उपन्यास सम्राट प्रेमचंद हिन्दी साहित्य जगत में एक कालजयी, जनवादी तथा प्रगतिशील लेखक के रूप में जाने जाते हैं। आधुनिक हिंदी कहानी के पितामह कहे जाने वाले प्रेमचंद ने कहानी और उपन्यास की ऐसी परंपरा का विकास किया जिसने एक पूरी सदी के साहित्य का मार्गदर्शन किया। उनकी रचनाओं ने साहित्य को आम आदमी से जोड. कर पूरी पीढ.ी को भी गहराई से प्रभावित किया। आज पूरे विश्व में प्रेमचंद और उसकी रचनाओं का एक अलग ही स्थान है। अपनी लेखनी के माध्यम से प्रेमचंद ने शोषित, उपेक्षित और हाशिए पर रहने वाले लोगों के लिए आवाज उठाई। और उन्हें उनका हक दिलाया। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि प्रेमचंद ने जो जिया वही लिखा। बहुमुखी प्रतिभा के धनी प्रेमचंद ने छोटी उम्र में ही अपनी माता को खो दिया, वहीं कुछ सालों के बाद पिता का साया भी सर से उठ गया। इसके बाद प्रेमचंद अंदर से बिल्कुल खाली हो गए, और अपने इसी खालीपन को भरने के लिए वे साहित्य की ओर रम गए। इसके बाद प्रेमचंद ने लगभग 14 साल की उम्र में ही साहित्य लेखन का कार्य शुरू कर दिया। प्रेमचंद के हिंदी लेखन की विधा के कारण बंगाल के प्रख्यात लेखक शरदचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें उपन्यास सम्राट की उपाधि दी थी।
प्रेमचंद की रचनाएं आदर्शवाद से शुरू होकर यर्थाथवाद पर खत्म होती थी। वे भारतीय जीवन के मुताबिक चरित्रों की रचना करते थे। यही कारण है कि प्रेमचंद के पाठकों और प्रशंसकों की संख्या अनगिनत है। प्रेमचंद ने युगांतकारी साहित्य की रचना तो की ही साथ ही साथ सदियों से चली आ रही रूढि.यों के खिलाफ संघर्ष भी किया। प्रेमचंद आधुनिक कथा साहित्य के जनक तो हैं ही, निबंध के क्षेत्र में भी उन्होंने प्रगतिशील विचार प्रकट किए हैं। बचपन की कठिनाईयों के कारण, आर्थिक विषमता से पीडि.त, मध्यम वर्गीय समाज के करूणा भरे चित्र निरंतर प्रेमचंद की आंखों में तैरते रहे हैं। मानव जीवन के बाहरी और भीतरी स्वरूप को उन्होंने बहुत ही करीब से देखा महसूस किया और पूरी सच्चाई और ईमानदारी के साथ उसे अपनी रचनाओं में उतारा। और यही यर्थाथ उनके साहित्य का अमृृत बन गया। उनकी रचनाओं ने शोषितों और पीडि.तों को मानसिक बल दिया। प्रेमचंद के व्यक्तित्व की एक विशेषता यह भी थी कि वे संघर्षों और कठिनाईयों से ताउम्र जूझते रहे, लेकिन उन्होंने इस बात की कभी शिकायत नहीं की। बल्कि वे अपने दिल में आंसू , आंखों में खुशी और चेहरे पर सदैव मुस्कान लिए हुए दिखाई देते थे। जीवन के संघर्षों और उनके आत्मसम्मान की तेजस्विता ने उनके व्यक्तित्व को एक नई उर्जा प्रदान की। प्रेमचंद विनय और सादगी की मूर्ति थे, जिस किसी से भी मिलते बिल्कुल अपनों की तरह व्यवहार करते थे। सरल होते हुए भी वे अपने और समाज के जीवन की जटिलताओं से पूर्णत भिज्ञ थे। निर्धनता को प्रेमचंद वरदान समझते थे, क्योंकि इसी से वे अपने निर्धन और गरीब देश के दुख दर्द को पहचान सके। प्रेमचंद ने अपने साहित्य में न भूत का सहारा लिया न ही भविष्य का पल्ला पकड.ा। बल्कि वे वर्तमान की समस्याओं से उलझते रहे औरे उनका समाधानद करत रहे। आज भले ही प्रेमचंद हमारे बीच नही हैं`aaa` लेकिन अपनी रचनाओं के माध्यम से वे सदैव हमारे बीच रहेंगे।


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