तिगत मुक्ति की अकांक्षा ही रही है। और इस बात को उन्होंने सहज स्वीकार भी किया है। उनके काव्य कर्मों को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है। एक वह जो उनके राजनीतिक जीवन से उपजा है और दूसरा वो जो उनके राजनीतिक संपर्कों से निकला है या उन्हें समर्पित है। राजनीतिक संपर्कों का अर्थ उनके अतंरंग संबंधों और हादासों से ही है। प्रेम कविताओं के मामले में रमणिका जी कोई प्रभावशाली लेखन के संकेत नहीं छोड.ती हैं, क्योंकि अधिकतर में रूहानी स्तर की पहुंच नहीं है। रमणिका जी को असली पहचान उनकी लिखी आत्मकथा हादसे और आपहुदरी जो दो भागों में प्रकाशित हुई है उनसे ही मिली। आपहुदरी एक जिद्रदी लड.की की आत्मकथा है। आपहुदरी पंजाबी भाषा का एक शब्द है जिसका अर्थ है स्वेच्छाचारी। और अपने मन की करने वाली रमणिका जी का पूरा व्यक्तित्व ही स्वेच्छाचारी रहा। इस आत्मकथा में उनके सुलझे और स्पष्ट विचारों की झलक मिलती है। इस आत्मकथा में अपनी कमजोरियों को अपनी ताकत बना लेनी की कहानी है और हां या ना कहने के चुनाव की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष की भी कहानी है। इस जीवन-कथा की स्त्री उत्पीडि.त है, लेकिन हर घटना में अनिवार्यत नहीं। स्त्री विमर्श पर उनके द्वारा किए गए कार्यों के कारण अनगिनत स्त्रियों को न्याय और जीवन जीने की मार्ग दर्शन मिला।
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